उत्तर प्रदेश Switch to English
संत कबीरदास जयंती 2025
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने संत कबीरदास की 648वीं जयंती के अवसर पर, जिसे कबीरदास जयंती (कबीर प्रकट दिवस) के रूप में मनाया जाता है, पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्य बिंदु
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- कबीरदास जयंती हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।
- कबीरदास 15वीं शताब्दी के कवि, संत तथा समाज सुधारक थे, जिनका जन्म सन् 1440 में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में एक हिंदू परिवार में हुआ था, लेकिन उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम बुनकर दंपत्ति द्वारा किया गया था।
- उन्होंने रामानंद और शेख त़की जैसे गुरुओं से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया तथा अपने अद्वितीय दर्शन को आकार दिया।
- दर्शन, कार्य और शिक्षाएँ:
- वे भक्ति आंदोलन में एक उल्लेखनीय व्यक्ति थे, जिसमें ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम पर विशेष ज़ोर दिया गया।
- भक्ति आंदोलन की शुरुआत 7वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हुई थी, जो 14वीं व 15वीं शताब्दी तक उत्तर भारत में फैल गया।
- उन्होंने कबीर पंथ की स्थापना की, जो एक आध्यात्मिक समुदाय है, जिसके अनुयायी आज भी बड़ी संख्या में विद्यमान हैं।
- उनके प्रमुख साहित्यिक योगदानों में बीजक, सखी ग्रंथ, कबीर ग्रंथावली तथा अनुराग सागर शामिल हैं।
- उन्होंने अनेक भजन और दोहे लिखे, जिनमें अंधविश्वास की निंदा की गई तथा सामाजिक सुधार, स्वतंत्र चिंतन एवं आध्यात्मिक एकता को बढ़ावा दिया गया।
- ब्रजभाषा और अवधी बोलियों में लिखी गई उनकी कविताओं ने भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- मृत्यु और प्रतीकात्मक विरासत:
- कबीरदास का निधन सन् 1518 में मगहर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, जहाँ उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ।
- संत कबीर की विरासत को दोनों समुदायों द्वारा सम्मान दिया जाता है, वहाँ हिंदुओं द्वारा निर्मित समाधि है और मुसलमानों द्वारा निर्मित मज़ार, एक साथ स्थित हैं।

