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प्रश्न :
प्रश्न.प्रस्तावित जनांकिकीय मिशन का उद्देश्य जनसंख्या-नियंत्रण के परंपरागत मॉडल से हटकर जनसंख्या के 'सदुपयोग' और दीर्घकालिक 'समायोजन' पर केंद्रित नीति बनाना है। इसके संभावनाओं तथा नीतिगत अनिवार्यताओं का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
27 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रस्तावित जनांकिकीय मिशन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- इसकी संभावनाओं और नीतिगत अनिवार्यताओं का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
‘जनांकिकीय मिशन’ एक व्यापक राष्ट्रीय पहल है जिसका उद्देश्य भारत की बदलती जनसंख्या प्रवृत्तियों की सर्वेक्षण, प्रबंधन और विश्लेषण करना है। यह पारंपरिक ‘जनसंख्या नियंत्रण’ दृष्टिकोण से आगे बढ़ते हुए जनांकिक क्षमता के ‘संतुलित उपयोग’ पर बल देता है। इसका प्रमुख लक्ष्य अवैध प्रवासन को रोकना, जनांकिकीय असंतुलन से बचाव करना, असुरक्षित एवं जनजातीय समुदायों की रक्षा करना तथा प्रवासन से उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रभावों का अध्ययन करना है ताकि राष्ट्रीय स्थिरता और विकास में संतुलन बना रहे।
मुख्य भाग:
जनांकिकीय मिशन की आवश्यकता और संभावनाएँ
- अनियंत्रित आप्रवासन पर अंकुश लगाना और सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करना: अनियंत्रित अवैध आप्रवासन के कारण विशेष रूप से बांग्लादेश और म्याँमार से, असम, पश्चिम बंगाल एवं पूर्वोत्तर जैसे सीमावर्ती राज्यों में जनांकिकीय व सांस्कृतिक बदलावों में वृद्धि हो रही है।
- ये अंतर्वाह स्थानीय संसाधनों पर दबाव डालते हैं, जातीय तनाव बढ़ाते हैं और आंतरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करते हैं।
- मिशन का उद्देश्य मानवीय सिद्धांतों को बनाए रखते हुए प्रभावी सीमा प्रबंधन सुनिश्चित करना है।
- आंतरिक प्रवासन को संतुलित करना: 45 करोड़ से अधिक आंतरिक प्रवासियों के साथ, भारत मताधिकार से वंचित होने, कल्याणकारी योजनाओं से वंचित होने और सामाजिक हाशिये पर होने की चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- इस मिशन का उद्देश्य समावेशी शहरीकरण को बढ़ावा देना और एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड कार्यढाँचे के तहत राशन कार्ड एवं स्वास्थ्य सेवा तक अभिगम्यता जैसे अधिकारों को सुनिश्चित करना है।
- मानव पूँजी विकास: भारत की औसत आयु 29 वर्ष है — यह जनसांख्यिकीय लाभांश का अल्पकालिक अवसर है।
- यह मिशन शिक्षा, कौशल और स्वास्थ्य के माध्यम से युवाओं की ऊर्जा को उत्पादक शक्ति में रूपांतरित करने पर केंद्रित है।
- सामाजिक सुरक्षा और वृद्धावस्था की तैयारी: जहाँ वर्ष 2000 में औसत जीवन प्रत्याशा 63 वर्ष थी, वहीं वर्ष 2025 में यह 72 वर्ष हो गई है। वर्ष 2050 तक 60 वर्ष से ऊपर के लोगों की संख्या 15.4 करोड़ (2025) से बढ़कर 32 करोड़ होने का अनुमान है।
- मिशन का उद्देश्य बहु-स्तरीय पेंशन प्रणाली, ‘सक्रिय वृद्धावस्था’ की अवधारणा और सेवानिवृत्ति मानकों के पुनर्विचार पर बल देना है।
- नीति में जनांकिकीय संवेदनशीलता: केवल संख्याओं से परे यह मिशन जनसंख्या की गुणवत्ता और संरचना— आयु संरचना, लैंगिक संतुलन और कौशल पर बल देता है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, शहरीकरण एवं कल्याण संबंधी नीतियों में जनांकिकीय अंतर्दृष्टि को एकीकृत करता है।
- तकनीकी एकीकरण: यह मिशन वास्तविक काल की निगरानी के लिये बड़े डेटा, उपग्रह मानचित्रण और बायोमेट्रिक्स का लाभ उठाते हुए AI-आधारित जनांकिकीय शासन का प्रस्ताव करता है।
- डिजिटल जनगणना- 2027 और राष्ट्रीय शरणार्थी कानून डेटा-संचालित और क्षेत्र-विशिष्ट नियोजन की ओर बदलाव को दर्शाते हैं।
प्रमुख चुनौतियाँ
- सीमा प्रबंधन की कमियाँ: भारत की बांग्लादेश (4,096 किमी) और म्याँमार (1,643 किमी) से लगी सीमाएँ अत्यधिक भेद्य हैं, जिससे अवैध आव्रजन, तस्करी और उग्रवाद जैसी गतिविधियों में वृद्धि होती है।
- राजनीतिक और सामाजिक संवेदनशीलताएँ: प्रवासन के मुद्दे (विशेष रूप से बांग्लादेश से) राजनीतिक रूप से प्रभावित हैं, जिससे सामाजिक तनाव और क्षेत्रीय अशांति उत्पन्न होती है। ऐसे में सुरक्षा और समावेशन के बीच संतुलन बनाना चुनौती है।
- क्षेत्रीय प्रजनन असमानताएँ: बिहार में प्रजनन दर (2.8–3.0) प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से अधिक है जबकि केरल, तमिलनाडु और दिल्ली में यह 1.5 से भी कम है। यह नीतिगत संतुलन और संसाधन वितरण को जटिल बनाता है।
- युवा बेरोज़गारी और कौशल असंगतता: वर्ष 2022 में भारत के 83% युवा बेरोज़गार थे, जो प्रशिक्षण और रोज़गार सृजन के बीच संरचनात्मक अंतर को दर्शाता है।
- लैंगिक असमानताएँ: महिलाओं की श्रम भागीदारी दर केवल 41.7% है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में यह और कम है, जिससे जनांकिक उत्पादकता सीमित होती है।
- संसाधन और पर्यावरणीय दबाव: भारत विश्व की 2.4% भूमि पर वैश्विक जनसंख्या के 18% का भरण-पोषण करता है, जिससे जल, भूमि और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर दबाव पड़ रहा है। तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन ने स्थिरता की चुनौतियों को बढ़ा दिया है।
नीतिगत अनिवार्यताएँ और आगे की राह
- राष्ट्रीय जनांकिकी सूचना ढाँचा: लक्षित, डेटा-संचालित नीतियों को सक्षम बनाने के लिये एक एकीकृत जनांकिकीय प्लेटफॉर्म हेतु जनगणना, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS), श्रम ब्यूरो एवं आधार से डेटा को एकीकृत किया जाना आवश्यक है।
- सीमा और प्रवासन प्रबंधन: ड्रोन, नाइट-विज़न कैमरे, मोशन सेंसर एवं AI-आधारित निगरानी के साथ एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS) को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- समानांतर रूप से, विधिक और कल्याणकारी सुरक्षा उपायों के साथ मानवीय प्रवासन नीतियों को अपनाया जाना आवश्यक है।
- कौशल और रोज़गार सृजन: पिछड़े क्षेत्रों में कौशल भारत का विस्तार किया जाना चाहिये, प्रशिक्षण को उद्योग की ज़रूरतों के अनुरूप बनाया जाना चाहिये और प्रशिक्षुता का विस्तार किया जाना चाहिये।
- वर्ष 2018-2024 के दौरान, भारत में 17 करोड़ औपचारिक नौकरियों का सृजन हुआ, यह एक ऐसा रुझान है जिसे युवा-केंद्रित आर्थिक नियोजन के माध्यम से जारी रखना आवश्यक है।
- क्षेत्रीय समता: पिछड़े राज्यों में निवेश को दिशा देने के लिये मानव क्षमता सूचकांक विकसित किया जाना चाहिये।
- समावेशी विकास के लिये स्वास्थ्य और साक्षरता के क्षेत्र में केरल की सफलता का अनुकरण किया जाना चाहिये।
- वृद्धावस्था और सामाजिक सुरक्षा: वृद्धावस्था की चुनौती से निपटने के लिये बहु-स्तरीय पेंशन प्रणालियों का गठन किया जाना चाहिये, आजीवन शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये और वृद्धावस्था स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत बनाया जाना चाहिये।
- संस्थागत समन्वय: केंद्र और राज्य के प्रयासों में सामंजस्य स्थापित करने और सभी क्षेत्रों में जनांकिकीय विचारों को एकीकृत करने के लिये एक राष्ट्रीय जनांकिकी एवं प्रवासन आयोग की स्थापना की जानी चाहिये।
- पर्यावरणीय एकीकरण: सतत् शहरी और पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करने के लिये जनांकिकीय नियोजन को स्मार्ट सिटी मिशन, AMRUT एवं स्वच्छ गंगा मिशन के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत का ‘जनांकिक मिशन’ जनसंख्या नियंत्रण से आगे बढ़कर ‘जनांकिक अनुकूलन’ की दिशा में एक रूपांतरणकारी पहल है। इसका उद्देश्य युवाओं की क्षमता का सदुपयोग करना, प्रवासन का संतुलित प्रबंधन करना और वृद्धावस्था की तैयारी को सुदृढ़ करना है। जैसा ऑगस्ट कॉम्टे ने कहा था, “जनांकिकी ही नियति है।” संस्थागत सुधार, तकनीकी नवाचार और सहभागितापूर्ण शासन के माध्यम से भारत अपनी जनांकिक विविधता को एक ‘सुदृढ़, न्यायसंगत एवं भविष्य-दृष्टि संपन्न’ शक्ति में बदल सकता है।
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