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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    केशवदास द्वारा रचित रामचंद्रिका पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।

    30 Jun, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका

    • रामचंद्रिका का परिचय एवं विशेषताएं

    • निष्कर्ष

    केशवदास की कृतियों में 'रामचंद्रिका' सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जिसका रचनाकाल 1601 ई. है। इसमें रामकथा का वर्णन किया है एवं रामकथा के प्रमुख प्रसंगों को चुनकर और उन्हें विभिन्न छंदों में क्रम देकर छंदबद्ध कर दिया गया है

    रामचंद्रिका की विशेषताएँ :-

    कथानक योजना: रामचंद्रिका में कुछ प्रसंग असाधारण रूप से समृद्ध और सशक्त हैं पर कुछ शिथिल और कमज़ोर हैं। कथानक के निर्माण में बाल्मीकि आदि प्रसिद्ध कवियों की राम कथा तथा भागवत आदि पुराणों के अतिरिक्त केशवदास में संस्कृत के साहित्य ग्रंथों से भी पर्याप्त सहायता ली है, जिनमें 'हनुमान्नाटक' एवं 'प्रसन्नराघव' प्रमुख हैं। संवादों की नाटकियता तथा और उक्ति वैचित्र्य पर इन ग्रंथों का विशेष प्रभाव पड़ा है।

    संवाद योजना: रामचंद्रिका की विशिष्टता उसकी संवाद योजना है। इनके जैसा संवाद कोई प्राचीन कवि नहीं लिख सका है। आचार्य शुक्ल ने कहा है, "रामचंद्रिका में केशव को सबसे अधिक सफलता मिली है। xxxx संवादों में उनका रावण अंगद संवाद तुलसी के संवाद से कहीं अधिक उपयुक्त एवं सुंदर है।" उदाहरण के लिये निम्नलिखित पंक्ति में संवादों की तीव्रता और चुस्ती द्रष्टव्य है क्योंकि एक ही कथन में चार संवाद के दिये गए हैं-

    "मातु कहाँ नृपतात? गए सुरलोकहिं। क्यों? सुत शोक लये।"

    छंद योजना: 'रामचंद्रिका' की छंद योजना भी विशिष्ट है। उनकी बहु-छंद की कल्पना नई वस्तु है। महाकाव्य और प्रबंध काव्य के अन्य रूपों में संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं में केशव ने जैसी छंद योजना की है वह प्राप्त नहीं होती। 

    जीवन दृष्टि: 'रामचंद्रिका' में केशवदास ने रामकथा को नए तरीके से प्रस्तुत किया है। इसकी कथा संघर्ष की कथा नहीं है। ना तो वह सिर्फ भक्ति की रचना है। उसमें मौलिक तरीका अपनाते हुए भक्ति और राज वैभव दोनों पक्षों पर सामान बल दिया गया है। कवि ने इसमें जो जीवन दृष्टि अपनाई है उसमें लौकिक और पारलौकिक का अलगाव या विरोध लक्षित नहीं होता। केवल अंत में ज्ञान त्याग और भक्तों की वरीयता अवश्य सिद्ध होती है जो भारतीय संस्कृति की केंद्रीय विशेषता रही है।

    आलोचना के बिंदु

    'रामचंद्रिका' में केशवदास ने उचित संबंध-निर्वाह नहीं किया है। इसमें मार्मिक प्रसंगों का ध्यान ठीक से नहीं रखा गया है। जैसे एक छंद में राम का राज्याभिषेक, दूसरे छंद में राम को वनवास व भरत को राज देने का वरदान मांगना चित्रित कर दिया है। शुक्ल जी ने कहा है कि केशव में संबंध निर्वाह की क्षमता नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा है कि राम की कथा के भीतर जो मार्मिक स्थल है उनकी ओर केशव का ध्यान बहुत कम गया है। तुलसीदास ने राम वन गमन प्रसंग को इतना मार्मिक व जीवंत बना दिया था जबकि केशव के लिए वह एक सूचना मात्र रह गया।

    हालाँकि रामचंद्रिका में बहु-छंदों की कल्पना नई वस्तु है किंतु शुक्ल जी ने इसकी आलोचना करते हुए इसे 'छंदों का अजायबघर' कहा है उनका दावा है कि 'रामचंद्रिका' में छंद प्रयोग भाषा में प्रवाह एवं जीवंतता उत्पन्न नहीं करता।

    समग्रत: केशवदास को रामचंद्रिका के संवाद योजना, कथानक योजना में अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई है। इनके जैसा संवाद दुर्लभ है किंतु छंद योजना एवं कथा के मार्मिक प्रसंगों को केवल सूचना मात्र के रूप में प्रस्तुत करने के कारण 'रामचंद्रिका' 'रामचरितमानस की तरह लोक ग्राही न हो सकी रामचंद्रिका

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