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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने क्षैतिज आरक्षण याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में राज्य की मूल निवासी महिलाओं को 30% क्षैतिज आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा।
मुख्य बिंदु:
- याचिका में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (महिलाओं के लिये क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम, 2022 की धारा 3(1) को चुनौती देते हुए कहा गया है कि राज्य की महिलाओं के लिये 30% आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 के दायरे से बाहर है।
- मामले के अनुसार, उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने 14 मार्च 2024 को प्रांतीय सिविल सेवा (PCS) के विभिन्न पदों के लिये विज्ञापन जारी किया था।
- विज्ञापन के खंड 10 (d) में उत्तराखंड की मूल निवासी महिला उम्मीदवारों के लिये 30% क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान है।
- याचिकाकर्त्ता ने आरक्षण को चुनौती दी और कहा कि केवल मूल निवास के आधार पर क्षैतिज आरक्षण नहीं किया जाना चाहिये।
- उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (महिलाओं के लिये क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम, 2022 की धारा 3(1) असंवैधानिक है क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन करती है।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 16
- लोक नियोजन के विषय में सकारात्मक भेदभाव या आरक्षण का आधार प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 16(4) में प्रावधान है कि राज्य नागरिकों के किसी भी ऐसे पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकता है, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- अनुच्छेद 16(4A) में प्रावधान है कि राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकता है यदि उन्हें राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है।
- अनुच्छेद 16(6) में प्रावधान है कि राज्य किसी भी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये कोई उपबंध कर सकता है।
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