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प्रश्न :
प्रश्न. डिजिटल मीडिया के उदय ने भारतीय समाज की पारंपरिक संरचना को परिवर्तित कर दिया है। समकालीन भारत में सामाजिक व्यवहार, राजनीतिक भागीदारी और पहचान निर्माण पर सोशल मीडिया के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
07 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सोशल मीडिया के उदय और भारतीय समाज पर इसके प्रभाव के बारे में जानकारी देकर उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- सामाजिक व्यवहार, राजनीतिक सहभागिता और पहचान निर्माण पर इसके प्रभाव को अलग-अलग रूप में व्याख्या कीजिये।
- सोशल मीडिया के विनियमन को सुदृढ़ करने के उपाय सुझाइये।
- किसी प्रासंगिक उद्धरण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सोशल मीडिया के उदय ने भारतीय समाज को उल्लेखनीय रूप से बदल दिया है, जिससे प्रभावित होकर व्यक्ति समन्वय करते हैं, राजनीतिक रूप से जुड़ते हैं और अपनी पहचान को आकार देते हैं। 60 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के साथ, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म संचार के माध्यम मात्र नहीं रह गये हैं, बल्कि वे सामाजिक परिवर्तन, जनसंगठनों की सक्रियता एवं राजनीतिक विमर्श के सशक्त औज़ार बन चुके हैं।
मुख्य भाग:
सामाजिक व्यवहार पर सोशल मीडिया का प्रभाव:
- संचार पैटर्न में परिवर्तन: सोशल मीडिया ने संचार को तात्कालिक और व्यापक बनाकर इसमें क्रांति ला दी है।
- व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप जैसे प्लेटफॉर्मों के कारण आभासी समुदायों का उदय हुआ है, जिससे लोग विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में एक-दूसरे से जुड़े रह सकते हैं।
- हालाँकि, इस बदलाव के कारण आमने-सामने की बातचीत में कमी आई है और डिजिटल निर्भरता का विकास हुआ है।
- सामाजिक प्रभाव और प्रवृत्तियों का उदय: सोशल मीडिया लाइक, शेयर और टिप्पणियों के माध्यम से साथियों के प्रभाव को बढ़ावा देता है।
- इसने ‘वायरलिटी की संस्कृति’ को जन्म दिया है, जहाँ सामाजिक व्यवहार प्रायः ऑनलाइन रुझानों और प्रभावशाली लोगों द्वारा संचालित होता है। यह उपभोग पैटर्न, जीवनशैली और विचारों को प्रभावित करता है, विशेषकर युवा पीढ़ी के बीच।
- #VeganMovement जैसे रुझानों ने ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से महत्त्वपूर्ण गति प्राप्त की तथा सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करते हुए सामाजिक मुद्दों को उजागर किया।
- सामाजिक कौशल में गिरावट: डिजिटल मीडिया ने सुविधा तो प्रदान की है, लेकिन इसने पारंपरिक सामाजिक कौशल को भी नष्ट कर दिया है। युवा पीढ़ी को प्रायः व्यक्तिगत बातचीत में शामिल होना अधिक कठिन लगता है, जिसका असर उनके पारस्परिक संबंधों और भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर पड़ता है।
- अध्ययनों से पता चला है कि भारत में सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से किशोरों में, साइबर बुलिंग या ऑनलाइन कम्पैरिज़न के कारण चिंता और अवसाद जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं।
राजनीतिक भागीदारी पर सोशल मीडिया का प्रभाव:
- राजनीतिक आवाज़ों का प्रवर्द्धन: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने राजनीतिक विमर्श को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे सभी पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति मिलती है।
- इससे सीमांत समूहों को आवाज़ मिली है और उन राजनीतिक मुद्दों को उठाने में मदद मिली है, जो अन्यथा अनदेखे रह जाते।
- वर्ष 2020 के किसान आंदोलन ने समर्थन जुटाने के लिये सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर उपयोग किया, जिसमें फेसबुक और ट्विटर का उपयोग विरोध प्रदर्शन आयोजित करने तथा जागरूकता बढ़ाने के लिये किया गया।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: यद्यपि सोशल मीडिया ने राजनीतिक भागीदारी बढ़ाई है, लेकिन इसने ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा दिया है।
- फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्मों पर एल्गोरिदम प्रायः उस विषय-वस्तु को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं जो उपयोगकर्त्ताओं की मौजूदा मान्यताओं के अनुरूप होती है, जिसके परिणामस्वरूप इको-चैम्बर्स का निर्माण होता है।
- वर्ष 2019 और 2024 के भारतीय आम चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को लक्षित कंटेंट के साथ लक्षित करने के लिये सोशल मीडिया का रणनीतिक उपयोग देखा गया, जिससे प्रायः विचारों में ध्रुवीकरण हुआ और विभाजन बढ़ गया।
- गलत सूचना और फर्ज़ी समाचार: फर्ज़ी समाचार, गलत सूचना और अभद्र भाषा का प्रसार सोशल मीडिया पर एक बड़ी चुनौती बन गया है।
- वर्ष 2019 के आम चुनावों के दौरान व्हाट्सएप पर भेजे गए संदेशों, विशेष रूप से राजनीतिक उम्मीदवारों के बारे में फर्ज़ी खबरों ने मतदाता व्यवहार को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पहचान निर्माण पर सोशल मीडिया का प्रभाव:
- डिजिटल पहचान का निर्माण: सोशल मीडिया व्यक्तियों को स्वयं का एक सुव्यवस्थित संस्करण प्रस्तुत करने की अनुमति देता है, जिससे डिजिटल पहचान का निर्माण होता है।
- ये पहचानें प्रायः वास्तविक जीवन के व्यक्तित्वों की तुलना में ज़्यादा परिष्कृत और आदर्श होती हैं। यह आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है और व्यक्ति अपनी सामाजिक स्थिति को कैसे देखता है, इस पर भी असर डालता है।
- इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म उपयोगकर्त्ताओं को एक निश्चित जीवनशैली को दर्शाने वाले फोटो और वीडियो साझा करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं, जिससे प्रायः प्रतिस्पर्द्धा एवं तुलना की भावना उत्पन्न होती है, विशेष रूप से युवाओं में।
- सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान की पुष्टि: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ऐसे स्थान बन गए हैं जहाँ लोग अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मुखर एवं सुदृढ़ करते हैं। समुदाय अपनी विरासत को साझा कर सकते हैं, जिससे जुड़ाव तथा एकजुटता की भावना बढ़ती है।
- #DalitLivesMatter जैसे हैशटैग के उदय ने सीमांत समुदायों को जातिगत भेदभाव से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने और सामाजिक न्याय की वकालत करने के लिये एक मंच प्रदान किया है।
- स्थानीय पहचान पर वैश्वीकरण का प्रभाव: यद्यपि सोशल मीडिया वैश्विक स्तर पर व्यक्तियों को जोड़ता है, इसने कुछ मामलों में स्थानीय संस्कृतियों के क्षरण को भी बढ़ावा दिया है। पाश्चात्य आदर्श, जीवन शैली और सांस्कृतिक मानदंड प्रायः ऑनलाइन स्थानों पर हावी होते हैं, जिससे भारत में युवा लोगों की आत्म-पहचान में बदलाव होता है।
- पश्चिमी फैशन प्रवृत्तियों, संगीत (जैसे के-पॉप) और जीवनशैली विकल्पों की बढ़ती लोकप्रियता भारतीय युवाओं की आकांक्षाओं व पहचान को प्रभावित कर रही है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में।
सामाजिक व्यवहार, राजनीतिक जुड़ाव और पहचान निर्माण पर सोशल मीडिया के गहन प्रभाव को देखते हुए, इसके संभावित नुकसान को कम करते हुए इसके सकारात्मक प्रभाव को विनियमित करने एवं बढ़ाने के लिये प्रभावी उपायों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है। निम्नलिखित उपाय इस संतुलन को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं:
- डिजिटल आचार संहिता के माध्यम से व्यापक सोशल मीडिया विनियमन: सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के अनुसार एक विस्तृत डिजिटल आचार संहिता पेश की जानी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्लेटफॉर्म नैतिक सामग्री-साझाकरण मानकों का पालन करें।
- इसे श्रेया सिंघल मामले में दिये गए फैसले के आधार पर बनाया जाना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऑनलाइन स्पीच का कोई भी विनियमन संविधान के दायरे में रहे और इससे मनमाना सेंसरशिप न हो।
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (PDPB) का त्वरित कार्यान्वयन: यह सुनिश्चित करेगा कि व्यक्तिगत जानकारी केवल सूचित सहमति से एकत्रित, संग्रहीत और साझा की जाए, जिससे गोपनीयता बढ़ेगी तथा दुरुपयोग को रोका जा सकेगा, जो आज की डेटा-संचालित दुनिया में महत्त्वपूर्ण है।
- स्कूलों में अनिवार्य डिजिटल साक्षरता और साइबर नैतिकता पाठ्यक्रम: शैक्षिक पाठ्यक्रम में अनिवार्य डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम शुरू करने से युवाओं को सोशल मीडिया का जिम्मेदारी से उपयोग करने के लिये आवश्यक कौशल से तैयार किया जा सकता है।
- छात्रों को ऑनलाइन नैतिकता, गोपनीयता संरक्षण और डिजिटल सुरक्षा के बारे में प्रशिक्षित करने से जागरूक उपयोगकर्त्ताओं की एक पीढ़ी तैयार होगी, जो ऑनलाइन हेरफेर के प्रति कम संवेदनशील होंगे तथा अपनी ऑनलाइन भागीदारी में अधिक जिम्मेदार होंगे।
- एल्गोरिदम हेरफेर के लिये जवाबदेही का कड़ा प्रवर्तन: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म प्रायः एल्गोरिदम के माध्यम से उपयोगकर्त्ता फीड में हेरफेर करते हैं जो सनसनीखेज़ या विभाजनकारी कंटेंट को बढ़ावा देते हैं।
- विनियमों में एल्गोरिदम में पारदर्शिता लागू की जानी चाहिये, प्लेटफॉर्मों को यह बताना अनिवार्य किया जाना चाहिये कि कंटेंट को कैसे प्राथमिकता दी जाती है और ऑनलाइन अनुभव को आकार देने के लिये उपयोगकर्त्ता डेटा का उपयोग कैसे किया जाता है।
- इससे इको-चैम्बर्स, फिल्टर बबल्स और हानिकारक कंटेंट के प्रवर्द्धन के खतरों को कम करने में सहायता मिलेगी।
निष्कर्ष:
सोशल मीडिया से भारतीय समाज में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं। इसने सामाजिक व्यवहार, राजनीतिक जुड़ाव और पहचान निर्माण को बढ़ाया है, लेकिन इसने ध्रुवीकरण, गलत सूचना एवं पारंपरिक मानदंडों के क्षरण जैसी चुनौतियाँ भी पेश की हैं। "हम अपने संचार के साधनों को जितना विस्तृत करेंगे, हम उतना ही कम संवाद करेंगे।"
इसलिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि इसके लाभ नुकसान से अधिक हैं, डिजिटल स्पेस को जिम्मेदारी से नेविगेट करना आवश्यक है।To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
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