इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    1934 में आंदोलन वापसी की घोषणा गांधी जी की राजनीतिक दूरदर्शिता की परिचायक थी। परीक्षण कीजिये।

    30 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में गांधी जी द्वारा आंदोलन शुरू किये जाने तथा वापस लिये जाने को संक्षेप में लिखें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में आंदोलन वापसी की घोषणा की तात्कालिक परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए गांधी जी के निर्णय की दूरदर्शिता का परीक्षण करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त और सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    1932 में फिर से शुरू किये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन को जब 1934 में गांधी जी ने वापस लेने की घोषणा की थी तो कॉन्ग्रेस के कई बड़े नेताओं में निराशा की भावना आ गई थी। कई लोगों ने तो गांधी जी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक कुशलता पर भी सवाल उठा दिये थे।

    वस्तुतः गांधी-इरविन समझौते की विफलता और द्वितीय गोलमेज़ सम्मेलन से निराश होकर लौटे गांधी जी ने कॉन्ग्रेस कार्यकारिणी के साथ विचार-विमर्श के बाद जनवरी 1932 में आंदोलन को फिर से शुरू करने का निर्णय किया। लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा आंदोलन को कुचलने के बर्बरतापूर्ण प्रयासों के कारण गांधी जी ने मई 1934 में आंदोलन वापसी की घोषणा कर दी। यद्यपि गांधी जी को इसके लिये आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा लेकिन आंदोलन की वापसी के लिये कुछ तात्कालिक परिस्थितियां उत्तरदायी थीं, जो कि निम्नलिखित हैं :

    • जनता अभी तक सत्याग्रह के उस संदेश को आत्मसात नहीं कर पाई थी, जिसके आधार पर इस आंदोलन की शुरुआत की गई थी। 
    • ब्रिटिश सरकार ने निर्ममतापूर्वक आंदोलन को दबाया जिसके लिये गरीब और असहाय जनता पर बेइंतहा ज़ुल्म किये गए।  
    • सरकार के दमनकारी रवैये ने जहाँ एक ओर आंदोलन को नेतृत्वहीनता और गतिहीनता प्रदान की, वहीं दूसरी ओर, आम जनता में भी निराशा की भावना घर करने लगी थी। 
    • जेल में राजनीतिक बंदियों और सत्याग्रहियों की संख्या घटने लगी थी और लोगों का उत्साह ठंडा पड़ने लगा था।

    यह एक अप्रत्याशित परंतु अवश्यंभावी निर्णय था। नेहरू जैसे साहसी और सक्रिय व्यक्ति ने भी गांधी जी के इस निर्णय पर दुःख प्रकट किया। सुभाषचंद्र बोस और विठ्ठल भाई पटेल जैसे नेताओं ने तो गांधी जी को राजनीतिक रूप से असफल घोषित कर दिया था।

    लेकिन हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिये कि कोई भी आंदोलन निरंतर बहुत लंबे समय तक नहीं चल सकता। आंदोलन वापसी का मतलब पराजय या पराभव नहीं होता। गांधी जी ने खुद इस बारे में कहा था : “जनता को अभी और अनुभवों और प्रशिक्षण की ज़रूरत है।” आंदोलन वापसी का कितना असर पड़ा था इस बात का पता तब चला जब 1934 में राजनीतिक बंदी जेल से रिहा होकर आए और जनता ने उनका इतना बड़ा स्वागत किया कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इसका दूसरा उदाहरण 1937 का चुनाव था जिसमें 11 प्रान्तों में से 6 प्रान्तों में कॉन्ग्रेस को बहुमत मिला था। गांधी जी के इस निर्णय का परोक्ष प्रभाव जनता को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोने के रूप में दिखा जो उस समय के पृथक निर्वाचन और पंचाट के चलते आपसी मतभेदों में उलझी हुई थी। साथ ही, इसने देश को राजनीतिक नेतृत्व के अंतराल के प्रश्न पर भी सोचने को विवश किया जिसने आगे की राह प्रशस्त की। 

    अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि समकालीन नेताओं में गांधी जी ही एक ऐसे नेता थे, जो सविनय अवज्ञा आंदोलन के चरित्र और उसके दूरगामी परिणाम को अच्छी तरह समझते थे।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2