इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    राजपूत चित्रकला भारतीय लघु चित्रकारी के इतिहास के महत्त्वपूर्ण अध्यायों में से एक है, जिनमें मुगल चित्रकारी का गहरा प्रभाव दिखता है। इसके विभिन्न रूपों और उनके प्रमुख लक्षणों पर चर्चा कीजिये।

    27 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • भूमिका
    • राजपूत चित्रकला की विभिन्न शैली एवं उनकी विशेषताएँ बताएँ।

    राजपूत चित्रकला शैली का विकास 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान राजपूताना राज्यों के राजदरबार में हुआ। इन राज्यों में विशिष्ट प्रकार की चित्रकला शैली का विकास हुआ। यह शैली विशुद्ध हिंदू परंपराओं पर आधारित है। इस शैली में रागमाला से संबंधित चित्र काफी महत्त्वपूर्ण हैं। इस शैली में मुख्यतया लघु चित्र ही बनाये गये। राजपूत चित्रकला की एक असाधारण विशेषता आकृतियों का विन्यास है। लघु आकृतियाँ भी स्पष्टतः चित्रित की गई हैं। इस शैली का विकास कई शाखाओं में हुआ-

    आंबेर और जयपुर शैली-

    1. आंबेर और जयपुर के चित्रों में गहरे मुगल प्रभाव दिखते हैं।
    2. सघन रचनाएँ और अमूर्तता क्षेत्रीय विशेषताओं को परिलक्षित करते हैं ।
    3. चित्रों में कृष्ण के जीवन प्रकरणों को दर्शाया गया है। 19वीं सदी के अन्य लोकप्रिय विषयों में रागमाला और भक्ति विषय थे।

    बीकानेर-

    1. बीकानेर की राजस्थानी चित्रकला भी मुगल परंपरा पर आधारित थी।
    2. बीकानेर के चित्रों में डेक्कन चित्रकला के प्रभाव चिह्नित होते हैं।
    3. यह शैली अपने सूक्ष्म एवं मंद रंगाभास के लिये प्रसिद्ध है।

    बूंदी-

    1. राजपूत चित्रकला ने 16वीं शताब्दी के आस-पास बूंदी में उद्भव शुरू कर दिया और जिस पर भारी मुगल प्रभाव परिलक्षित होता है।
    2. राव रतन सिंह (1607-1631) के शासनकाल के भित्ति चित्र पेंटिंग की बूंदी शैली के अच्छे उदाहरण हैं।
    3. विषयों के रूप में राजदरबार के दृश्यों पर बड़ा ज़ोर था। अन्य विषयों में रइसों, प्रेमियों और महिलाओं का स्थान था। 

    कोटा-

    1. कोटा शैली में चित्रण बहुत ही स्वाभाविक लगते हैं और उनके निष्पादन में सुलेखन है। जगत सिंह के शासनकाल (1658-1684) में सजीव रंग और गहरी लाइनों का इस्तेमाल किया गया है। 18वीं सदी में भी चित्रों के विषयों के रूप में शिकार के दृश्य, रागमाला आदि थे।

    किशनगढ़-

    1. किशनगढ़ अपनी "बनी-ठनी" चित्रों के लिये जाना जाता है। यह एक पूरी तरह से अलग शैली है जिसमें लंबी गर्दन, बड़े बादाम के आकार की आँखें और लंबी उंगलियों को अत्यधिक अतिशयोक्तिपूर्ण लक्षणों के साथ दर्शाया गया है।
    2. चित्रकला की इस शैली में अनिवार्य रूप से दिव्य प्रेमियों के रूप में राधा और कृष्ण को दर्शाया गया है।

    मालवा-

    1. मालवा अत्यधिक चौरपंचसिका शैली से प्रभावित था।
    2. कई बार, इन चित्रों पर एक दूरस्थ मुगल प्रभाव का आभास कर सकते हैं। मालवा शैली अपने चमकीले और गहरे रंगों के कारण विशिष्ट है। मालवा शैली के रंगचित्रों की प्रमुख श्रृंखला रसिकप्रिया है। जो इनके संगीतमय प्रेम का चित्रण है। 

    मारवाड़- 

    1. मारवाड़ की राजस्थानी चित्रकला का प्राचीनतम उदाहरण 1623 में पाली में चित्रित किया रागमाला है।
    2. इस शैली के रंगचित्रों में पगड़ी की कुछ विशेषताएँ हैं। रंग-संयोजन में चमकीले रंगों का प्राधान्य है।

    मेवाड़-

    1. मुगलों के प्रभुत्व से बचने की कोशिश में राजपूत चित्रकला के मेवाड़ स्कूल में अपनी रुढ़िवादी शैली पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    2. चौरपंचसिका शैली के साथ समानता महसूस कर सकते हैं, विशेष रूप से उदासी, चमकीले रंग और यहाँ तक कि आम रूपांकनों का अवलोकन कर सकते हैं।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2