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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘नेहरू युग में भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति सफलता एवं असफलता के विभिन्न चरणों से होकर गुजरी।’ इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

    09 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति को प्रायः नेहरू के दृष्टिकोण और अंतः प्रज्ञा पर ही पूर्णतः आधारित माना जाता है। शायद यही कारण था कि इसे एक सुसंगत और बोधगम्य नीति का रूप देने में कठिनाई उत्पन्न हुई। नेहरू द्वारा गुटनिरपेक्षता को भारतीय विदेश नीति का साधन व लक्ष्य-दोनों मान लेना एक गंभीर भूल मानी जाती है। उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर गुटनिरपेक्षता के प्रति विभिन्न दृष्टिकोणों को अपनाया जाना अधिक युक्तिसंगत होता परंतु नेहरू द्वारा किसी भी परिस्थिति में गुटनिरपेक्षता की नीति के मूल रूप को न त्यागने की जिद्द आत्मघाती बनी।

    1962 के भारत-चीन युद्ध मे ंपराजित होने के पश्चात् भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की कड़ी आलोचना हुई। आलोचकों का मानना था उस समय गुटनिरपेक्षता नीति अपनाकर राष्ट्रीय हितों की घोर उपेक्षा की गई। यदि भारत पश्चिमी गुट में शामिल होता तो चीन भारत पर आक्रमण का साहस भी न जुटा पाता। युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों से सहायता स्वीकारने को भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का उल्लंघन माना गया और इसे ‘भारत की सैद्धान्तिक नारेबाजी का खोखलापन’ की संज्ञा दी गई। इस प्रकार यह नीति भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करने में असफल रही। 

    परंतु, नेहरू का मानना था कि भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के प्रति प्रतिबद्धता के कारण ही उसे भारत-चीन युद्ध में अमेरिका और सोवियत दोनों की सहायता प्राप्त हुई। नेहरू ने स्पष्ट किया था कि भारत अपनी अखंडता की रक्षा के लिये विदेशी मदद लेने के बावजूद गुटनिरपेक्षता की नीति का त्याग नहीं करेगा। यही कारण है कि वही विदेशी सहायता स्वीकार की गई जिसके साथ किसी प्रकार की शर्तें नहीं जुड़ी थी। 

    इसके अलावा, विपरीत परिस्थितियों एवं घोर आलोचनाओं के बावजूद नेहरू काल में गुटनिरपेक्षता के सार व लक्ष्यों को सुरक्षित रखने में भारत काफी सीमा तक सफल रहा। इस नीति के सम्यक अनुपालन द्वारा ही भारत को तृतीय विश्व के नेतृत्वकर्त्ता का प्रभावपूर्ण दर्जा हासिल हुआ, जो आर्थिक व सैन्य रूप से कमजोर एक नव-स्वतंत्र देश के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात थी। निरस्त्रीकरण, गठबंधनहीनता, विकासशील देशों की आर्थिक जरूरतों को स्वीकार करने वाली विश्व व्यवस्था की स्थापना तथा इन देशों की स्वतंत्र विदेश नीति के प्रति भारतीय दृष्टिकोण को व्यापक स्तर पर स्वीकारा गया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि नेहरू युग में भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति ने किसी क्षेत्र में सफलता अर्जित की तो किसी मंच पर असफल भी रही।

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