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स्टेट पी.सी.एस.

  • 02 Aug 2025
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बिहार Switch to English

बिहार में ऑपरेशन नया सवेरा

चर्चा में क्यों?

मानव तस्करी के विरुद्ध विश्व दिवस (30 जुलाई) के अवसर पर, बिहार पुलिस मुख्यालय ने 'ऑपरेशन नया सवेरा' शुरू किया, जो शोषणकारी क्षेत्रों से तस्करी पीड़ितों, विशेष रूप से नाबालिगों को बचाने और पुनर्वास करने के लिये एक प्रमुख अभियान है।

  • मानव तस्करी के विरुद्ध विश्व दिवस 2025 का थीम है- "मानव तस्करी संगठित अपराध है- शोषण समाप्त करें।"

मुख्य बिंदु

  • ऑपरेशन नया सवेरा के बारे में:
    • यह एक पंद्रह दिवसीय अभियान है (31 जुलाई से 14 अगस्त 2025), जिसका उद्देश्य मानव तस्करी, बाल श्रम, देह व्यापार और ऑर्केस्ट्रा समूहों में शोषण के शिकार व्यक्तियों को बचाना तथा पुनर्वासित करना है।
    • इसका आयोजन बिहार पुलिस के कमज़ोर वर्ग प्रभाग द्वारा किया जा रहा है।
  • बिहार में तस्करी के आँकड़े:
    • जनवरी से मई 2025 के बीच 231 मानव तस्करी के मामले बिहार में दर्ज किये गए।
    • इस अवधि में 118 नाबालिग लड़कियों और 506 लड़कों को बचाया गया तथा 144 तस्करों को गिरफ्तार किया गया।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2022 के अनुसार, 260 मामलों के साथ बिहार मानव तस्करी में देश में तीसरे स्थान पर था, किंतु नाबालिगों को बचाने के मामलों में पहले स्थान पर रहा। 
  • बिहार में तस्करी विरोधी तंत्र:
    • ज़िला स्तर पर तंत्र:
      • प्रत्येक ज़िले में मानव तस्करी विरोधी समिति और मानव तस्करी विरोधी कार्यबल (AHTTF) का गठन किया गया है, जो गोपनीय सूचना के आधार पर छापेमारी तथा बचाव अभियान संचालित करते हैं।
      • सीमावर्ती क्षेत्रों में सशस्त्र सीमा बल (SSB) द्वारा भी इसी प्रकार के अभियान संचालित किये जाते हैं।
    • पुनर्वास प्रक्रिया:
      • बचाए गए पीड़ितों का पुनर्वास बाल कल्याण समिति (CWC) और बाल देखभाल संस्थानों के माध्यम से किया जाता है।
    • मानव तस्करी से निपटने की चुनौतियाँ:
      • सीमा के निकटता से तस्करों के भागने में सुविधा मिलती है तथा सूचना में विलंब से बचाव अभियान प्रभावित होता है।
      • परिवारों का सहयोग न मिलना और सामाजिक कलंक पीड़ितों के पुनर्वास तथा पुनः एकीकरण में बाधा उत्पन्न करते हैं।
    • मानव तस्करी विरोधी रणनीति को सशक्त करने के प्रयास
      • बिहार राज्य सड़क और रेलवे मार्गों पर स्थानीय कर्मियों की तैनाती कर पीड़ितों की पहचान कर रहा है तथा NGO, पुलिस एवं कल्याण विभागों के साथ समन्वय को सशक्त बना रहा है।
      • इसके साथ ही, जन-जागरूकता, पीड़ितों के पुनः एकीकरण में सहायता तथा पुलिस के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOPs) जारी की जा रही हैं।


    बिहार Switch to English

    भिखारी ठाकुर को भारत रत्न

    चर्चा में क्यों?

    भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने केंद्रीय गृहमंत्री से भोजपुरी कवि, नाटककार, गायक और समाज सुधारक भिखारी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने का आग्रह किया है।

    • भिखारी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने की माँग का बिहार में कोई राजनीतिक विरोध नहीं है, जो उनके प्रति सभी दलों में व्यापक सम्मान को दर्शाता है।

    मुख्य बिंदु

    • भिखारी ठाकुर के बारे में:
      • भिखारी ठाकुर, जिनका जन्म वर्ष 1887 में बिहार के सारण ज़िले के कुतुबपुर दियारा गाँव में हुआ था, को अक्सर "भोजपुरी के शेक्सपियर" के रूप में जाना जाता है।
      • बाद में वे कलकत्ता (अब कोलकाता) चले गए, जहाँ उन्होंने प्रवासी श्रमिकों के संघर्षों को निकटता से देखा, जिसने उनके साहित्य को गहराई से प्रभावित किया।

    • साहित्यिक योगदान:
      • उन्होंने कुल 29 पुस्तकों की रचना की, जिनमें पहली पुस्तक 'बटोहीया' वर्ष 1912 में प्रकाशित हुई।
      • उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक 'बिदेशिया' प्रवासन के कारण उत्पन्न वियोग की पीड़ा को दर्शाता है।
      • 'बेटी बेचवा', 'गबर घिचोर' और 'अछूत की शिकायत' जैसे नाटकों के माध्यम से उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा तथा अछूत समस्या जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दों को उठाया।
      • 'अछूत की शिकायत' दलित पात्र हीरा डोम के जीवन पर आधारित है।
      • उन्होंने अपने साहित्य में बाल विवाह, जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता, नशाखोरी, प्रवासन तथा विस्थापन जैसे विषयों को प्रमुखता से स्थान दिया।
    • विरासत
      • भिखारी ठाकुर आज भी भोजपुरी स्वाभिमान और बिहार की सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं।
      • उनकी थिएटर परंपरा और संगीत आज भी जनस्तर पर सामाजिक सुधार को प्रेरित करने वाले प्रभावशाली माध्यम बने हुए हैं।


    छत्तीसगढ़ Switch to English

    बस्तर ओलंपिक को 'खेलो इंडिया ट्राइबल गेम्स' के रूप में राष्ट्रीय मान्यता

    चर्चा में क्यों?

    छत्तीसगढ़ में खेल और स्वास्थ्य क्षेत्रों से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ की गई हैं। बस्तर ओलंपिक को अब आधिकारिक रूप से ‘खेलो इंडिया ट्राइबल गेम्स के रूप में मान्यता प्रदान की गई है, जिससे इसे राष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्राप्त हो गया है।

    मुख्य बिंदु

    • आदिवासी खेलों को प्रोत्साहन
      • खेलो इंडिया योजना में “ग्रामीण और पारंपरिक/जनजातीय खेलों को बढ़ावा देने” के लिये एक समर्पित घटक शामिल है।
      • इस घटक के अंतर्गत अब तक मल्लखंभ, कलारीपयट्टू, गतका, थांग-ता, योगासन और सिलंबम जैसे पारंपरिक खेलों को बढ़ावा दिया गया है।
    • खेलो इंडिया योजना
    • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2016–17 में भारत में खेलों में जन सहभागिता एवं श्रेष्ठता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई थी। 
    • इस योजना को वर्ष 2025–26 तक विस्तारित किया गया है, जिसके लिये 3,790.50 करोड़ रुपए का वित्तीय परिव्यय निर्धारित किया गया है।
    • यह योजना देशभर में खेल अवसंरचना के विकास, प्रतियोगिताओं के आयोजन, प्रतिभा की पहचान तथा खेल अकादमियों को सहयोग प्रदान करने पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है।
    • यह योजना महिलाओं, विकलांगजन तथा पारंपरिक/आदिवासी खेलों के माध्यम से समावेशिता को भी बढ़ावा देती है। इसकी प्रमुख घटकों में शामिल हैं:
    • फिट इंडिया मूवमेंट
      • खेल मैदानों एवं कोचिंग प्रणाली का विकास
      • स्कूली बच्चों के लिये राष्ट्रीय शारीरिक दक्षता अभियान


    राजस्थान Switch to English

    राजस्थान पीड़ित प्रतिकर योजना, 2011

    चर्चा में क्यों?

    राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की कार्य योजना 2025–26 के अंतर्गत जारी दिशा-निर्देशों के अनुपालन में पीड़ित प्रतिकर योजना की बैठक जुलाई 2025 में आयोजित की गई।

    • इस बैठक में समिति द्वारा पीड़ित प्रतिकर योजना के तहत कुल 14.25 लाख रुपए की प्रतिकर राशि को स्वीकृति प्रदान की गई।

    मुख्य बिंदु

    • राजस्थान पीड़ित प्रतिकर योजना, 2011
      • इसका उद्देश्य अपराध के पीड़ितों या उनके आश्रितों को चिकित्सा व्यय, पुनर्वास और अंतिम संस्कार लागत के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
      • ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) या राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) द्वारा प्रशासित यह योजना उन पीड़ितों को सहायता प्रदान करती है, जिन्हें किसी अन्य योजना के तहत मुआवज़ा नहीं मिला है।
    • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण:
      • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) का गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत संविधान के अनुच्छेद 39A के अधिदेश को क्रियान्वित करने के लिये किया गया है, जो समान न्याय और निःशुल्क कानूनी सहायता सुनिश्चित करता है।
      • प्रत्येक राज्य सरकार समाज के कमज़ोर वर्गों को निःशुल्क एवं सक्षम कानूनी सेवाएँ प्रदान करने तथा विवादों के त्वरित समाधान के लिये लोक अदालतों का आयोजन करने हेतु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) की स्थापना करती है।
      • SLSA का नेतृत्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जो इसके मुख्य संरक्षक होते हैं तथा उच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश कार्यकारी अध्यक्ष होते हैं (जिन्हें मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राज्यपाल द्वारा नामित किया जाता है)।
      • यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक या सामाजिक बाधाओं के बावजूद न्याय सुलभ, समावेशी और सस्ता हो।


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