सामाजिक न्याय
विश्व बैंक की पाॅवर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ रिपोर्ट
- 30 Apr 2025
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (MPI), विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), PM सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना मेन्स के लिये:भारत में निर्धनता: निर्धनता से जुड़े सामाजिक मुद्दे और आगे की राह |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक की पाॅवर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ रिपोर्ट में वर्ष 2011-12 से 2022-23 तक 171 मिलियन लोगों को चरम निर्धनता से बाहर निकालने तथा चरम निर्धनता दर को 16.2% से घटाकर 2.3% करने के लिये भारत की प्रशंसा की गई है।
- यह कल्याणकारी योजनाओं और आवश्यक सेवाओं तक बेहतर पहुँच के माध्यम से समावेशी विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
पाॅवर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ (PEB) रिपोर्ट क्या है?
- परिचय: इसे विश्व बैंक समूह और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्प्रिंग और वार्षिक बैठकों के दौरान अर्द्धवार्षिक रूप से प्रकाशित किया जाता है।
- इससे 100 से अधिक विकासशील देशों में निर्धनता, साझा समृद्धि और असमानता की प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी मिलती है।
- प्रमुख विकास संकेतक: इसके तहत राष्ट्रीय निर्धनता रेखाओं और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों (चरम निर्धनता के लिये 2.15 अमेरिकी डॉलर, निम्न-मध्यम आय के लिये 3.65 अमेरिकी डॉलर तथा उच्च-मध्यम आय के लिये 6.85 अमेरिकी डॉलर) का उपयोग करते हुए निर्धनता के विभिन्न पहलुओं को कवर किया जाता है।
- इस बहुआयामी निर्धनता माप के तहत शिक्षा और बुनियादी सेवाओं जैसे गैर-मौद्रिक अभावों के साथ गिनी सूचकांक का उपयोग करके असमानता माप को ध्यान में रखा जाता है।
- भारत हेतु कार्यप्रणाली: भारत के लिये विश्व बैंक के निर्धनता अनुमान, उपभोग व्यय सर्वेक्षण (CES), 2011-12 और घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण, 2022-23 पर आधारित हैं।
विश्व बैंक की पाॅवर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ (PEB) रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- ग्रामीण और शहरी निर्धनता में कमी: भारत में चरम निर्धनता में उल्लेखनीय कमी आई है। वर्ष 2011-12 से 2022-23 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में यह 18.4% से घटकर 2.8% हो गई तथा शहरी क्षेत्रों में यह 10.7% से घटकर 1.1% हो गई।
- राज्यवार योगदान: वर्ष 2011-12 में भारत का 65% अत्यंत निर्धन वर्ग, पाँच सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्यों- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश से था। 2022-23 तक, इन राज्यों ने अत्यधिक निर्धनता में कुल गिरावट में दो-तिहाई योगदान दिया।
- बहुआयामी निर्धनता में सुधर: इस रिपोर्ट में गैर-मौद्रिक निर्धनता में हुई कमी पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें भारत का बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (MPI) वर्ष 2005-06 के 53.8% से घटकर वर्ष 2019-21 में 16.4% हो गया।
- वर्ष 2022-23 तक, विश्व बैंक के अनुसार बहुआयामी निर्धनता माप 15.5% हो गया, जो जीवन निर्वाह की स्थितियों में हुए निरंतर सुधार का संकेत है।
- भारत का उपभोग आधारित गिनी सूचकांक वर्ष 2011-12 के 28.8 से बेहतर हो कर वर्ष 2022-23 में 25.5 हो गया, जो आय असमानता में हुए सुधार का संकेत है।
- रोज़गार वृद्धि और कार्यबल प्रवृत्ति: रोज़गार दरें, विशेष रूप से महिलाओं के लिये, बढ़ रही हैं, और नगरीय बेरोज़गारी वर्ष 2017-18 के बाद से अल्पतम है। हालाँकि, कृषि से इतर अन्य रोज़गार में से केवल 23% ही औपचारिक हैं।
- 31% महिला रोज़गार के बावजूद, अभी भी लैंगिक अंतराल बना हुआ है जहाँ वेतनभोगी नौकरियों में 234 मिलियन अधिक पुरुष हैं।
- निम्न-मध्यम आय स्तर पर प्रगति: 3.65 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन की निर्धनता रेखा पर, भारत की निर्धनता दर 61.8% से घटकर 28.1% हो गई, जिससे 378 मिलियन लोग निर्धनता से मुक्त हुए।
- यह दर्शाता है कि आर्थिक विकास का लाभ ग्रामीण और साथ ही नगरीय क्षेत्रों में निम्न-मध्यम आय वर्ग को प्राप्त हुआ है।
नोट: गिनी सूचकांक किसी देश की जनसंख्या में आय वितरण अथवा धन वितरण का मापन कर आय असमानता स्तर को निर्धारित करता है।
- सामान्यतः, विकसित देशों में गिनी गुणांक अपेक्षाकृत कम होता है (जैसे, 0.30 से कम), जो अपेक्षाकृत निम्न आय अथवा धन असमानता को दर्शाता है।
निर्धनता से संबंधित सामाजिक मुद्दे क्या हैं?
- सुभेद्य समुदायों का हाशिए पर होना: निर्धनता से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का हाशियाकरण और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इससे उनका शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार अभिगम सीमित हो जाता है। शिक्षा में भेदभाव, अनुपयुक्त स्वास्थ्य सेवा और निम्न वेतन वाले क्षेत्रों में सीमित रोज़गार के अवसरों से उनका सामाजिक-आर्थिक अपवर्जन बढ़ता जाता है।
- स्वास्थ्य असमानताएँ और कुपोषण: अभावग्रस्त क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ व्यापक हैं, जहाँ पौष्टिक भोजन और स्वास्थ्य देखभाल तक अपर्याप्त पहुँच के कारण स्वास्थ्य परिणाम खराब हो जाते हैं।
- राष्ट्रीय पोषण मिशन (POSHAN अभियान) जैसी सरकारी पहलों का उद्देश्य कुपोषण का निवारण करना है, हालाँकि, प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने और सर्वाधिक वंचित समुदायों तक इस मिशन का विस्तार करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- जलाभाव तनाव : निर्धनता में रहने वाले समुदाय, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, असमान रूप से प्रभावित होते हैं, स्वच्छ पेयजल तक उनकी पहुँच सीमित होती है, जिसके कारण स्वच्छता प्रभावित होती है जलजनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ता है।
- NFHS-5 की रिपोर्ट के अनुसार 49.8% ग्रामीण निवासों में अभी भी पाइप से पेयजल उपलब्ध नहीं है।
- ऊर्जा निर्धनता: ग्रामीण भारत में, विशेष रूप से जनजातीय और पिछड़े क्षेत्रों में, संवहनीय ऊर्जा तक पहुँच के अभाव से शैक्षिक और आर्थिक अवसर सीमित होते हैं।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जैसे प्रयासों के बावजूद, सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011 में आँकड़ों की कमी के कारण अनेक पात्र परिवार इससे योजना से वंचित रहे, जिससे काष्ठ ईंधन (जलावन की लकड़ी) के स्थान पर LPG का उपयोग बढ़ाने में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- मानसिक निर्धनता: निर्धनता से होने वाली वित्तीय असुरक्षा और सामाजिक हाशियाकरण के कारण चिरकालिक तनाव, चिंता और अवसाद उत्पन्न होता है, जिससे उत्पादकता और सामाजिक भागीदारी सीमित हो जाती है।
- निर्धनता से जुड़े कलंक के कारण निर्धन व्यक्ति मदद माँगने में संकोच करते हैं, जबकि बेरोज़गारी (जो 29% स्नातकों को प्रभावित करती है) और बढ़ती असमानता से मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ और विस्तीर्ण हो जाती हैं।
- लैंगिक असमानता: गरीब समुदायों में लैंगिक असमानताएँ, जैसे कि अल्पायु विवाह, घरेलू हिंसा और कार्यबल में सीमित भागीदारी से निर्धनता का चक्र बना रहता है।
- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार वेतनभोगी रोज़गार में महिलाओं की तुलना में 234 मिलियन अधिक पुरुष हैं, तथा महिला रोज़गार दर केवल 31% है।
- विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत 129वें स्थान पर है, जो महिलाओं के लिये आर्थिक भागीदारी और अवसरों में महत्त्वपूर्ण असमानताओं को उजागर करता है, जिससे कार्यबल में महिलाओं की क्षमता उपयोग न्यून रह जाता है।
- पर्यावरणीय क्षरण: निर्धनता के कारण वनोन्मूलन, अत्यधिक चारण, तथा ईंधन के लिये जैवईंधन का दहन करने जैसी अवहनीय प्रथाओं पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे पर्यावरणीय क्षरण होता है।
- इससे कृषि उत्पादकता में कमी आती है और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है, जिससे निर्धनता बढ़ती है। प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाओं से निर्धन समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
निर्धनता से जुड़े सामाजिक मुद्दों के समाधान के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- सामाजिक कल्याण और आर्थिक सशक्तिकरण: सकारात्मक कार्यवाही और कल्याणकारी योजनाओं को मज़बूत करना हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोज़गार तक पहुँच में सुधार लाने की कुंजी है।
- लैंगिक असमानता को कम करना: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और सुकन्या समृद्धि योजना (SSY) जैसी पहलों को मज़बूत करना आवश्यक है। आगे के प्रयासों में महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय स्वतंत्रता तक पहुँच बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, साथ ही इन कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- लैंगिक अंतर को कम करने के लिये समान वेतन सुनिश्चित करना, कौशल विकास का विस्तार करना, तथा लैंगिक समावेशी कार्यस्थलों का निर्माण करना आवश्यक है, साथ ही महिलाओं के आर्थिक अवसरों को बढ़ाने के लिये निर्धनता को दूर करना भी आवश्यक है।
- ऊर्जा पहुँच में सुधार: सुदूरवर्ती क्षेत्रों में सौर ऊर्जा चालित 4G सेल टावरों और सौर माइक्रोग्रिडों को बढ़ावा देने से ऊर्जा पहुँच में सुधार होगा, शिक्षा के अवसर उत्पन्न होंगे और सूचना साझा करने में सुविधा होगी।
- प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना जैसी पहलों को आगे बढ़ाने से ऑफ-ग्रिड समुदायों को सौर ऊर्जा आधारित समाधान उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
- सार्वभौम जल पहुँच: वर्षा जल संचयन, वाटरशेड प्रबंधन और भूजल पुनर्भरण जैसे बड़े पैमाने पर जल संरक्षण कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- जल जीवन मिशन, जिसका उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण घर तक पाइप द्वारा पेयजल उपलब्ध कराना है, जल पहुँच और स्थिरता में सुधार लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता बढ़ाना: ग्रामीण और शहरी दोनों गरीब समुदायों में परामर्श और सहायता प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को बढ़ाने की आवश्यकता है।
- ज़मीनी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की पहचान करने और उनका समाधान करने के लिये आशा कार्यकर्त्ताओं जैसे सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षित करना।
- मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक (Stigma) को कम करने और मदद मांगने के व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाना।
- पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना: कल्याणकारी योजनाओं में फर्जी लाभार्थियों से निपटने के लिये, फर्जी राशन कार्डों को हटाने के लिये आधार-आधारित प्रमाणीकरण और eKYC सत्यापन आवश्यक है।
निष्कर्ष:
भारत में निर्धनता से निपटने के लिये व्यापक समाधान की आवश्यकता है जो असमानता, संसाधनों तक पहुँच और अकुशल नीति कार्यान्वयन के अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करते हैं। कल्याणकारी योजनाओं को मज़बूत करके, बुनियादी ढाँचे को बढ़ाकर और हाशिये पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाकर, भारत निर्धनता को कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर सकता है। निरंतर प्रयासों और सहयोगात्मक कार्यवाही के माध्यम से, सभी के लिये अधिक समावेशी और समृद्ध भविष्य प्राप्त किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक निर्धनता रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019) (a) निर्धनता की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। उत्तर: (b) प्रश्न. UNDP के समर्थन से ‘ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व’ द्वारा विकसित ‘बहुआयामी निर्धनता सूचकांक’ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न.हालाँकि भारत में निर्धनता के कई अलग-अलग अनुमान हैं, लेकिन सभी समय के साथ निर्धनता के स्तर में कमी दर्शाते हैं। क्या आप सहमत हैं? शहरी एवं ग्रामीण निर्धनता संकेतकों के संदर्भ में आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2015) प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (2016) |