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उत्तर प्रदेश में पराली दहन पर अंकुश लगाने हेतु सब्सिडी योजना की शुरुआत
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक योजना शुरू की है, जिसके तहत पराली दहन (स्टबल बर्निंग) को रोकने में सहायता करने वाले कृषि उपकरणों पर 40-50% सब्सिडी दी जाएगी। यह कदम उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
मुख्य बिंदु
- परिचय: यह सब्सिडी उन उपकरणों पर लागू होती है जैसे मल्चर्स और ट्रेडर्स, जो किसानों को फसल अवशेष को मृदा में मिलाकर इसे जैविक पदार्थ में परिवर्तित करने में सक्षम बनाते हैं, ताकि यह अपशिष्ट के बजाय उपयोगी बन सके।
- उद्देश्य: इस पहल का उद्देश्य पर्यावरण-मैत्री अवशेष प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना और फसल दहन से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करना है।
- कार्यान्वयन: किसान लाभ के लिये कृषि विभाग के ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से या निकटतम विभागीय कार्यालय जाकर आवेदन कर सकते हैं।
- टोकन भुगतान प्रणाली: सरकार ने किसानों के लिये पारदर्शी और सुरक्षित आवेदन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये टोकन भुगतान प्रणाली भी शुरू की है।
- ₹10,000 तक के उपकरणों के लिये कोई भुगतान नहीं।
- ₹10,000 से ₹50,000 लागत वाले उपकरणों के लिये ₹2,500।
- लाखों रुपये लागत वाले उपकरणों के लिये ₹5,000।
पराली दहन (स्टबल बर्निंग)
- पराली दहन एक ऐसी विधि है, जिसमें खेत से धान की फसल अवशेषों को हटाकर गेहूँ बोने के लिये तैयार किया जाता है। यह प्रक्रिया सितंबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर तक होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून निर्वतन के समय घटित होती है।
- पराली दहन वह प्रक्रिया है जिसमें धान, गेहूँ जैसी फसलों की कटाई के बाद बचे हुए भूसे और अवशेषों को आग लगाकर नष्ट किया जाता है। यह आमतौर पर उन क्षेत्रों में आवश्यक होता है जहाँ संयुक्त फसल कटाई (combined harvesting) विधि अपनाई जाती है, जो फसल अवशेष पीछे छोड़ देती है।
- यह प्रथा उत्तर-पश्चिम भारत में अक्तूबर और नवंबर में सामान्य है, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में।
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वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन 2025
चर्चा में क्यों?
भारत ने वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (FRA) 2025 के अनुसार कुल वन क्षेत्र के मामले में विश्व में नौवें स्थान पर पहुँचकर पर्यावरण संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है। यह रिपोर्ट खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा बाली, इंडोनेशिया में जारी की गई है।
- यह पूर्व में हुए मूल्यांकन में दसवें स्थान से सुधार को दर्शाता है और देश के सतत् वन प्रबंधन के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
मुख्य बिंदु
- परिचय: वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (FRA), जिसे FAO द्वारा संचालित किया जाता है, विश्व के वन संसाधनों का एक व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करता है, जिसमें उनकी स्थिति, प्रबंधन और उपयोग शामिल हैं। यह देशों द्वारा प्रस्तुत डेटा पर आधारित होता है, जिसे विशेषज्ञ समीक्षा प्रक्रिया के माध्यम से सत्यापित किया जाता है।
- यह रिपोर्ट सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा, पेरिस जलवायु समझौता, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता ढाँचा और संयुक्त राष्ट्र की वर्ष 2017-2030 के लिये वन रणनीतिक योजना जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की निगरानी में सहायता करती है।
- भारत के संबंध में निष्कर्ष:
- रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का कुल वन क्षेत्र लगभग 72.73 मिलियन हेक्टेयर है, जिससे देश विश्व में नौवें स्थान पर है।
- वार्षिक वन क्षेत्र वृद्धि के मामले में भारत अभी भी दुनिया में तीसरे स्थान पर है, जो उसके बड़े पैमाने पर वनीकरण और संरक्षण पहलों की सफलता को दर्शाता है।
- FAO रिपोर्ट में भारत के कृषि-वानिकी (एग्रोफॉरेस्ट्री) क्षेत्र को भी उजागर किया गया है। 91 देशों में 55.4 मिलियन हेक्टेयर एग्रोफॉरेस्ट्री भूमि में भारत और इंडोनेशिया मिलकर लगभग 70% वैश्विक कुल का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- केवल भारत में 12.87 मिलियन हेक्टेयर भूमि एग्रोफॉरेस्ट्री में है, जो कार्बन संग्रहण, आजीविका सृजन और पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- केवल भारत में 12.87 मिलियन हेक्टेयर भूमि एग्रोफॉरेस्ट्री में है, जो कार्बन संग्रहण, आजीविका सृजन और पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- वैश्विक रुझान:
- FRA 2025 के अनुसार, वर्तमान में विश्व के वन लगभग 4.14 बिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत हैं, जो पृथ्वी की कुल भूमि क्षेत्र का लगभग एक-तिहाई है।
- रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर वनोन्मूलन (वनों की कटाई) की दर में कमी देखी गई है, हालाँकि वर्तमान दर प्रतिवर्ष 10.9 मिलियन हेक्टेयर अभी भी अधिक है।
- अब विश्व के आधे से अधिक जंगल दीर्घकालिक प्रबंधन योजनाओं के तहत हैं और लगभग 20% वन कानूनी रूप से स्थापित संरक्षित क्षेत्रों में आते हैं।
- वैश्विक स्तर पर रूस सबसे ऊपर है, जिसका वन क्षेत्र 832.6 मिलियन हेक्टेयर है, इसके बाद ब्राज़ील, कनाडा, अमेरिका और चीन का स्थान है।
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उत्तर प्रदेश में सैटेलाइट इन्वेस्टमेंट प्रमोशन ऑफिस खोले जाएंगे
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने पाँच मेट्रो शहरों में सैटेलाइट इन्वेस्टमेंट प्रमोशन ऑफिस खोलने की घोषणा की है, ताकि भारत के प्रमुख औद्योगिक केंद्रों से सीधे पूंजी निवेश आकर्षित किया जा सके और निवेशकों को राज्य के बढ़ते व्यापार अवसरों से जोड़ा जा सके।
मुख्य बिंदु
- परिचय: यह पहल ‘इन्वेस्ट यू.पी.’ के तहत लागू की जाएगी, जो राज्य की निवेश संवर्द्धन और सुविधा एजेंसी है।
- इसका उद्देश्य घरेलू पूंजी निवेश को उत्तर प्रदेश में लाना और राज्य के औद्योगिक तथा नीतिगत पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना है।
- सैटेलाइट इन्वेस्टमेंट प्रमोशन ऑफिस: मुंबई, बंगलूरू, हैदराबाद, चेन्नई और नई दिल्ली।
- स्टाफ संरचना: प्रत्येक ऑफिस/कार्यालय में एक जनरल मैनेजर, एक असिस्टेंट जनरल मैनेजर, दो उद्यमी मित्र, दो एक्जीक्यूटिव और दो ऑफिस असिस्टेंट होंगे।
- महत्त्व:.
- निवेशकों और राज्य सरकार के बीच की दूरी को समाप्त करने का लक्ष्य, रियल-टाइम संलग्नता तथा परियोजना सुविधा को आसान बनाना।
- उत्तर प्रदेश की छवि को निवेश-मैत्रीपूर्ण गंतव्य के रूप में प्रबल करना और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में सुधार लाना।
- शहर के अनुसार फोकस क्षेत्र: प्रत्येक ऑफिस, संबंधित शहर की औद्योगिक क्षमता के अनुरूप विशिष्ट क्षेत्रों में विशेषज्ञता विकसित करेगा:
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शहर |
फोकस सेक्टर्स |
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मुंबई |
वित्तीय सेवाएँ, अवसंरचना, फिनटेक, ESG फंड्स |
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बंगलूरू |
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC), एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर्स, इलेक्ट्रिक वाहन, डीपटेक |
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चेन्नई |
ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, हार्डवेयर मैन्युफैक्चरिंग |
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हैदराबाद |
फार्मास्यूटिकल्स, बायोटेक्नोलॉजी, आईटी और उभरती तकनीकें |
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नई दिल्ली |
इन्वेस्ट यू.पी. और एशिया-यूरोपीय संघ सुविधा कार्यालय |
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
अंतर्राष्ट्रीय स्नो लेपर्ड दिवस और ‘#23for23’ पहल
चर्चा में क्यों?
भारत ने 23 अक्तूबर, 2025 को अंतर्राष्ट्रीय स्नो लेपर्ड दिवस मनाया, जिसमें ‘#23for23’ शीर्षक के तहत एक विशिष्ट राष्ट्रीय अभियान चलाया गया। इस अभियान ने लोगों को 23 मिनट शारीरिक गतिविधि के लिये समर्पित करने हेतु प्रेरित किया, ताकि स्नो लेपर्ड (हिम तेंदुए) और उनके संवेदनशील उच्च ऊँचाई वाले आवासों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके।
मुख्य बिंदु
- परिचय: ‘#23for23’ अभियान को वर्ष 2023 के लिये 23 मिनट की सक्रिय भागीदारी का प्रतीक बनाकर शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण में जागरूकता और सार्वजनिक सहभागिता को बढ़ावा देना है।
- यह अभियान ग्लोबल स्नो लेपर्ड और ईकोसिस्टम प्रोटेक्शन प्रोग्राम (GSLEP) के अंतर्गत, और स्नो लेपर्ड ट्रस्ट वर्ल्डवाइड के सहयोग से आयोजित किया गया।
- भारत की संरक्षण उपलब्धियाँ:
- भारतीय हिमालय में की गई पहली स्नो लेपर्ड गणना में 718 स्नो लेपर्ड पाए गए, जिनमें से 477 लद्दाख में हैं।
- भारत ने उच्च ऊँचाई पर स्थित हिमालयों के लिये स्नो लेपर्ड को एक फ्लैगशिप (मुख्य) प्रजाति के रूप में चिह्नित किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्नो लेपर्ड दिवस: यह दिवस वर्ष 2013 में स्थापित हुआ, जब किर्गिज़स्तान में बिशकेक घोषणा को अपनाने के बाद उन 12 देशों ने, जिनमें स्नो लेपर्ड की आबादी है, संरक्षण प्रयासों में सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की
- स्नो लेपर्ड की मेज़बानी करने वाले देश: अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान।
स्नो लेपर्ड (Panthera uncia): तथ्य
- परिचय: मध्यम आकार की बिल्लियाँ जो अपनी चतुराई के लिये जानी जाती हैं और कठोर, ऊँचाई वाले वातावरण में जीवित रहने की क्षमता रखती हैं।
- पर्यावास: मध्य और दक्षिण एशिया के पहाड़ों में मूल निवासी, आमतौर पर 9,800 से 17,000 फीट की ऊँचाई पर पाई जाते हैं।
- वन्य में लगभग 3,500 से 7,000 स्नो लेपर्ड होने का अनुमान लगाया गया है।
- विशेषताएँ: मोटे, धूसर-सफेद फर से युक्त, जो बर्फ और चट्टानों के बीच छिपने में सहायता करता है।
- पारिस्थितिक महत्त्व: ये शीर्ष शिकारी और संकेतक प्रजाति के रूप में कार्य करती हैं, क्योंकि उनकी उपस्थिति उच्च ऊँचाई पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को दर्शाती है।

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