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स्टेट पी.सी.एस.

  • 10 Aug 2022
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मध्य प्रदेश Switch to English

NueGo ने मध्य प्रदेश में इंटरसिटी बस सेवा शुरू की

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत की पहली प्रीमियम इलेक्ट्रिक इंटर-सिटी कोच सेवाएँ NueGo ब्रांड ने भोपाल-इंदौर इलेक्ट्रिक इंटरसिटी बस सेवा मार्ग की अपनी सेवाएँ शुरू कर अपना परिचालन शुरू करने की घोषणा की।

प्रमुख बिंदु

  • यह बस सेवा एक सुरक्षित और हरित सवारी सुनिश्चित करते हुए अंतर-शहर यात्रियों के लिये एक सहज बुकिंग अनुभव, बेहतर सवारी गुणवत्ता और केबिन अनुभव प्रदान करेगी।
  • NueGo सेवाएँ भोपाल-इंदौर रूट पर 349 रुपए प्रति सीट के विशेष उद्घाटन प्रस्ताव पर उपलब्ध होंगी।
  • कंपनी की ओर से कहा गया है कि NueGo कोचों को इनोवेटिव टेक्नोलॉजी से लैस किया गया है। यह भोपाल-इंदौर के बीच घंटे के आधार पर चलने वाले कोचों के साथ, अंतर-शहर यात्रियों के लिये एंड-टू-एंड सुविधा प्रदान करती है।
  • भोपाल में कोच रूट आईएसबीटी, भोपाल रेलवे स्टेशन, लालघाटी, सीहोर से होकर गुज़रेगा, जबकि इंदौर में यह स्टार स्क्वायर, रेडिसन स्क्वायर, विजय नगर और सरवटे बस स्टैंड से होकर गुज़रेगा।
  • एक ग्राहककेंद्रित ब्रांड NueGo कोच यांत्रिक और विद्युत निरीक्षण सहित 25 कठोर सुरक्षा जाँच से गुज़रते हैं। हर ट्रिप से पहले कोचों को सैनिटाइज किया जाता है और कोच पायलटों का ब्रीथ एनालाइजर टेस्ट किया जाता है।
  • NueGo सर्विसेज लाइव कोच ट्रैकिंग, ड्रॉप पॉइंट जियो-लोकेशन और मॉनिटर इन-कोच सीसीटीवी सर्विलांस प्रदान करती है। ये इलेक्ट्रिक कोच ट्रैफिक की स्थिति में एयर कंडीशनर से सिंगल चार्ज पर 250 किमी. चल सकते हैं। इन कोचों ने सेवाओं के शुरू होने से पहले के महीनों में दो लाख किमी. का रोड ट्रायल पूरा कर लिया है।
  • NueGo अपनी विश्वस्तरीय इलेक्ट्रिक कोच सेवाओं के साथ यात्रा का संपूर्ण अनुभव प्रदान करेगा। जल्द ही इस सेवा का विस्तार देश के अन्य शहरों में किया जाएगा।
  • ग्रीनसेल मोबिलिटी के निदेशक सतीश मंधाना ने कहा कि NueGo का उद्देश्य अंतर-शहर मार्गों पर ज़ीरो टेलपाइप उत्सर्जन के साथ टिकाऊ सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा देना है। (टेलपाइप के उत्सर्जन मानक एक आंतरिक दहन इंजन से निकलने वाली निकास गैंसों में अनुमत प्रदूषकों की अधिकतम मात्रा को निर्दिष्ट करते हैं।)  

हरियाणा Switch to English

चौथे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ियों को मिलेंगे 15 लाख रुपए

चर्चा में क्यों?

9 अगस्त, 2022 को हरियाणा के खेल राज्य मंत्री संदीप सिंह ने विधानसभा में ओलंपिक की तर्ज़ पर अन्य राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में चौथे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ियों को भी 15 लाख रुपए नकद इनाम देने की घोषणा की।

प्रमुख बिंदु

  • खेल राज्य मंत्री संदीप सिंह ने नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तरफ से लाए गए अभिनंदन प्रस्ताव के पारित होने के बाद यह घोषणा की। गौरतलब है कि भूपेंद्र हुड्डा ने सदन में राष्ट्रमंडल खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों के लिये अभिनंदन प्रस्ताव रखा था।
  • खेल मंत्री संदीप सिंह ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में प्रदेश का एक खिलाड़ी चौथे स्थान पर रहा है, उसे 15 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। सरकार ने टोक्यो ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ियों को पहली बार 15 लाख रुपए इनाम दिया था।
  • खेल मंत्री संदीप सिंह ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में जीते गए कुल मेडल में से लगभग 33 प्रतिशत भागीदारी हरियाणा के खिलाड़ियों की रही।
  • खेल नीति के तहत स्वर्ण पदक विजेता को 1.50 करोड़ रुपए, रजत पदक विजेता को 75 लाख रुपए और कांस्य पदक विजेता को 50 लाख रुपए का पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया जाएगा।

झारखंड Switch to English

झारखंड जनजातीय महोत्सव-2022

चर्चा में क्यों?

9 अगस्त, 2022 को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झामुमो सुप्रीमो तथा राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन ने झारखंड की राजधानी राँची के मोरहाबादी में दोदिवसीय झारखंड जनजातीय महोत्सव-2022 का उद्घाटन किया।

प्रमुख बिंदु

  • इस जनजातीय महोत्सव-2022 में समृद्ध जनजातीय जीवन दर्शन की झलकियाँ दर्शाई गईं है।
  • इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि जंगलों और जानवरों को बचाना है तो आदिवासियों को बचाएँ। ज़मीन, संस्कृति और भाषा आदिवासियों की पहचान निर्धारित करती हैं। विकास की उस नई परिभाषा से उनके अस्तित्व को खतरा होता है, जिसमें इमारतों और कारखानों को स्थापित करने के लिये जंगलों को काटना शामिल है।
  • झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि आदिवासी छात्रों को उच्च शिक्षा के लिये विदेश भेजने हेतु ‘मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा प्रवासी छात्रवृत्ति योजना’ शुरू की गई है। शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिये ऋण लेने के इच्छुक छात्रों हेतु जल्द ही ‘गुरुजी क्रेडिट कार्ड योजना’ शुरू की जाएगी। इसके अलावा एक आदिवासी विश्वविद्यालय की स्थापना पर काम चल रहा है।
  • मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि अब से प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को आदिवासी उत्सव का आयोजन किया जाएगा तथा केंद्र सरकार से इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग की।
  • इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि आदिवासी परिवार में किसी की भी शादी के अवसर पर एवं मृत्यु होने पर उन्हें 100 किग्रा. चावल और 10 किग्रा. दाल दी जाएगी, इससे सामूहिक भोज के लिये अब उन्हें कर्ज़ नहीं लेना पड़ेगा।

छत्तीसगढ़ Switch to English

मुख्यमंत्री ने ‘आदि विद्रोह’ सहित 44 महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का किया विमोचन

चर्चा में क्यों?

9 अगस्त, 2022 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने निवास कार्यालय में आयोजित विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम में आदिम जाति अनुसंधान प्रशिक्षण संस्थान द्वारा प्रकाशित ‘आदि विद्रोह’एवं 44 अन्य पुस्तकों का विमोचन किया।

प्रमुख बिंदु

  • मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में वन अधिकार के प्रति ग्राम सभा जागरूकता अभियान के कैलेंडर, अभियान गीत तथा सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (चारगाँव ज़िला धमतरी) के वीडियो संदेश का भी विमोचन किया।
  • आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा जल-जंगल-ज़मीन शोषण, उत्पीड़न से रक्षा एवं भारतीय स्वतंत्रता के लिये समय-समय पर आदिवासियों द्वारा किये गए विद्रोहों एवं देश की स्वतंत्रता हेतु विभिन्न आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाने वाले वीर आदिवासी जननायकों की शौर्य गाथा को प्रदर्शित करने आदि विद्रोह, छत्तीसगढ़ के आदिवासी विद्रोह एवं स्वतंत्रता संग्राम के आदिवासी जननायक पुस्तिका तैयार की गयी है।
  • इस पुस्तक में 1774 के हलबा विद्रोह से लेकर 1910 के भूमकाल विद्रोह एवं स्वतंत्रता पूर्व तक के विभिन्न आंदोलन में जिनमें राज्य के आदिवासी जननायकों की भूमिका का वर्णन है।
  • इस कॉफीटेबल बुक का अंग्रेज़ी संस्करण The Tribal Revolts Tribal Heroes of Freedom Movement and the Tribal Rebellions of Chhattisgarh के नाम से प्रकाशित किया गया है।
  • आदिवासी व्यंजन: राज्य के उत्तरी आदिवासी क्षेत्र, जैसे- सरगुजा, जशपुर, कोरिया, बलरामपुर, सूरजपूर आदि, मध्य आदिवासी क्षेत्र, जैसे- रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर, कबीरधाम, राजनांदगाँव, गरियाबंद, महासमुंद, धमतरी एवं दक्षिण आदिवासी क्षेत्र, जैसे- कांकेर, कोंडागाँव, नारायणपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा एवं बीजापुर ज़िलों में निवासरत् जनजातियों में उनके प्राकृतिक पर्यावास में उपलब्ध संसाधनों एवं उनकी जीवन शैली को प्रदर्शित करने वाले विशिष्ट प्रकार के व्यंजन एवं उनकी विधियाँ अभिलेखीकृत की गई हैं।
  • छत्तीसगढ़ की आदिम कला: छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर मध्य एवं दक्षिण क्षेत्र के ज़िलों में निवासरत् जनजातीय समुदायों में उनके दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुओं, घरों की दीवारों में उकेरे जाने वाले भित्ति चित्र, विशिष्ट संस्कारों में प्रयुक्त ज्यामितीय आकृतियाँ आदि सदैव आदिकाल से जनसामान्य के लिये आकर्षण का विषय रही हैं। इनमें सामान्य रूप से दीवारों व भूमि पर बनाए जाने वाली कलाकृति, बांस व रस्सी से निर्मित शिल्पाकृति एवं महिलाओं के शरीर में गुदवाई जाने वाली गोदनाकृति या डिज़ाइनों के स्वरूप तथा उनके पारंपरिक ज्ञान को अभिलेखीकृत किया गया है।
  • छत्तीसगढ़ के जनजातीय तीज-त्योहार: राज्य के उत्तरी क्षेत्र की पहाड़ी कोरवा जनजाति का कठौरी व सोहराई त्योहार, उरांव जनजाति का सरहुल व करमा त्योहार, खैरवार जनजाति का बनगड़ी व जिवतिया त्योहार आदि, मध्य क्षेत्र की बैगा जनजाति का छेरता व अक्ती त्योहार, कमार जनजाति का माता पहुँचानी व अक्ती त्योहार, बिंझवार जनजाति का ज्योतियाँ व चउरधोनी त्योहार, राजगोंड जनजाति का उवांस व नवाखाई त्योहार आदि, राज्य के दक्षिण क्षेत्र या बस्तर संभाग की अबुझमाड़िया जनजाति का माटी तिहार व करसाड़ त्योहार, मुरिया जनजाति का कोहकांग व माटी साड त्योहार, हलबा जनजाति का बीज बाहड़ानी व तीजा चौथ एवं परजा जनजाति का अमुस या हरेली, बाली परब त्योहार के सदृश्य राज्य की अन्य जनजातियों के भी त्योहारों का अभिलेखीकरण किया गया है।
  • मानवशास्त्रीय अध्ययन: राज्य की 9 जनजातियों, यथा- राजगोंड़ धुरवा, कंडरा, नागवंशी, धांगड़, सौंता, पारधी, धनवार एवं कोंध जनजाति का मानवशास्त्रीय अध्ययन पुस्तक तैयार की गई, जिसमें जनजातियों की उत्पत्ति, सामाजिक संगठन, राजनीतिक जीवन, धार्मिक जीवन एवं सामाजिक संस्कार आदि का वर्णन किया गया है।
  • मोनोग्राफ अध्ययन: राज्य की जनजातियों की जीवन-शैली से संबंधित 21 बिंदुओं पर मोनोग्राफ अध्ययन किया गया है, जिसमें गोंड, हलबा, पहाड़ी कोरवा, कमार, मझवार तथा खड़िया जनजातियों का प्रथागत कानून, उरांव का सरना उत्सव, उरांव जनजाति में सांस्कृतिक परिवर्तन, दंतेवाड़ा की फागुन मड़ई, नारायणपुर की मावली मड़ई, घोटपाल मड़ई, भंगाराम जात्रा, बैगा गोदना, भुजिया गोदना, भुंजिया जनजाति का लाल बंगला, कमार जनजाति में बांस बर्तन निर्माण, कमार जनजाति में हाट बाजार, बैगा जनजाति में हाट बाजार, खैरवार जनजाति में कत्था निर्माण विधि एवं सरगुजा संभाग में हड़िया एवं मंद निर्माण विधि संबंधी प्रकाशन किये गए हैं।
  • भाषा बोली: राज्य की जनजातियों में प्रचलित उनकी विशिष्ट बोलियों के संरक्षण के उद्देश्य से सादरी बोली में शब्दकोष एवं वार्तालाप संक्षेपिका, दोरली बोली में शब्दकोष एवं वार्तालाप संक्षेपिका, गोंडी बोली में शब्दकोष एवं वार्तालाप संक्षेपिका, गोंडी बोली दंडामी माड़िया में शब्दकोष एवं वार्तालाप संक्षेपिका का निर्माण किया गया है।
  • प्राइमर्स: राज्य की जनजातीय बोलियों के प्रचार-प्रसार एवं प्राथमिक स्तर के बच्चों को उनकी मातृभाषा में अक्षर ज्ञान प्रदान करने हेतु प्राइमर्स प्रकाशन का कार्य किया गया है। इस कड़ी में गोंडी बोली में गिनती चार्ट, गोंडी बोली में वर्णमाला चार्ट, बैगानी बोली में वर्णमाला चार्ट, बैगानी बोली में गिनती चार्ट एवं बैगानी बोली में बारहखड़ी चार्ट आदि शामिल हैं। इसके अलावा अन्य पुस्तकों में राजगोंड, धुरवा, कंडरा, नागवंशी, धांगड, सौंता, पारधी, धनवार, कोंध पर पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं।

छत्तीसगढ़ Switch to English

छत्तीसगढ़ में PESA कानून लागू

चर्चा में क्यों?

9 अगस्त, 2022 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बताया कि राज्य में पेसा (Panchayat Extension of Schedule Area) अधिनियम को लेकर नियम बन चुका है, जिसे 8 अगस्त को राजपत्र में प्रकाशित भी किया जा चुका है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि 7 जुलाई, 2022 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में पेसा कानून के प्रारूप को मंज़ूरी दी गई थी। 8 अगस्त, 2022 को राजपत्र में प्रकाशन के साथ ही यह प्रदेश में लागू हो गया है।
  • मुख्यमंत्री ने कहा कि पेसा कानून पहले से था, लेकिन इसके नियम नहीं बनने के कारण इसका लाभ आदिवासियों को नहीं मिल पा रहा था, अब नियम बन जाने से प्रदेश के आदिवासी अपने जल-जंगल-ज़मीन के बारे में खुद फैसला ले सकेंगे।
  • पेसा कानून लागू होने से ग्रामसभा का अधिकार बढ़ेगा। पेसा कानून के तहत ग्रामसभा के 50 प्रतिशत सदस्य आदिवासी समुदाय से होंगे। इसमें से 25 प्रतिशत महिला सदस्य होंगी। गाँवों के विकास में निर्णय लेने और आपसी विवादों के निपटारे का भी उन्हें अधिकार होगा।
  • मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार बनने के बाद विश्व आदिवासी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की गई, आदिवासियों को वन अधिकार के पट्टे प्रदान किये गए, जिसके तहत अभी तक पाँच लाख पट्टे वन अधिकार के तहत दिये जा चुके हैं।
  • उल्लेखनीय है कि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 या पेसा, अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्रामसभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने हेतु केंद्र द्वारा अधिनियमित किया गया था। यह कानूनी रूप से जनजातीय समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से खुद को नियंत्रित करने के अधिकार को मान्यता देता है, प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को भी स्वीकार करता है।
  • पेसा ग्रामसभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इसमें नीतियों को लागू करने वाली प्रक्रियाएँ और कर्मी, लघु (गैर-लकड़ी) वन संसाधनों, लघु जल निकायों और लघु खनिजों पर नियंत्रण रखने, स्थानीय बाज़ारों का प्रबंधन, भूमि के अलगाव को रोकने और अन्य चीज़ों के साथ नशीले पदार्थों को नियंत्रित करना शामिल है।

छत्तीसगढ़ Switch to English

मुख्यमंत्री ने प्रदान किये टाइगर रिज़र्व में सामुदायिक वन संसाधन के अधिकार

चर्चा में क्यों?

9 अगस्त, 2022 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर एक बड़ी पहल करते हुए राज्य के दो बड़े टाइगर रिज़र्व में कोर एवं बफर क्षेत्र में वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम, 2006 के तहत 10 ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार-पत्र प्रदान किये।

प्रमुख बिंदु

  • 10 ग्रामसभाओं में अचानकमार टाइगर रिज़र्व की 5 ग्रामसभाएँ एवं सीतानदी उदंती टाइगर रिज़र्व की 5 ग्रामसभाएँ शामिल हैं।
  • अचानकमार टाइगर रिज़र्व की जिन 5 ग्रामसभाओं को अधिकार प्रदान किये गए हैं, वो मुंगेली ज़िला के क्षेत्र हैं, जिनमें से 4 गाँव कोर एवं 1 गाँव बफर क्षेत्र का है। इनमें महामाई को 1384.056 हेक्टेयर, बाबूटोला को 1191.6 हेक्टेयर, बम्हनी को 1663 हेक्टेयर, कटामी को 3240 हेक्टेयर एवं मंजूरहा ग्रामसभा को 661.74 हेक्टेयर पर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार प्रदान किये गए।
  • सीतानदी उदंती टाइगर रिज़र्व में राज्य में पहली बार एक साथ संयुक्त रूप से सामुदायिक वन संसाधन अधिकार धमतरी ज़िले के सीतानदी टाइगर रिज़र्व की तीन ग्रामसभा- लिखमा, बनियाडीह तथा मैनपुर को 1811.53 हेक्टेयर में मान्य किया गया है। उल्लेखनीय है कि तीनों ग्रामों की पारंपरिक सीमाएँ एक ही हैं, परंतु आबादी बढ़ने के कारण इन्हें तीन गाँव में विभक्त कर दिया गया था।
  • टाइगर रिज़र्व के उदंती क्षेत्र का जो हिस्सा गरियाबंद ज़िले में पड़ता है, उसके बफर क्षेत्र की ग्रामसभा कुल्हाड़ीघाट को 1321.052 हेक्टेयर पर तथा ग्रामसभा कठवा को 1254.57 हेक्टेयर पर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार प्रदान किये गए हैं। गौरतलब है कि ग्रामसभा कुल्हाड़ीघाट पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी का गोद ग्राम है।
  • इस प्रकार मुख्यमंत्री द्वारा विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर कुल 12,527.548 हेक्टेयर क्षेत्रफल के सामुदायिक वन संसाधन अधिकार देकर टाइगर रिज़र्व की ग्रामसभाओं को अपने वन क्षेत्र की सुरक्षा, संरक्षण, संवर्धन और प्रबंधन का अधिकार दिया गया।
  • इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि वन अधिकार मान्यता-पत्र के तहत आदिवासियों और वन क्षेत्रों के परंपरागत निवासियों को दी गई भूमि के विकास और उपयोग तथा उनके अधिकारों के संबंध में गाँव-गाँव में ग्राम सभाओं के माध्यम से 15 अगस्त से 26 जनवरी तक जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, जिससे वे वनों के संरक्षण और विकास में बेहतर योगदान देने के साथ वनोपजों के संग्रहण और वेल्यू एडिशन से अपनी आय में वृद्धि कर सकेंगे।

उत्तराखंड Switch to English

वनस्पति वैज्ञानिकों ने विकसित की नीम की छह प्रजातियाँ

चर्चा में क्यों?

9 अगस्त, 2022 को वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वनस्पति विज्ञानी डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि वनस्पति विज्ञानियों ने नीम की छह नई प्रजातियाँ विकसित की हैं। इससे उत्तराखंड समेत तमाम राज्यों में नीम का अधिक-से-अधिक उत्पादन करने के साथ ही किसानों की आर्थिक स्थिति को मज़बूत किया जा सकेगा।

प्रमुख बिंदु

  • डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में निबौली और नीम के तेल की भारी मांग को देखते हुए नीम की छह नई प्रजातियाँ विकसित की गई हैं। नई प्रजातियाँ सामान्य की तुलना में कई गुना बेहतर हैं। विकसित की गईं नई प्रजातियों से निबौली और तेल का अधिक उत्पादन होगा।
  • नई प्रजातियों से नीम के सामान्य पौधे की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक तेल का उत्पादन होगा। परिणामस्वरूप तेल की मांग को काफी हद तक पूरा किया जा सकेगा।
  • संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक नई प्रजातियाँ सामान्य नीम की तुलना में तीन साल पहले ही फल देना शुरू कर देंगी। सामान्य नीम के पौधे छह साल में निबौली का उत्पादन करते हैं। सामान्य नीम के पौधे से निकलने वाली एक किलोग्राम निबौली से जितना तेल का उत्पादन होगा, उतना ही तेल नई प्रजातियों की नीम से मात्र 300 ग्राम बीज से किया जा सकेगा।
  • सभी प्रजातियों में अजादरेक्टिन तत्त्व की मात्रा सामान्य की तुलना में बहुत अधिक पाई गई है। सामान्य नीम के बीजों में जहाँ अजादरेक्टिन की मात्रा 1000 पीपीएम है, वहीं नई प्रजातियों में इसकी मात्रा दस हज़ार पीपीएम पाई गई है।
  • संस्थान के वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार मौज़ूदा समय में देश में सिर्फ 35 लाख टन निबौली और सात लाख टन तेल का उत्पादन हो रहा है, जो मांग के अनुरूप बहुत कम है।
  • देश में यूरिया के उत्पादन में नीम के तेल की मांग के साथ ही एंटीसेप्टिक, एंटीफंगल, एंटी वायरल और एंटीबैक्टीरियल दवाइयों को बनाने के साथ ही नीम के तेल का इस्तेमाल कॉस्मेटिक वस्तुओं को बनाने में भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
  • नीम की प्रजाति भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, इंडोनेशिया, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों में पाई जाती है तथा अब अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका महाद्वीप तक पहुँच गई है।
  • भारत समेत पूरी दुनिया में नीम के बीजों और तेल की भारी मांग को देखते हुए चीन जैसे देशों में कई करोड़ हेक्टेयर में नीम की खेती की जा रही है। अमेरिका, यूरोपीय देशों के साथ चीन जैसे देशों में नीम को लेकर बड़े पैमाने पर शोध भी किये जा रहे हैं।
  • नीम एक ऐसा वृक्ष है, जिसका उल्लेख वेदों में भी मिलता है। नीम के वृक्ष को वेदों में सर्वरोग निवारिणी के रूप में उल्लेखित किया गया है। वेदों में इसे दैव वृक्ष माना गया है।

उत्तराखंड Switch to English

उत्तराखंड में 108 की तर्ज़ पर पहली बार पशुओं के लिये शुरू होंगी एंबुलेंस

चर्चा में क्यों?

9 अगस्त, 2022 को उत्तराखंड के पशुपालन एवं दुग्ध विकास मंत्री सौरभ बहुगुणा ने बताया कि प्रदेश में इंसानों के लिये संचालित 108 एंबुलेंस की तर्ज़ पर पहली बार पशुओं के इलाज हेतु पशु चिकित्सा एंबुलेंस शुरू की जाएंगी।

प्रमुख बिंदु

  • मंत्री सौरभ बहुगुणा ने बताया कि प्रदेश सरकार पशुपालन व्यवसाय में रोज़गार के नए अवसर सृजित करने तथा पशुपालकों की समस्याओं का समाधान करने के लिये पहली बार पशुपालकों को घर पर भी बीमार पशुओं के इलाज की सुविधा देने जा रही है।
  • इसके लिये पहले चरण में 60 पशु चिकित्सा एंबुलेंस खरीदने हेतु सरकार ने प्रक्रिया शुरू कर दी है। टोल फ्री नंबर पर कॉल करने से किसानों को घर पर ही बीमार पशु का इलाज कराने के लिये एंबुलेंस सेवा मिलेगी।
  • राज्य में खेती-किसानी और पशुपालन लोगों की आजीविका का मुख्य साधन हैं। 8.5 लाख किसान परिवार पशुपालन से जुड़े हैं, जिनकी बड़े पशु (गाय व भैंस) का पालन से आजीविका चलती है। प्रदेश में लगभग 27 लाख बड़े पशु हैं। इसके अलावा दो लाख परिवार छोटे पशु (भेड़, बकरी, सुअर, घोड़े, खच्चर) का व्यवसाय कर रहे हैं।
  • प्रदेश में अभी तक बीमार पशु का घर-द्वार पर इलाज कराने की सुविधा नहीं है। किसानों को बीमार पशु को उपचार के लिये पशु चिकित्सालय या पशु सेवा केंद्र में ले जाना पड़ता है, जिससे किसानों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दुर्गम क्षेत्रों में बीमार पशुओं को समय पर इलाज न मिलने के कारण पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
  • गौरतलब है कि पशुओं के इलाज के लिये वर्तमान में 323 पशु चिकित्सालय संचालित हैं। इसके अलावा 770 पशु सेवा केंद्र, 682 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र, चार पशु प्रजनन फार्म हैं। दुर्गम क्षेत्रों में बीमार पशुओं को समय पर इलाज न मिलने के कारण पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

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