दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    "अंधेर नगरी" नाटक में तत्कालीन राज्य सत्ता के दमनकारी चरित्र की सांकेतिक अभिव्यक्ति और सामान्य जनता की शक्ति का चित्रण किया गया है। विश्लेषण कीजिए?

    03 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    "अंधेर नगरी" अपने संक्षिप्त कलेवर में गंभीर सांकेतिक मनोरंजक और कालजयी नाटक है तथा इसमें कोई गंभीर कथानक नहीं है। महंत अपने शिष्यों गोवर्धन दास और नारायण दास को लोभी वृत्ति से बचे रहने का उपदेश देकर सुंदरनगर में भेजता है। गोवर्धन शहर के रंग ढंग से बहुत प्रभावित होता है। उसे वह राज्य पहली ही दृष्टि में सुखकर लगता है, लेकिन जब वह पकड़ा जाता है और उसे फांसी का हुक्म हो जाता है तो वास्तविक राज्यसत्ता का चरित्र उसके सामने आता है।

    "अंधेर नगरी" की कथा सामंतशाही राज व्यवस्था के साथ संबंध है। भारतेंदु ने "अंधेर नगरी" में अपने दौर के यथार्थ को प्रतीकात्मक रूप से प्रकट किया है उन्होंने विभिन्न अवसरों पर कभी स्पष्ट रूप से तो कभी सांकेतिक रूप से अपनी बात कही है। नौकरशाही की आलोचना करते हुए भारतेंदु ने उनकी रिश्वतखोरी, जनता के प्रति विद्वेष और उत्पीड़न की नीति टैक्स लगाकर उनके जीवन को मुश्किल बनाना आदि को खास तौर पर रेखांकित किया है-

    चना हाकिम सब जो खाते।
    सब पर दो ना टिकस लगाते।।

    भारतेंदु ने नौकरशाही की कुव्यवस्था का चित्र प्रस्तुत किया है। नौकरशाही के चरित्र को भारतेंदु ने मुकदमे वाले प्रसंग द्वारा भी व्यक्त किया है। वस्तुतः न्याय की प्रक्रिया का यह चित्र और यथार्थ प्रतीत होता हुआ भी अपने अर्थ में यथार्थ में निहित विडंबना को प्रभावशाली रूप में व्यक्त करता है। राजा और मंत्री के बीच की बातचीत राजा की मूर्खता और मंत्री की चतुराई का उदाहरण है। राजा के पास सकती है लेकिन बुद्धि और विवेक का अभाव है। मंत्री उसकी मूर्खता और शक्ति का इस्तेमाल अपने बौद्धिक बल से करता है। भारतेंदु कृत "अंधेर नगरी" में पैसा केंद्रीय महत्त्व की चीज है। “टके सेर भाजी, टके सेर खाजा”- का केंद्रीय स्वर इसी सच्चाई को व्यक्त करता है भारतेंदु ने इस नाटक में अंग्रेजी राज की उन बुराइयों का उल्लेख भी किया है जो शोषणवादी व्यवस्था की सूचक है। यह आलोचना तत्कालीन साम्राज्यवादी राज्य व्यवस्था के कुशासन की आलोचना है

    "अंधेर नगरी" अपनी सोउद्देश्यता, अपनी सामाजिक-राजनीतिक चेतना के कारण बहुत तीखा व्यंग्यात्मक नाटक है। मूल्यहीनता की व्यंग्यचेतना इस पूरे नाटक का लक्ष्य है "अंधेर नगरी" की समकालीन प्रासंगिकता कहीं कोई पृथक विषय, विचार या तत्व नहीं है, उसे हम उसके कथानक कथा-पात्रों की परिकल्पना, संवादों की बुनावट सभी में व्यस्त होता हुआ देखते हैं। "अंधेर नगरी" में न्याय की पूरी प्रक्रिया शासनसत्ता की संवेदनहीनता और मानवीय विडम्बना को दिखाती है क्योंकि वही मनुष्य को अंधव्यवस्था में फँसाती है, जहाँ शोषक, शोषित, अपराधी, निरपराधी में कोई अंतर नहीं।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow