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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    यशपाल के उपन्यासों के विषय वैविध्य के बावजूद भी विचारधारा का अंतर्वेशन उनकी कलात्मकता की विशेषता है| स्पष्ट कीजिये?

    12 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    हिंदुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र सेना के सक्रिय और उत्साही कार्यकर्त्ता के रूप में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिये यशपाल को आजन्म कारावास का दंड मिला था परंतु 1937 में कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन जाने पर अन्य कैदियों की तरह उन्हें भी कारावास से मुक्ति मिल गई। इसके बाद पंजाब में प्रवेश ना मिलने के कारण लखनऊ में रहकर उन्होंने विप्लव के संपादक के रूप में कार्य करते हुए “बुलेट की जगह बुलेटिन” की कार्यशैली पर कार्य किया।

    दादा कामरेड से लेकर मेरी तेरी उसकी बात तक यशपाल का रचनाकाल लगभग 32 वर्षों के कालखंड में फैला हुआ है। यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि यशपाल ने अपनी कृतियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी विचारधारा प्रगतिवाद या मार्क्सवाद का प्रक्षेपण किया है। कथानक के अन्य पहलुओं के साथ सामंजस्य बनाते हुए विचारधारा के प्रक्षेपण का कार्य बहुत ही कुशलता से किया गया है।

    दादा कामरेड में यशपाल एक ओर यदि समाज की मौजूदा स्थिति में और क्रमागत आचार और नैतिक धारणा में वैषम्य की ओर संकेत करना चाहते हैं तो दूसरी ओर वे उस ऐतिहासिक दौर को भी क्रमबद्ध करना चाहते हैं जब उनके सहयोगी ओम सहकर्मी एक व्यापक विघटन का शिकार हो रहे थे। दादा कामरेड का नायक हरीश एक स्थल पर कहता है- मैं केवल यह कहना चाहता हूं कि उद्देश्य को ध्यान में रखकर आंदोलन को अपने कार्यक्रम में परिवर्तन करना पड़ता है। रूस में भी स्वतंत्रता के आंदोलन ने आतंकवादी कार्यों का रूप लिया था। इसकी नायिका शैल के रूप में यशपाल आत्मसजग और अपने संदर्भ में निर्णय लेने में सक्षम युवती की परिकल्पना करते हैं।

    देशद्रोही उपन्यास दूसरे विश्व युद्ध के आरंभिक दो-तीन वर्षों के बीच की राजनीतिक परिस्थिति का वर्णन करता है। इसमें यशपाल ने तत्कालीन राजनैतिक अंतरधारणाओं को बहुत स्पष्टता से चित्रित किया है। कांग्रेश की बुर्जुआ और जन विरोधी नीतियों एवं कार्य पद्धति के उद्घाटन में व्यंग का जैसा कलात्मक उपयोग इस उपन्यास में हुआ है वह लेखक की भावी क्षमताओं का संकेत देता है।

    भारतीय सामाजिक संरचना में स्त्री की यातना का संदर्भ यशपाल का मुख्य रचनात्मक सरोकार रहा है। दिव्या उपन्यास को बौद्ध कालीन समाज की पृष्ठभूमि में संदर्भित किया गया है। इतिहास को वह विश्लेषण की वस्तु मानते हैं विश्वास कि नहीं। दिव्या में यशपाल मानते हैं कि ना वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित सामंती समाज स्त्री को सम्मान और सुरक्षा का आश्वासन दे सकता है और ना ही बौद्ध धर्म जो स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व को शंका की दृष्टि से देखता है। इसके अतिरिक्त इस उपन्यास के नायक मारिश के कई कथनों से भी उनकी विचारधारा का प्रस्फुटन होता है।

    पार्टी कामरेड गीता नामक एक कम्युनिस्ट युवती पर केंद्रित है इसके अतिरिक्त इसमें 1945 के आम चुनाव और नाभिक विद्रोह की घटनाएँ भी शामिल की गई हैं। इस उपन्यास में यशपाल ने कांग्रेस के वर्ग चरित्र और उनके नेताओं के चारित्रिक अंतरविरोधियों को व्यंगात्मक शैली में उद्घाटित किया है।

    अमिता उपन्यास शीत युद्ध के दौर में कलिंग युद्ध की पृष्ठभूमि में रचित उपन्यास है जिसमें गांधीवादी अहिंसा और हृदय परिवर्तन के सिद्धांतों के प्रति यशपाल द्वारा असहमति व्यक्त की गई है।

    झूठा सच निर्विवाद रूप से यशपाल का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है। इसका पहला खंड सन 1958 में और दूसरा सन 1960 में प्रकाशित हुआ। इंद्रनाथ मदान ने रंगो के रूपक द्वारा इसे लाल से गुलाबी की ओर यशपाल के संचरण के रूप में देखा है। लाहौर को केंद्र बनाकर लिखा गया झूठा सच का पहला खंड पंजाब और पंजाबियत को समग्रता के साथ अपने में समाए हुए हैं। इस खंड में भी असद, गिल जैसे कम्युनिस्ट पात्र हैं लेकिन विभाजन की त्रासदी पृष्ठभूमि में उनकी किसी क्रांतिकारी भूमिका का उल्लेख संभव नहीं था। जबकि उपन्यास के दूसरे खंड में देश का भविष्य नामक शीर्षक से यशपाल ने कम्युनिस्ट पात्रों और उनकी गतिविधियों का समुचित उल्लेख किया है। पीसी जोशी और बीटी रणदिवे की पॉलिटिकल लाइन पर खुलकर चर्चा की गई है। यशपाल द्वारा झूठा सच के उत्तरार्ध में रातों-रात कांग्रेसियों और उनके हिमायतिओं की एक पूरी फौज द्वारा राजनीतिक अंतर्द्वंदों और दिखावटी राजनीति की वास्तविकता को उकेरा है। उपन्यास की एक पात्र मिसेज अगरवाला ब्रिटिश क्लब की मेंबर थी जो बाद में खद्दर पहनने लगती हैं और कांग्रेसी विचारधारा में अपनी श्रद्धा व्यक्त करती हैं। इसके अतिरिक्त गांधी जी की हत्या वाली रात में शराब के बीच कांग्रेसी नेताओं की बसों के प्रसंग कहीं-कहीं अति रंजना पूर्ण लग सकते हैं लेकिन इन सब से ना डरते हुए लेखक द्वारा अपनी विचारधारा की प्रविष्टि कराई गई है।

    इस प्रकार एक सजग लेखक के रूप में यशपाल द्वारा उस समय की सभी प्रमुख राजनीतिक सामाजिक घटनाओं जैसे- द्वितीय विश्व युद्ध, शीत युद्ध, नाविक विद्रोह, भारत छोड़ो आंदोलन और विभाजन की त्रासदी का वर्णन तो किया ही गया है लेकिन इस प्रकार की कथावस्तु के मध्य उनके द्वारा अपनी विचारधारा का अंतर्वेशन उनकी कलात्मकता को प्रदर्शित करता है।

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