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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भू-आकृतियों को आकार देने में विवर्तनिकी गतिविधियों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। अपरदन एवं निक्षेपण क्रियाएँ, विभिन्न स्थलाकृतियों के निर्माण में किस प्रकार योगदान देती हैं? (250 शब्द)

    15 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • विवर्तनिकी गतिविधियों के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भू-आकृतियों को आकार देने में विवर्तनिकी गतिविधियों की भूमिका का वर्णन कीजिये।
    • बताइये कि अपरदन एवं निक्षेपण जैसी क्रियाएँ, विभिन्न भू-आकृतिक विशेषताओं के निर्माण में किस प्रकार योगदान देती हैं।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    पृथ्वी की लिथोस्फेरिक प्लेटों की गति से प्रेरित विवर्तनिकी गतिविधियाँ, विश्व भर में भू-आकृतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन प्रक्रियाओं में भू-गर्भीय घटनाओं की विविध शृंखला जैसे- भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट तथा पर्वत शृंखलाओं का निर्माण शामिल है।

    मुख्य भाग:

    विवर्तनिकी गतिविधियाँ और भू-आकृति:

    • प्लेट विवर्तनिकी:
      • पृथ्वी का स्थलमंडल कई बड़ी प्लेटों में विभाजित है जो अर्द्ध-तरल अवस्था वाले दुर्बलतामंडल पर तैरता है।
      • मेंटल संवहन जैसी प्रक्रियाओं द्वारा प्रेरित इन प्लेटों की गति क्षेपण, टकराव और विचलन जैसी विवर्तनिकी गतिविधियों का कारण बनती है।
    • पर्वतों का निर्माण:
      • अभिसारी प्लेट सीमाएँ (जहाँ प्लेटें टकराती हैं) पर्वत शृंखलाओं का निर्माण करती हैं।
      • उदाहरण के लिये, विश्व की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला (हिमालय) भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के बीच टकराव का परिणाम है।
    • दरार घाटियाँ:
      • अपसारी प्लेट सीमाओं (जहाँ प्लेटें एक-दूसरे से दूर जाती हैं) पर दरार घाटियाँ बनाती हैं। पूर्वी अफ्रीकी दरार प्रणाली इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जहाँ अफ्रीकी प्लेट छोटी प्लेटों में विभाजित हो रही है, जिससे ग्रेट रिफ्ट वैली जैसी दरार घाटियों का निर्माण हो रहा है।

    अपरदन एवं निक्षेपण प्रक्रियाएँ:

    • अपक्षय:
      • अपक्षय (पृथ्वी की सतह पर या उसके निकट चट्टानों का टूटना), भू-आकृति विज्ञान में एक मूलभूत प्रक्रिया है।
      • यांत्रिक और रासायनिक अपक्षय से चट्टानें कमज़ोर हो जाती हैं, जिससे उनका क्षरण आसान हो जाता है।
    • अपरदन:
      • इसमें जल, वायु, बर्फ और गुरुत्वाकर्षण जैसे कारकों द्वारा अपक्षयित चट्टान का स्थानांतरण शामिल है।
      • नदियाँ, ग्लेशियर, वायु और लहरें ऐसी प्रमुख अपरदनकारी शक्तियाँ हैं जो समय के साथ स्थलाकृतिक परिदृश्य को आकार देती हैं।
    • निक्षेपण:
      • जब अपरदित पदार्थ नए स्थानों पर एकत्रित हो जाते हैं तब इसे निक्षेपण कहा जाता है।
      • जमा हुई तलछट के संचय और संघनन से बनी तलछटी चट्टानें इन प्रक्रियाओं के उदाहरण हैं।

    भू-आकृतियों का निर्धारण:

    • नदी घाटियाँ और बाढ़ के मैदान:
      • नदियों के प्रवाह से समय के साथ घाटियों और बाढ़ के मैदान बन जाते हैं।
      • बाढ़ के दौरान तलछट के जमाव से कृषि के संदर्भ में उपजाऊ मैदानों ज्वारनदमुख के निर्माण में योगदान मिलता है।
    • तटीय भू-आकृतियाँ:
      • तटीय कटाव और निक्षेपण से समुद्र तटों एवं चट्टानों के साथ का निर्माण होता है।
      • उदाहरण के लिये, लहरों एवं धाराओं की क्षरणकारी क्रियाओं से समुद्र तटों के किनारे तटीय मेहराब बनते हैं।

    • हिमनद भू-आकृतियाँ:
      • ग्लेशियर, अपरदन के शक्तिशाली कारक हैं जिनसे सर्क, U-आकार की घाटियाँ और मोरेन जैसी भू-आकृतियाँ बनती हैं।
      • ग्लेशियरों में कमी आने से पूर्व की जलवायु परिस्थितियों के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि मिलती है।
    • कार्स्ट स्थलाकृति:
      • कार्स्ट स्थलाकृति, जिसमें चूना पत्थर के क्षरण से गुफाओं, सिंकहोल एवं भूमिगत जल निकासी प्रणालियों का निर्माण शामिल है, रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं का परिणाम है।

    निष्कर्ष:

    विवर्तनिकी गतिविधियाँ, अपरदन तथा निक्षेपण परस्पर संबंधित प्रक्रियाएँ हैं जिनसे समय के साथ स्थलाकृतियों को आकार मिलता है। विशाल पर्वत शृंखलाओं से लेकर टेढ़ी-मेढ़ी नदी घाटियों के रूप में इन बलों की गतिशील परस्पर क्रिया द्वारा विविध भू-आकृतियों का निर्माण होता है।

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