इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वर्साय-संधि में जर्मनी के साथ ही की गई ‘ज्यादतियाँ’ दरअसल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के आचरण और युद्व समाप्ति पर विजेता राष्ट्रों के राजनयिकों की ‘मजबूरियों’ का परिणाम थी। विवेचना कीजिये।

    13 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के खिलाफ विश्व भर में घोर प्रचार हुआ था। लोगों के दिलों में यह बात ठूँस-ठूँसकर भर दी गई थी कि जर्मनी के लोग बर्बर हैं और उनका विनाश करके ही मानव-सभ्यता को फलने-फूलने का मौका दिया जा सकता है। स्वयं जर्मनी के आचरण ने इन प्रचारों और धारणाओं की पुष्टि की थी। जिस तरह जर्मनी द्वारा गैर-सैनिक नागरिकों को मारा गया, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व के प्राचीन भवनों को गिराया गया और जिस पैमाने पर नरसंहार और धन की बरबादी हुई थी, उससे चारों ओर घोर जर्मन-विरोधी भावना विद्यमान थी।

    विश्व युद्ध की समाप्ति के तुरंत पश्चात जब वर्साय-संधि की गई उस समय शत्रु द्वारा किये गए भयंकर विनाश और अपार कष्टों की स्मृति ताजी थी और विजित राष्ट्रों के विरूद्ध भावनाएँ बड़ी तीक्ष्ण थीं। यदि सम्मेलन में विजेता राष्ट्रों के प्रतिनिधि जर्मनी के प्रति नरमी का रूख अपनाते तो संभव था कि कुछ देशों में स्थापित सरकार के विरूद्ध विद्रोह हो जाता और ऐसे प्रतिनिधियों को अपने देश की राजनीति से छुट्टी ही मिल जाती। अतः मित्रराष्ट्रों के प्रतिनिधि संधि के मामले में स्वतंत्र नहीं थे। प्रत्येक अवसर पर उन्हें अपने देश के जनमत का खयाल रखना था।

    फिर, यह भी विचारणीय था कि यदि इस युद्ध में जर्मनी जीत गया होता तो पराजित मित्रराष्ट्रों के साथ उसका व्यवहार कैसा होता। इसकी झलक ‘ब्रेस्टलिटोब्स्क की संधि’ में देखी जा सकती है, जब रूस 1917 ई. की बोल्शेविक क्रांति के बाद प्रथम विश्व युद्ध से अलग हो गया था और जर्मनी के साथ उसे एक पृथक संधि करनी पड़ी थी। ‘ब्रेस्टलिटोब्स्क की संधि’ भी एक आरोपित संधि थी जिसके माध्यम से जर्मनी ने बोल्शेविक रूस पर वैसा ही अत्याचार किया था जैसा कि बाद में वर्साय की संधि ने उसके साथ किया। इस दृष्टि से 1919 ई. में मित्रराष्ट्रों ने तो केवल जर्मनी का ही अनुकरण किया।

    फिर भी, मित्रराष्ट्रों को युद्ध पश्चात् जर्मनी के साथ इतनी ज्यादतियाँ नहीं करके थोड़ा लचीला रूख अपनाना चाहिये या क्योंकि मित्रराष्ट्रों के जर्मनी के प्रति कड़े रूख और अमानवीय शर्तों ने ही द्वितीय विश्व युद्ध की आधारशिला रखी थी। इस परिप्रेक्ष्य में ही तो वर्साय की संधि को ‘शांति का अंत करने वाली संधि’ कहा गया है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2