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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    दादाभाई नौरोजी की भूमिका को मात्र उनके राजनीतिक योगदान की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। टिप्पणी करें।

    06 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा –

    • दादाभाई नौरोजी का व्यक्तिगत परिचय दें।
    • उनके राजनीतिक योगदान का संक्षिप्त विवरण दें। 
    • राजनीति के अतिरिक्त उनके विभिन्न विचारों और प्रयासों का उल्लेख करें।
    • निष्कर्ष

    दादाभाई नौरोजी एक महान व्यक्ति, कानून-निर्माता, विचारक, उद्योगपति और राजनीतिज्ञ थे। उनका जीवन कर्तव्य के प्रति समर्पण की एक गौरवशाली गाथा था। उनका मानना था कि राजनीतिक सत्ता का वास्तविक आधार कठोर बल नहीं, बल्कि न्याय तथा ह्रदय और भावनाओं का सम्मिलन है । संसदीय लोकतंत्र में उनका दृढ़ विश्वास था। 

    ब्रिटिश सरकार को भारत के मामलों की सही जानकारी देने के लिये उन्होंने 1867 में लंदन में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की। 1892 में लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस में चुनाव जीतने वाले वे पहले भारतीय बने। भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा इंग्लैंड के साथ-साथ भारत में भी करवाने का प्रस्ताव ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस में उनके ही प्रयासों से पारित हुआ। कालांतर में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों की भी अध्यक्षता की। 

    दादाभाई नौरोजी को भारतीय परिप्रेक्ष्य में उनकी राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ भारतीय समाज और नागरिकों के लिये किये गए अन्य प्रयासों के लिये भी जाना जाता है –

    • दादाभाई नौरोजी ने पश्चिमी उदार शिक्षा ग्रहण की थी, अतः उन्होंने भारत के लिये भी पश्चिमी शिक्षा प्रणाली की वकालत की।
    • उन्हें जातीय प्रतिबंधों में विश्वास नहीं था। वे महिला शिक्षा के भी समर्थक थे। उन्होंने महिलाओं और पुरुषों के लिये समान कानूनों का समर्थन किया था। 
    • वे पारसी धर्म को मानने वाले थे, परंतु उनका दृष्टिकोण कैथोलिक था। उन्होंने अपनी पुस्तक “द ड्यूटीज़ ऑफ द जोरोस्ट्रियंस” में विचार, भाषण और कार्य की शुद्धता की आवश्यकता पर बल दिया। 
    • वे प्रगतिशील विचारों वाले एक प्रखर राष्ट्रवादी थे। यद्यपि वे स्वदेशी के समर्थक थे, परंतु देश में प्रमुख उद्योगों की स्थापना के लिये आवश्यक मशीनीकरण का भी उन्होंने समर्थन किया। 
    • भारत के आर्थिक शोषण पर उनके शोध को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान के रूप में स्मरण किया जाता है। अपनी पुस्तक “पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया” में उन्होंने यह बतलाया कि भारत की गरीबी का कारण ब्रिटेन की ओर होने वाला भारत का “धन-निष्कासन” है। 

    इस प्रकार उनके लंबे और प्रतिष्ठित जीवन की दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ विदेशों में भारत के हितों की लगातार रक्षा करना और सार्वजनिक संवाद को आकार देने के लिये सांख्यिकी का प्रयोग करना आज भी प्रासंगिक है। सही मायने में वे भारतीय राष्ट्रवाद के पथ-प्रदर्शक थे। इसलिये कृतज्ञ भारतीय राष्ट्र आज भी उन्हें “ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया” के रूप में याद करता है।

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