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स्टेट पी.सी.एस.

  • 26 Apr 2025
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छत्तीसगढ़ Switch to English

रायपुर में पहला स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट

चर्चा में क्यों?

एम्स रायपुर ने सफलतापूर्वक अपना पहला स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट या किडनी पेयर्ड डोनेशन (KPD) पूरा किया है, जिससे वह न केवल नए एम्स संस्थानों में यह प्रक्रिया करने वाला पहला, बल्कि छत्तीसगढ़ का पहला सरकारी अस्पताल भी बन गया है जिसने यह उन्नत और जीवन रक्षक प्रक्रिया की है।

मुख्य बिंदु

  • गुर्दा चिकित्सा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि:
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मार्गदर्शन में एम्स रायपुर ने अपना पहला स्वैप किडनी प्रत्यारोपण किया।
    • मंत्रालय ने इसे अंतिम चरण के किडनी की बीमारी (ESRD) के रोगियों के लिये उन्नत उपचार तक पहुँच का विस्तार करने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया
    • स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट (किडनी पेयर डोनेशन) में, दो मरीज-दाता जोड़े किडनी का आदान-प्रदान करते हैं, जब रक्त समूह की असंगति के कारण प्रत्यक्ष दान संभव नहीं होता है।
  • एम्स रायपुर: उभरता हुआ क्षेत्रीय स्वास्थ्य केंद्र
    • एम्स रायपुर मध्य भारत में अंग प्रत्यारोपण में अग्रणी बनकर उभरा है।
    • यह नए एम्स में मृतक दाता अंग दान और बाल चिकित्सा किडनी प्रत्यारोपण शुरू करने वाला पहला एम्स था।
    • अब तक अस्पताल में किये गये 54 किडनी प्रत्यारोपणों में 95% ट्रांसप्लांट सफल रहे हैं और 97% मरीज उपचार के बाद स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।
  • राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण क्षमता को बढ़ावा देना:
    • राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के अनुसार, स्वैप प्रत्यारोपण से कुल किडनी प्रत्यारोपण में 15% तक की वृद्धि हो सकती है।
    • NOTTO ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्वैप ट्रांसप्लांट कार्यक्रम लागू करने की सलाह दी है।
    • इसने भारत भर में इन जीवनरक्षक सर्जरी को सुव्यवस्थित और विस्तारित करने के लिये "एक राष्ट्र, एक स्वैप प्रत्यारोपण" नीति शुरू करने की भी योजना बनाई है।

मध्य प्रदेश Switch to English

MP में PM मित्र टेक्सटाइल पार्क

चर्चा में क्यों?

पीएम मित्र योजना (PM MITRA) के तहत भारत का पहला एकीकृत टेक्सटाइल पार्क मध्यप्रदेश के धार ज़िले में स्थापित किया जाएगा।

मुख्य बिंदु 

  • टेक्सटाइल पार्क के बारे में:
    • पार्क की कुल लागत 2100 करोड़ रुपए है और इसे धार ज़िले के भैंसोला गाँव में विकसित किया जाएगा।
    • यह पार्क Zero Liquid Discharge (ZLD) तकनीक पर आधारित 20 MLD जल संयंत्र, सौर ऊर्जा आधारित पॉवर प्लांट, “प्लग एंड प्ले” फैक्ट्री यूनिट्स, और श्रमिकों के लिये आवासीय परिसर जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त होगा।
    • इसका उद्देश्य एक ऐसा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल सिस्टम बनाना है जिसमें स्पिनिंग, वीविंग, प्रोसेसिंग, डाईंग, गारमेंटिंग जैसी सभी गतिविधियाँ एक ही परिसर में हों।
    • सभी निर्माण कार्यों को 14 माह में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे यह भारत का सबसे तेज़ी से विकसित होने वाला टेक्सटाइल पार्क बन सके।
    • इस परियोजना के तहत अब तक 10,000 करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव मिल चुके हैं।
    • इससे लाखों युवाओं के लिये रोज़गार के अवसर सृजित होंगे और राज्य की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी।
    • इससे मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत अभियानों को गति मिलेगी।

पीएम मित्र योजना

  • परिचय
    • भारतीय कपड़ा उद्योग को मज़बूत करने के लिय कपड़ा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2021 में पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल पार्क (MITRA) योजना शुरू की गई थी।
    • पीएम मित्र’ पार्क को सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मोड में एक विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) के ज़रिये विकसित किया जाएगा, जिसका स्वामित्व केंद्र और राज्य सरकार के पास होगा।
    • प्रत्येक ‘मित्र’ पार्क में एक इन्क्यूबेशन सेंटर, कॉमन प्रोसेसिंग हाउस और एक कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट तथा अन्य टेक्सटाइल संबंधी सुविधाएँ जैसे- डिज़ाइन सेंटर एवं टेस्टिंग सेंटर होंगे।
      • इनक्यूबेशन सेंटर वह संस्था होती है जो उद्यमियों को उनके व्यवसाय को विकसित करने और इससे जुड़ी समस्याओं को हल करने में सहायता करती है, विशेष रूप से प्रारंभिक चरणों में व्यवसाय और तकनीकी सेवाओं की सारणी, प्रारंभिक सीड फंडिंग (Seed Funding), प्रयोगशाला सुविधाएँ, सलाहकार, नेटवर्क और लिंकेज प्रदान करके।
      • यह ‘विशेष प्रयोजन वाहन’/मास्टर डेवलपर न केवल औद्योगिक पार्क का विकास करेगा, बल्कि रियायत अवधि के दौरान इसका रखरखाव भी करेगा।
  • वित्तपोषण:
    • इस योजना के तहत केंद्र सरकार सामान्य बुनियादी अवसंरचना के विकास हेतु प्रत्येक ग्रीनफील्ड ‘मित्र’ पार्क के लिये 500 करोड़ रुपए और प्रत्येक ब्राउनफील्ड पार्क के लिये 200 करोड़ रुपए की विकास पूंजी सहायता प्रदान करेगी।
      • ग्रीनफील्ड का आशय एक पूर्णतः नई परियोजना से है, जिसे शून्य स्तर से शुरू किया जाना है, जबकि ब्राउनफील्ड परियोजना वह है जिस पर काम शुरू किया जा चुका है


हरियाणा Switch to English

हरियाणा पंचायतों के लिये विकास पैकेज

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर हरियाणा के मुख्यमंत्री ने राज्य की पंचायतों के लिये 368 करोड़ रुपए के विकास पैकेज की घोषणा की।

  • पंचकूला में राज्य स्तरीय ग्राम उत्थान समारोह में उन्होंने 233 करोड़ रुपए की लागत की 923 विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया तथा 135 करोड़ रुपए की लागत के 413 कार्यों का शिलान्यास किया।

मुख्य बिंदु

  • पंचायतों को वित्तीय सहायता मज़बूत करना:
    • मुख्यमंत्री ने स्टांप ड्यूटी राजस्व के 573 करोड़ रुपए हस्तांतरित किये:
      • 22 ज़िला परिषदें
      • 142 पंचायत समितियाँ
      • 5,388 ग्राम पंचायतें
    • उन्होंने सामुदायिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये 511 ग्राम पंचायतों में महिला चौपालों के निर्माण के लिये 18.28 करोड़ रुपए जारी किए।
    • सरकार ने मानदेय के रूप में 1.45 करोड़ रुपए वितरित किये:
      • 411 ज़िला परिषद सदस्य
      • 3,081 पंचायत समिति सदस्य
  • जागृत ग्राम पुरस्कार योजना:
    • उन्होंने ग्राम पंचायतों के लिये प्रदर्शन के आधार पर, मुख्यमंत्री जागृत ग्राम पुरस्कार योजना शुरू की।
    • पंचायतों का मूल्यांकन निम्नलिखित आधार पर किया जाएगा:
      • शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता
      • महिला सशक्तीकरण, कृषि उत्पादन
      • डिजिटल पहुँच, टिकाऊ बुनियादी ढाँचा
      • नक़द पुरस्कार:
        • प्रथम स्थान के लिये 51 लाख रुपए
        • दूसरे स्थान के लिये 31 लाख रुपए
        • तीसरे स्थान के लिये 21 लाख रुपए
    • विजेता पंचायतों को पुरस्कार राशि का उपयोग स्थानीय विकास गतिविधियों के लिये करना होगा।
  • निर्वाचित प्रतिनिधियों की क्षमता निर्माण:
  • मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान के तहत प्रशिक्षण किट वितरण का भी शुभारंभ किया।
  • सरकार हरियाणा में सभी 71,000 निर्वाचित पंचायती राज प्रतिनिधियों को पुनश्चर्या प्रशिक्षण प्रदान करेगी।
  • सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार:
  • राज्य ने विभिन्न सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के तहत 41,591 नए लाभार्थियों के बैंक खातों में 12.59 करोड़ रुपए जमा किए।

राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA)

  • पृष्ठभूमि: इस योजना को पहली बार वर्ष 2018 में कैबिनेट द्वारा 2018-19 से 2021-22 तक कार्यान्वयन के लिये अनुमोदित किया गया था।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: पंचायती राज मंत्रालय।
  • घटक: मुख्य केंद्रीय घटक थे पंचायतों को प्रोत्साहन देना तथा केंद्रीय स्तर पर अन्य गतिविधियों सहित ई-पंचायत पर मिशन मोड परियोजना।
  • राज्य घटक में मुख्य रूप से क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण (CB&T) गतिविधियाँ, (CB&T)  के लिये संस्थागत तंत्र तथा सीमित स्तर पर अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं।

 


उत्तर प्रदेश Switch to English

मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने बेटियों की शादी का खर्च उठाने में असमर्थ गरीब और ज़रूरतमंद परिवारों को राहत देने के लिये मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना में बदलाव किया है।

मुख्य बिंदु

  • योजना में परिवर्तन: 
    • मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना के तहत अब  51,000 रुपए के बजाए 1 लाख रुपए की सहायता दी जाएगी, जो तीन भागों में वितरित होगी:
      • 75,000 रुपए सीधे कन्या के बैंक खाते में ट्रांसफर किये जाएंगे।
      • 10,000 रुपए कपड़े, उपहार और आवश्यक सामान हेतु मिलेंगे।
      • 15,000 रुपए शादी के आयोजन पर खर्च करने के लिये दिये जाएंगे।
  • योजना के बारे में:
    • राज्य सरकार द्वारा सर्वधर्म-समभाव और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने हेतु अक्तूबर 2017 से मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना संचालित की जा रही है।
    • योजना के अंतर्गत विभिन्न धर्मों और समुदायों के रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह समारोह सम्पन्न कराए जाते हैं।
    • इसका उद्देश्य विवाह कार्यक्रमों में होने वाले अनावश्यक प्रदर्शन और अपव्यय को समाप्त करना भी है।
    • यह योजना गरीब, अनुसूचित जाति (SC), जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यक समुदायों के लिये है।
      • विधवा, परित्यक्ता और तलाकशुदा महिलाओं के विवाह की भी इस योजना में व्यवस्था की गई है।
    • नगर निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के स्तर पर पंजीकरण की व्यवस्था है।
    • सामूहिक विवाह आयोजन हेतु न्यूनतम 10 जोड़ों का पंजीकरण आवश्यक है।
    • पात्रता:
      • कन्या की आयु 18 वर्ष और वर की आयु 21 वर्ष या अधिक होनी चाहिये।
      • दोनों वर-वधू उत्तर प्रदेश के स्थायी निवासी हों।
      • परिवार की वार्षिक आय सरकार द्वारा तय सीमा के भीतर हो।


राजस्थान Switch to English

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना(NFSA) के अंतर्गत अपात्र लाभार्थियों को सूची से स्वेच्छा से बाहर करने के लिये राजस्थान के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग द्वारा 'गिव-अप' अभियान चलाया गया है। 

  • जिसके तहत राज्य स्तर पर 17 लाख 63 हज़ार से अधिक अपात्र व्यक्तियों ने स्वयं को योजना से गिव-अप किया है।

मुख्य बिंदु

  • गिवअप अभियान के बारे में:
    • राजस्थान सरकार द्वारा ‘गिवअप अभियान’ की शुरुआत नवंबर 2024 में की गई थी, जिसका उद्देश्य सक्षम एवं अपात्र लोगों को खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ स्वेच्छा से छोड़ने के लिये प्रेरित करना था। 
    • यह अभियान उन लोगों को लक्षित करता है जो गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुके हैं और अब इस योजना की पात्रता नहीं रखते।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013
    • यह खाद्य सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण में एक आमूलचूल परिवर्तन को इंगित करता है जहाँ अब यह कल्याण (welfare) के बजाए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण (rights-based approach) में बदल गया है।
      • अंत्योदय अन्न योजना: इसमें निर्धनतम आबादी को दायरे में लिया गया है जो प्रति परिवार प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
      • प्राथमिकता वाले परिवार (Priority Households- PHH):PHH श्रेणी के अंतर्गत शामिल परिवार प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
    • NFSA निम्नलिखित माध्यमों से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को दायरे में लेता है:
  • NFSA निम्नलिखित माध्यमों से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को दायरे में लेता है:
    • राशन कार्ड जारी करने के मामले में परिवार की 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की सबसे बड़ी आयु की महिला का घर की मुखिया होना अनिवार्य किया गया है।
    • इसके अलावा, अधिनियम में 6 माह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये विशेष प्रावधान किया गया है, जहाँ उन्हें एकीकृत बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services- ICDS) केंद्रों (जिन्हें आंँगनवाड़ी केंद्रों के रूप में भी जाना जाता है) के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से निःशुल्क पौष्टिक आहार प्रदान करना सुनिश्चित किया गया है।


उत्तर प्रदेश Switch to English

BBAU को बायो-प्लास्टिक के उत्पादन के लिय पेटेंट मिला

चर्चा में क्यों?

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (BBAU) लखनऊ के वैज्ञानिक को बायो-प्लास्टिक बनाने की तकनीक के लिय भारत सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है।

मुख्य बिंदु

  • यह तकनीक गाय के गोबर और एक विशेष प्रकार के बैक्टीरिया का उपयोग करती है, जिससे बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक तैयार किया जाता है।
  • इस बायो-प्लास्टिक से बोतलें, पॉलीबैग और अन्य उपयोगी वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं।
  • यह प्लास्टिक पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट (PHB) पर आधारित है, जो एक प्राकृतिक रूप से अपघटनीय बायो-प्लास्टिक है।
  • इससे पहले PHB का उत्पादन मुख्यतः गन्ना, मक्का, गेहूँ, चावल और केले के छिलकों जैसे बायोमास से किया जाता था, किंतु उच्च लागत और महंगे कच्चे माल के कारण इसका व्यावसायिक प्रयोग सीमित था।
  • किंतु BBAU के वैज्ञानिक ने एक संशोधित गोबर-आधारित माध्यम विकसित किया है, जो PHB उत्पादन की लागत को 200 गुना तक घटाता है
  • पारंपरिक प्लास्टिक को नष्ट होने में हज़ारों वर्ष लगते हैं, जबकि BBAU के वैज्ञानिक द्वारा विकसित बायो-प्लास्टिक केवल 40-50 वर्षों में नष्ट हो जाता है और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं करता।
  • प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले ग्लोबल वार्मिंग और जैवविविधता पर प्रभाव की पृष्ठभूमि में यह शोध पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में एक नया मार्ग प्रशस्त करता है।

बायो-प्लास्टिक 

  • बायो-प्लास्टिक्स को गन्ना, मक्का जैसे नवीकरणीय कार्बनिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता है, जबकि पारंपरिक प्लास्टिक पेट्रोलियम से बने होते हैं। वे हमेशा बायोडिग्रेडेबल या कम्पोस्ट करने योग्य नहीं होते हैं।
  • बायो-प्लास्टिक का उत्पादन मकई और गन्ने जैसे पौधों से चीनी निकालकर और उसे पॉलीलैक्टिक एसिड (PLA) में परिवर्तित करके किया जाता है। वैकल्पिक रूप से, उन्हें सूक्ष्मजीवों से पॉलीहाइड्रॉक्सीएल्कानोएट्स (PHA) से बनाया जा सकता है जिन्हें फिर बायो-प्लास्टिक में पॉलीमराइज़ किया जाता है।
  • बायो-प्लास्टिक का उत्पादन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करता है और एक तटस्थ या संभावित रूप से नकारात्मक कार्बन संतुलन में योगदान देता है, जिससे जीवाश्म-आधारित प्लास्टिक की तुलना में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिलती है।
  • पारंपरिक प्लास्टिक के विपरीत, बायो-प्लास्टिक में फ्थालेट्स (Phthalates) जैसे हानिकारक रसायन नहीं होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक माने जाते हैं।
  • बायो-प्लास्टिक पारंपरिक प्लास्टिक की तरह ही मज़बूत और धारणीय होते हैं, जिससे वे खाद्य पैकेजिंग, कृषि और चिकित्सा आपूर्ति जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों में उपयोग के लिये आदर्श होते हैं।


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