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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में प्राकृतिक वनस्पति की विविधता के लिये उत्तरदायी कारकों को पहचानिये और उनकी विवेचना कीजिये। भारत के वर्षा-वन क्षेत्रों में वन्यजीव अभयारण्यों के महत्त्व का आकलन कीजिये। ( 250 शब्द, UPSC मुख्य परीक्षा 2023)

    25 Dec, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में प्राकृतिक वनस्पति की विविधता में योगदान देने वाले कारकों का संदर्भ प्रदान करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में प्राकृतिक वनस्पति की विविधता के लिए ज़िम्मेदार कारकों तथा वर्षावन क्षेत्रों में वन्यजीव अभयारण्यों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • प्राकृतिक वनस्पति की विविधता को प्रभावित करने वाले कारकों एवं पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में अभयारण्यों की भूमिका को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    विविध भौगोलिक, जलवायु और पारिस्थितिकी कारकों के परिणामस्वरूप भारत की प्राकृतिक वनस्पति उल्लेखनीय विविधता प्रदर्शित करती है।

    मुख्य भाग:

    • भारत में प्राकृतिक वनस्पति की विविधता के महत्त्वपूर्ण कारक:
      • भौगोलिक विविधता: भारत की व्यापक और विविध भौगोलिक विशेषताओं (उत्तरी हिमालय से लेकर दक्षिणी तट तक) के परिणामस्वरूप यहाँ जलवायु परिस्थितियों की भिन्नता के साथ विविध पारिस्थितिकी तंत्र एवं वनस्पतियों का विकास हुआ है।
      • जलवायु विविधता: भारत की विविध जलवायु (दक्षिण में उष्णकटिबंधीय से लेकर उत्तर में शीतोष्ण तक) का प्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों की विविधता पर प्रभाव पड़ता है।
      • मानसूनी हवाएँ: मानसूनी हवाओं के कारण होने वाली पर्याप्त वर्षा से कुछ क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों का विकास हुआ है तथा कुछ शुष्क क्षेत्रों में मरुद्भिद वनस्पति (Xerophytic Vegetation) का विकास हुआ है।
      • उच्चावच: भारतीय भूमि में उच्चावच की विविधता के कारण विविध प्रकार की वनस्पतियों का विकास हुआ है, जैसे- अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वनस्पतियाँ विकसित होने के साथ निम्न स्थानों पर समशीतोष्ण वन पाए जाते हैं।
      • मृदा के प्रकार: भारत में विविध प्रकार की मृदा (जिनमें जलोढ़, लाल, लेटराइट और मरुस्थलीय मृदा शामिल है) की वजह से यह विभिन्न वनस्पतियों एवं पौधों की प्रजातियों एवं इसके वितरण को प्रभावित करती है।
    • भारत के वर्षा वन क्षेत्रों में वन्यजीव अभयारण्यों का महत्त्व:
      • जैवविविधता संरक्षण: इससे विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिये संरक्षित आवास मिलते हैं, जिनमें से कुछ प्रजातियाँ लुप्तप्राय या स्थानिक हो सकती हैं।
      • अनुसंधान और शिक्षा: ये अभयारण्य शोधकर्ताओं के लिये जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन करने और उन्हें समझने के लिये जीवंत प्रयोगशालाओं के रूप में कार्य करते हैं।
      • पर्यटन और आर्थिक लाभ: अच्छी तरह से प्रबंधित वन्यजीव अभयारण्य स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ प्रदान करते हुए पारिस्थितिक पर्यटन को आकर्षित कर सकते हैं।
      • कार्बन पृथक्करण: वर्षावन वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को पृथक करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • पारिस्थितिकी संतुलन: वर्षावन पारिस्थितिकी संतुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनसे परागण और जल शुद्धिकरण जैसी आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ मिलने के साथ मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती है।

    निष्कर्ष:

    भारत की विविध भौगोलिक दशाएँ, जलवायु, उच्चावच, मृदा और जैवविविधता से विविध प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति का विकास हुआ है। पर्यटन, कार्बन पृथक्करण और पारिस्थितिकी सेवाएँ इसके कुछ महत्त्वपूर्ण लाभों में शामिल हैं।

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