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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में राष्ट्रीय एकता और शासन पर क्षेत्रवाद के प्रभावों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    12 Jun, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय: क्षेत्रवाद का परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • मुख्य भाग: भारत में क्षेत्रवाद की पृष्ठभूमि को संक्षेप में बताते हुए राष्ट्रीय एकता और शासन पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये।
    • निष्कर्ष: आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    क्षेत्रवाद का आशय लोगों को किसी क्षेत्र या राज्य विशेष से अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक लगाव होना है जिसमें अक्सर क्षेत्रीय स्वायत्तता या अलग पहचान की मांग किया जाना भी शामिल होता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में क्षेत्रवाद का राष्ट्रीय एकीकरण और शासन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

    मुख्य भाग:

    भारत में क्षेत्रवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

    • विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों जैसी विविधता के कारण क्षेत्रीय पहचान का उदय हुआ।
    • 1950 के दशक में भाषाई पुनर्गठन और राज्य के दर्जे की मांगों ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को और भी मज़बूत किया।
      • उदाहरण: भाषा के आधार पर राज्यों का गठन होना। जैसे आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु।
    • भाषाई आधार पर राज्यों का गठन और बाद में इसमें और भी विभाजन की मांग क्षेत्रवाद की स्थिति को दर्शाती है।

    राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव:

    a) सकारात्मक प्रभाव:

    • क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मान्यता देने से वंचित समुदायों को मुख्य धारा में शामिल करने में मदद मिलती है।
      • उदाहरण के लिये: अविकसित क्षेत्रों के समान विकास के लिये तेलंगाना का गठन।
    • क्षेत्रीय स्वायत्तता से शक्तियों का विकेंद्रीकरण होता है जिससे बेहतर प्रतिनिधित्व और प्रशासन सुनिश्चित होता है।
    • क्षेत्रीय भाषाओं, कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन से भारतीय विरासत के समृद्ध होने में सहायता मिलती है।

    b) नकारात्मक प्रभाव:

    • राष्ट्रीय हितों की तुलना में क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता मिलना।
      • उदाहरण के लिये: कर्नाटक के एक छात्र ने एक विदेशी विश्वविद्यालय में अपने दीक्षांत समारोह के दौरान राज्य का झंडा फहराया।
    • क्षेत्रीय पहचान को अधिक बल देने से राष्ट्रीय एकता को चुनौती मिलती है।
      • उदाहरण के लिये: पंजाब में खालिस्तान आंदोलन।
    • संघर्ष और अंतर-क्षेत्रीय तनाव से साझा पहचान और सहयोग की भावना में बाधा उत्पन्न होती है।
      • उदाहरण के लिये: केरल और तमिलनाडु के बीच मुल्लापेरियार बांध का मुद्दा।

    शासन पर प्रभाव:

    a) प्रशासनिक चुनौतियाँ:

    • शक्ति और संसाधनों के विखंडन से प्रशासनिक जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।
    • अंतर-राज्यीय विवाद और संघर्ष से सहकारी शासन में बाधा उत्पन्न होती है।
    • विविध क्षेत्रीय मांगों के कारण समान नीतियों को लागू करने में कठिनाई आती है।
      • उदाहरण के लिये: केरल की मांग और जरूरतें बिहार से भिन्न हैं।

    b) नीति निर्माण और कार्यान्वयन:

    • क्षेत्रीय दल और नीतिगत निर्णयों पर इनके प्रभाव से राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की तुलना में क्षेत्रीय हितों को अधिक प्राथमिकता मिल सकती है।
      • उदाहरण के लिये: महाराष्ट्र का सन्स ऑफ द सॉइल मूवमेंट।
    • क्षेत्रीय मांगों की परिणति विशेष आर्थिक पैकेज या अधिमान्य उपचार की मांग के रूप में हो सकती है जिससे समान विकास प्रभावित होता है।

    राष्ट्रीय एकता और शासन को मज़बूत करने के उपाय:

    केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति के संतुलित वितरण के साथ संघवाद को मजबूत करना।

    सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के साथ विभिन्न क्षेत्रों के बीच संवाद के लिये मंच तैयार करना।

    क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने तथा समान विकास को बढ़ावा देने वाली समावेशी नीतियों को लागू करना।

    निष्कर्ष:

    भारत के राष्ट्रीय एकीकरण और शासन पर क्षेत्रवाद के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते हैं। क्षेत्रीय आकांक्षाओं को बढ़ावा देने और हाशिये पर स्थित समुदायों को मुख्यधारा में शामिल करने के साथ ही इससे राष्ट्रीय एकता और सहकारी शासन के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती है। इन दोनों में सामंजस्यपूर्ण संतुलन सुनिश्चित करने के लिये संघवाद को मजबूत करने, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने वाली समावेशी नीतियों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है। राष्ट्रीय पहचान की भावना को बढ़ावा देते हुए क्षेत्रीय पहचान की विविधता को अपनाकर भारत, स्थायी राष्ट्रीय एकीकरण के साथ प्रभावी शासन के क्रम में क्षेत्रीयता के अवसरों का उपयोग कर सकता है।

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