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जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक का जीवनचक्र

  • 26 Nov 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्लास्टिक कचरा, प्लास्टिक कचरे के प्रकार, संबंधित पहल

मेन्स के लिये:

प्लास्टिक कचरा, प्लास्टिक कचरे के प्रकार, प्लास्टिक कचरे का प्रभाव, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियाँ, सरकार की पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में "द प्लास्टिक लाइफ-साइकल" शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने पॉलिमर कचरे को ठीक से एकत्रित और पुनर्चक्रित नहीं कर रहा है।

  • रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि इस मुद्दे को तब तक हल नहीं किया जा सकता जब तक कि प्लास्टिक के उत्पादन से लेकर निपटान तक के पूरे जीवन चक्र को प्रदूषण के प्राथमिक कारण के रूप में चिह्नित नहीं किया जाता।

प्लास्टिक अपशिष्ट:

  • परिचय:
    • कागज़, खाद्यान्नों के छिलके, पत्ते आदि जैसे कचरे के अन्य रूप जो प्रकृति में बायोडिग्रेडेबल (बैक्टीरिया या अन्य जीवित जीवों द्वारा विघटित होने में सक्षम) होते हैं, के विपरीत प्लास्टिक कचरा अपनी गैर-बायोडिग्रेडेबल प्रकृति के कारण सैकड़ों (या हज़ारों) वर्षों तक पर्यावरण में बना रहता है।
  • प्रमुख प्रदूषणकारी प्लास्टिक अपशिष्ट:
    • माइक्रोप्लास्टिक आकार में पाँच मिलीमीटर से भी कम छोटे प्लास्टिक के टुकड़े हैं।
      • माइक्रोप्लास्टिक में माइक्रोबीड्स (उनके सबसे बड़े परिमाप में एक मिलीमीटर से कम के ठोस प्लास्टिक कण) शामिल हैं जो सौंदर्य प्रसाधन और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, औद्योगिक स्क्रबर्स, वस्त्रों में उपयोग किये जाने वाले माइक्रोफाइबर और प्लास्टिक निर्माण प्रक्रियाओं में उपयोग किये जाने वाले वर्जिन रेजिन पेल्लेट्स में उपयोग किये जाते हैं।
      • माइक्रोप्लास्टिक और सूक्ष्मतर टुकड़ों में विखंडित होते हुए ये ‘प्लास्टिक माइक्रोफाइबर’ का निर्माण करते हैं। ये खतरनाक रूप से नगरपालिका की पेयजल प्रणालियों में और हवा में बहते हुए पाए गए हैं।
    • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक एक डिस्पोज़ेबल सामग्री है जिसे फेंकने या पुनचक्रण करने से पहले केवल एक बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक बैग, पानी की बोतलें, सोडा की बोतलें, स्ट्रॉ, प्लास्टिक प्लेट, कप, अधिकांश खाद्य पैकेजिंग और कॉफी स्टिरर आदि।
  • संबंधित समस्याएँ:
    • प्रति व्यक्ति अधिक प्लास्टिक का जमा होना:
      • प्रतिदिन 10,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा एकत्र नहीं किया जाता है।
  • असंधारणीय पैकेजिंग:
    • भारत का पैकेजिंग उद्योग प्लास्टिक का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है।
    • भारत में पैकेजिंग पर वर्ष 2020 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि असंधारणीय पैकेजिंग के कारण अगले कुछ दशकों में प्लास्टिक के मूल्य में लगभग 133 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा।
    • असंधारणीय पैकेजिंग में सिंगल यूज़ प्लास्टिक के तहत सामान्य प्लास्टिक पैकेजिंग भी शामिल है।
  • ऑनलाइन वितरण:
    • ऑनलाइन खुदरा और खाद्य वितरण एप की लोकप्रियता जो हालाँकि केवल बड़े शहरों तक ही सीमित है लेकिन फिर भी यह प्लास्टिक कचरे की वृद्धि में योगदान दे रहा है।
    • भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन वितरण करने वाले स्टार्टअप जैसे कि स्विगी और जोमैटो प्रत्येक कथित तौर पर एक महीने में लगभग 28 मिलियन ऑर्डरस का वितरण करते हैं।
  • खाद्य शृंखला में उलटफेर:
    • प्रदूषणकारी प्लास्टिक दुनिया के सबसे छोटे जीवों जैसे कि प्लवक को प्रभावित कर सकता है।
    • जब ये जीव इस प्लास्टिक को ग्रहण करने के कारणहरीले बन जाते हैं, तो यह बड़े उन जानवरों के लिये समस्याएँ भी पैदा करते हैं जो भोजन के लिये इन छोटें जानवरों पर निर्भर रहते हैं।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ:

  • प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में दो अलग-अलग चरण शामिल हैं:
    • संग्रहण और पुनर्चक्रण
    • पुनर्चक्रण का निपटान।
    • भारत में दोनों को ठीक से निष्पादित नहीं किया जाता
  • अनुचित कार्यान्वयन और निगरानी:
    • प्लास्टिक कचरे के संग्रह की ज़िम्मेदारी स्थानीय सरकारी निकायों, उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों की है।
      • हालाँकि, भारत में प्लास्टिक कचरा ज़्यादातर प्राधिकरणों के बजाय कचरा बीनने वालों द्वारा एकत्र किया जाता है।
    • भारत में स्थानीय सरकारों या अन्य गैर-लाभकारी संगठनों के सहयोग से बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा संचालित सुविधाओं में 42%- 86% प्लास्टिक अपशिष्ट का पुनर्चक्रण किया जाता है।
    • भारत सरकार का दावा है कि देश अपने 60% प्लास्टिक कचरे को पुनर्चक्रण कर रहा है। हालाँकि यह पुनर्चक्रण विशिष्ट प्रकार के पॉलिमर (प्लास्टिक) तक सीमित है।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आँकड़ों का उपयोग करके सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा किये गए एक सांख्यिकीय विश्लेषण के अनुसार, भारत अपने प्लास्टिक कचरे के 12% का पुनर्चक्रण केवल  (यांत्रिक पुनर्चक्रण के माध्यम से) कर रहा है।
  • अपशिष्ट दहन:
    • लगभग 20% प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये सह-भस्मीकरण, प्लास्टिक-से-ईंधन और सड़क बनाने जैसे अंतिम समाधानों हेतु अपनाया जाता है, जिसका अर्थ है कि भारत 20% प्लास्टिक अपशिष्ट जला रहा है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन हेतु भारत की पहल:

  • एकल उपयोग प्लास्टिक के उन्मूलन और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पर राष्ट्रीय डैशबोर्ड (National Dashboard on Elimination of Single Use Plastic and Plastic Waste Management):
    • भारत ने जून 2022 में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू किया।
    • नागरिकों को अपने क्षेत्र में सिंगल यूज़ प्लास्टिक की बिक्री/उपयोग/विनिर्माण को नियंत्रित करने और प्लास्टिक के खतरे से निपटने हेतु सशक्त बनाने के लिये ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक शिकायत निवारण’ के लिये एक मोबाइल एप भी लॉन्च किया गया।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022:
    • यह 1 जुलाई, 2022 से विभिन्न एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध आरोपित करता है।
    • इसने ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (Extended Producer Responsibility- EPR) को भी अनिवार्य बनाया है जिसमें उत्पादों के निर्माताओं के लिये उत्पादों के जीवनकाल के अंत में इन उत्पादों को एकत्र और संसाधित करने की जवाबदेही के साथ ‘सर्कुलरिटी’ की अवधारणा शामिल है।
  • ‘इंडिया प्लास्टिक पैक्ट’:
    • यह एशिया में अपनी तरह का पहला प्रयास है। इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, सामग्री की मूल्य शृंखला के भीतर प्लास्टिक को कम करने, पुन: उपयोग करने और पुनर्चक्रण करने के लिये हितधारकों को एक साथ लाने का एक महत्त्वाकांक्षी और सहयोगी पहल है।
  • ‘प्रकृति’ शुभंकर:
    • बेहतर पर्यावरण के लिये जीवन-शैली में स्थायी रूप से अपनाए जा सकने वाले छोटे बदलावों के बारे में जनता के बीच जागरूकता के प्रसार के उद्देश्य से ‘प्रकृति’ शुभंकर को लॉन्च किया गया है।
  • ‘प्रोजेक्ट रिप्लान’:
    • खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा प्रोजेक्ट रिप्लान (REPLAN: REducing PLastic in Nature) लॉन्च किया गया है जिसका उद्देश्य अधिक संवहनीय विकल्प प्रदान कर प्लास्टिक थैलियों की खपत को कम करना है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के प्रभावी समाधान:

  • ‘हॉटस्पॉट’ की पहचान:
    • प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और निपटान से संबद्ध प्लास्टिक लीकेज के प्रमुख हॉटस्पॉट की पहचान करने से सरकारों को ऐसी प्रभावी नीतियाँ विकसित करने में मदद मिल सकती है जो प्रत्यक्ष रूप से प्लास्टिक की समस्या का समाधान करें।
  • विकल्पों की अभिकल्पना:
    • इस दिशा में पहला कदम होगा प्लास्टिक की उन वस्तुओं की पहचान करना जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण-योग्य या जैव-निम्नीकरणीय (बायोडिग्रेडेबल) सामग्री से बदला जा सकता है। उत्पाद डिज़ाइनरों के सहयोग से एकल उपयोग प्लास्टिक के विकल्पों और पुन: प्रयोज्य डिज़ाइन वस्तुओं का निर्माण किया जाना चाहिये।
      • ‘ऑक्सो-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक’ (Oxo-biodegradable plastics) के उपयोग को बढ़ावा देना जो कि आम प्लास्टिक की तुलना में अल्ट्रा-वायलेट विकिरण और ऊष्मा से अधिक तीव्रता से विखंडित हो सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकियों और नवाचारों के माध्यम से पुनर्चक्रण:
    • अपशिष्ट, विशेष रूप से प्लास्टिक मूल्यवान और एक उपयोगी संसाधन भी सिद्ध हो सकता है। पुनर्चक्रण, विशेष रूप से प्लास्टिक पुनर्चक्रण, एक ऐसी प्रणाली स्थापित करता है जो अपशिष्ट के लिये एक मूल्य शृंखला का निर्माण करता है।
  • प्लास्टिक प्रबंधन के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था:
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular economy) सामग्री के उपयोग को कम कर सकती है, सामग्री को कम संसाधन गहन बनाने के लिये पुन:अभिकल्पित कर सकती है और नई सामग्री एवं उत्पादों के निर्माण के लिये अपशिष्ट का संसाधन के रूप में पुनः उपयोग कर सकती है।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था न केवल प्लास्टिक और कपड़ों की वैश्विक धाराओं पर लागू होती है, बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त होने वाली ‘सूक्ष्ममणिकाओं (माइक्रोबीड्स)’ के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है?

(a) ये समुद्री पारितंत्र के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर होने का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्र में सफल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य-पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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