उत्तराखंड
भागीरथी नदी में गाद स्तर में वृद्धि
- 28 Nov 2025
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चर्चा में क्यों?
उत्तरकाशी (उत्तराखंड) में भागीरथी नदी में खतरनाक स्तर पर बालू एवं तलछट का संचयन हो रहा है, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि खुदाई पर प्रतिबंध से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है और नदी तट अस्थिर हो गए हैं, जिससे शहर की अवसंरचना पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
मुख्य बिंदु
मुद्दे के बारे में:
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने वर्ष 2012 में भागीरथी में खुदाई/उत्खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि नदी की पारिस्थितिकी संवेदनशीलता की सुरक्षा की जा सके, क्योंकि यह भागीरथी पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) के अंतर्गत आती है।
- अधिकारियों के अनुसार लगातार तलछट जमा होने से नदी का जलस्तर बढ़ गया है, विशेषकर उत्तरकाशी ज़िला मुख्यालय के पास, जिससे जल वहन क्षमता घट गई है।
- नदी तल ऊँचा होने के कारण अचानक बाढ़, तट कटाव और मानसून में अतिप्रवाह की संभावना बढ़ जाती है, जिससे नदी के निकट स्थित घर, बाज़ार तथा सरकारी भवनों को खतरा हो सकता है।
- राज्य सरकार एक प्रस्ताव तैयार कर रही है, जिसमें NGT से अनुरोध किया जाएगा कि अन्य हिमालयी राज्यों की बाढ़-प्रवण नदियों की तरह वैज्ञानिक तरीके से बालू और तलछट निकालने की अनुमति दी जाए।
भागीरथी नदी के बारे में:
- भागीरथी गंगा की दो प्रमुख धाराओं में से एक है और यह गंगोत्री (उत्तराखंड) के गौमुख ग्लेशियर से निकलती है।
- यह गंगोत्री-हर्षिल-उत्तरकाशी-टिहरी मार्ग से बहकर देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलती है और गंगा का निर्माण करती है।
- यह गंगोत्री – हर्षिल – उत्तरकाशी – टिहरी से प्रवाहित होती हुई देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है, जहाँ ये दोनों मिलकर गंगा का निर्माण करती हैं।
- गौमुख से उत्तरकाशी तक का क्षेत्र संवेदनशील हिमालयी पारिस्थितिकी का हिस्सा है और जल विद्युत, खनन तथा निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 2012 में इसे इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के रूप में अधिसूचित किया गया।
- यह क्षेत्र तीव्र ढाल, उच्च तलछट भार और भूस्खलन, बादल फटने तथा हिमनद पिघलने के प्रति संवेदनशील है, जिससे नदी तल की ऊँचाई बाढ़ जोखिम का महत्त्वपूर्ण कारण बनती है।