इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को वैध बनाने की आवश्यकता एवं व्यवहार्यता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    28 Feb, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैध बनाने की आवश्यकता का वर्णन कीजिये।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैध बनाने में प्रमुख चुनौतियों को बताइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सरकार द्वारा निर्धारित एक मूल्य स्तर है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसानों को उनकी कृषि उपज के लिये न्यूनतम मूल्य प्राप्त हो। सरकार 22 अनिवार्य फसलों के लिये MSP और गन्ने के लिये उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP) की घोषणा करती है।

    मुख्य भाग:

    न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैध बनाने की आवश्यकता पर तर्क देने वाले कुछ बिंदु:

    • कृषि की वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करना: MSP को वैध बनाना यह सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी उपज हेतु न्यूनतम मूल्य प्राप्त हो, उन्हें बाज़ार के उतार-चढ़ाव से बचाया जाए और उनके निवेश तथा श्रम पर उचित रिटर्न सुनिश्चित किया जाए। MSP कृषि उपज का न्यूनतम मूल्य है, जो कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
    • किसानों पर ऋण का बोझ कम करना: MSP में न्यूनतम वृद्धि के कारण और उन्हें घोषित MSP प्राप्त नहीं होने के कारण किसानों पर ऋण का बोझ बढ़ रहा है। यदि किसान को अपनी उपज वादे किये गए MSP से कम कीमत पर बेचनी पड़े, तो यह किसानों के लिये अर्थहीन हो जाता है। इसलिये MSP की कानूनी गारंटी आवश्यक है।
      • किसानों पर कुल बकाया कर्ज़ 31 मार्च, 2014 को 9.64 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 23.44 लाख करोड़ रुपए हो गया।
    • किसानों की आजीविका का समर्थन: MSP को वैध बनाने से लाखों किसानों, विशेष रूप से छोटे और हाशिये पर रहने वाले किसानों की आजीविका का समर्थन करने में सहायता मिलती है, जो बाज़ार की अनिश्चितताओं के प्रति संवेदनशील हैं।
      • देश की लगभग 50% आबादी की आजीविका कृषि एवं कृषि से संबंधित गतिविधियों पर निर्भर करती है।
    • जोखिम न्यूनीकरण: प्राकृतिक आपदाएँ और बाज़ार का सामर्थ्य किसानों को नुकसान पहुँचा रहा है। जलवायु परिवर्तन खेती की जटिलता को बढ़ा रहा है। किसान को मौसम और बाज़ार के सामर्थ्य की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता।
      • MSP को वैध बनाने से एक सुरक्षा जाल मिलता है, जिससे प्रतिकूल बाज़ार परिस्थितियों के दौरान किसानों के लिये आय हानि का जोखिम न्यूनतम हो जाता है।
    • असमानताओं को संबोधित करना: शांता कुमार समिति ने वर्ष 2015 में निष्कर्ष निकाला कि केवल 6% किसानों को समर्थन मूल्य योजना से लाभ हुआ। MSP को वैध बनाने से किसानों को सीधे एक समान मूल्य की गारंटी प्रदान करके इन मुद्दों को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • मात्र वर्ष 2019-20 में तीन राज्यों – पंजाब, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश – ने गेहूँ की खरीद का 85% हिस्सा लिया।

    MSP को वैध बनाने में प्रमुख चुनौतियाँ:

    • वित्तीय बोझ: MSP पर फसलों की खरीद के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है और ऐसे खरीद कार्यों को बनाए रखने से सरकारी वित्त पर दबाव पड़ सकता है।
      • मांग और आपूर्ति पक्ष के कारकों द्वारा समर्थित नहीं होने पर कानूनी MSP काम नहीं कर सकता है।
    • निवेश के लिये हतोत्साहित: कानूनी MSP कृषि में निजी निवेश को हतोत्साहित कर सकता है, मूलतः MSP के तहत आने वाली फसलों में।
      • निजी अभिकर्त्ता उन क्षेत्रों में निवेश करने में संकोच कर सकते हैं, जहाँ मूल्य निर्धारण में सरकारी हस्तक्षेप प्रचलित है जिससे नवाचार और आधुनिकीकरण के प्रयास सीमित हो गए हैं।
    • जल की कमी को बढ़ाना: धान और गन्ना जैसी MSP समर्थित फसलें जल की अधिक खपत करती हैं, जिससे उन क्षेत्रों में जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है जहाँ उनकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।
    • गैर-MSP फसलों की उपेक्षा: MSP को वैध बनाने से गैर-MSP फसलों की उपेक्षा हो सकती है, जिससे पौष्टिक खाद्य फसलों, दालों और तिलहनों की खेती में कमी आएगी।
      • इसका खाद्य सुरक्षा, आहार विविधता और पोषण संबंधी परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषतः कमज़ोर आबादी के बीच।
    • व्यापार विवाद: MSP को वैध बनाने से आयातक देशों के साथ व्यापार विवाद हो सकता है, मूलतः यदि सरकार MSP कीमतों को बनाए रखने के लिये सब्सिडी या अन्य प्रकार का समर्थन प्रदान करती है।

    अग्रिम मार्ग के रूप में कई उपायों पर विचार किया जा सकता है:

    • संतुलित कृषि मूल्य निर्धारण नीति: सरकार को MSP और प्रत्यक्ष आय सहायता योजनाओं जैसे तंत्रों के माध्यम से कृषि उपज हेतु लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिये कृषि मूल्य निर्धारण नीति में एक उपयुक्त बदलाव लाना चाहिये।
      • स्वामीनाथन समिति की सिफारिश को लागू करना: आयोग ने सिफारिश की कि MSP उत्पादन की भारित औसत लागत (CoP) से कम-से-कम 50% अधिक होनी चाहिये, जिसे वह सी2 लागत के रूप में संदर्भित करता है।
      • एमएसपी मानदंड का विस्तार: MSP निर्धारित करते समय किसान द्वारा अपने परिवार के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर किये गए औसत व्यय को भी शामिल किया जाना चाहिये।
      • मूल्य कमी भुगतान (PDP): इसमें सरकार को किसी भी फसल की भौतिक रूप से खरीद या स्टॉक नहीं करना है और किसानों को केवल बाज़ार मूल्य एवं MSP के बीच अंतर का भुगतान करना है, यदि MSP कम है। ऐसा भुगतान उनके द्वारा निजी व्यापार को बेची गई फसल की मात्रा पर होगा।
    • किसानों की आय बढ़ाना: सरकार को कृषि गतिविधियों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGA) के अंतर्गत लाना चाहिये और दैनिक मज़दूरी में भी वृद्धि करनी चाहिये।
      • किसानों की आय के अवसरों को बढ़ाने के लिये फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना और उच्च मूल्य एवं जलवायु-लचीली फसलों को बढ़ावा देना।
    • कृषि बुनियादी ढाँचे में निवेश: कृषि उत्पादकता और बाज़ार पहुँच बढ़ाने के लिये सिंचाई सुविधाओं, सड़कों, विद्युतीकरण एवं भंडारण क्षमताओं जैसे ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना।
      • अनुसंधान एवं विकास, विस्तार सेवाओं और आधुनिक कृषि आदानों तथा प्रथाओं तक पहुँच के माध्यम से कृषि में प्रौद्योगिकी अपनाने व नवाचार को बढ़ावा देना।
      • अशोक दलवई समिति के प्रस्ताव के अनुसार कृषि और सिंचाई में सार्वजनिक निवेश 14% प्रति वर्ष की दर से बढ़ना चाहिये। इसके अलावा, मौजूदा प्रमुख-मध्यम सिंचाई परियोजनाओं की पूंजी उपयोग दक्षता में सुधार होना चाहिये।
    • किसानों को सशक्त बनाना: सामूहिक सौदेबाज़ी, बाज़ारों तक पहुँच और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भागीदारी को सक्षम करने के लिये किसान संगठनों, सहकारी समितियों एवं उत्पादक समूहों को मज़बूत करना।
      • संकट की अवधि, जैसे कि फसल की विफलता, प्राकृतिक आपदाओं, या बाज़ारू आघात के दौरान कमज़ोर कृषक परिवारों को आय और आजीविका सहायता प्रदान करने के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल एवं बीमा योजनाओं का विस्तार करना।

    निष्कर्ष:

    भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिये भारत में किसानों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना आवश्यक है। कृषि में निवेश करके और किसानों का कल्याण सुनिश्चित करके, भारत अपने सभी नागरिकों के लिये अधिक लचीला एवं समृद्ध भविष्य का निर्माण कर सकता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2