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राष्ट्रीय भूकंपीय जोखिम मानचित्र

  • 28 Nov 2025
  • 17 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय मानक ब्यूरो ने अद्यतन राष्ट्रीय भूकंपीय जोखिम मानचित्र जारी किया है, जिसमें संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र को नव-निर्मित उच्चतम जोखिम ज़ोन VI में रखा गया है, जो इसकी अत्यधिक विवर्तनिक संवेदनशीलता को दर्शाता है तथा राष्ट्रीय भूकंप-जोखिम मूल्यांकन में महत्वपूर्ण संशोधन करता है।

मुख्य बिंदु 

  • नवीन मानचित्र संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक) को ज़ोन VI में वर्गीकृत करता है, जो हिमालयी फ्रंटल थ्रस्ट पर लगातार बने रहने वाले टेक्टोनिक दबाव के कारण उच्चतम भूकंपीय जोखिम वाला क्षेत्र है।
  • भारत का लगभग 61% भूभाग अब मध्यम से उच्च भूकंपीय जोखिम वाले ज़ोन के रूप में वर्गीकृत है, जिसके लिये अद्यतन भवन संहिता (building codes), सख्त भूमि-उपयोग मानदंड (land-use norms) और अनिवार्य संरचनात्मक सुरक्षा अनुपालन (structural safety compliance) की आवश्यकता है।
  • अद्यतन क्षेत्रीकरण (zonation) में संभाव्य भूकंपीय जोखिम मॉडलिंग का उपयोग किया गया है, जिसमें सक्रिय भ्रंश, विदारण व्यवहार (rupture behaviour) और तनाव संचय (strain accumulation) पर नए डेटा को शामिल किया गया है तथा पुराने नियतात्मक मानचित्रों का स्थान लिया गया है।
  • संशोधित मानचित्र के तहत, दो जोखिम श्रेणियों के बीच की सीमा पर स्थित किसी भी शहर को उच्च जोखिम वाले ज़ोन (higher-risk zone) में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
  • भूकंपीय जोखिम न केवल पहाड़ी राज्यों में बल्कि हिमालय से सटे मैदानी इलाकों में भी बढ़ गया है, जिनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, पूर्वोत्तर, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली NCR के के भाग शामिल हैं।

भारत में भूकंपीय ज़ोन

  • भारत के पूर्व वर्गीकरण में ज़ोन II, III, IV, V थे - जिसमें ज़ोन V सबसे अधिक जोखिम वाला क्षेत्र था।
  • हिमालय विश्व के सबसे सक्रिय टकराव क्षेत्रों (collision zones) में से एक है, जो भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के अभिसरण (~5 सेमी/वर्ष) के कारण निर्मित हुआ है।
  • प्रमुख ऐतिहासिक भूकंप: कांगड़ा (1905), बिहार-नेपाल (1934), असम (1950), कश्मीर (2005), सिक्किम (2011), नेपाल (2015) हैं।
  •  IS 1893, IS 4326 और राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC) भूकंपीय सुरक्षा को नियंत्रित करते हैं; नवीन मानचित्र के लागू होने पर व्यापक संशोधन की आवश्यकता होगी।
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