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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वन्य जीवों के संरक्षण से संबंधित सख्त कानूनों के बावजूद देश में इनके खिलाफ होने वाले अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस समस्या के संदर्भ में वन्य जीव संरक्षण कानून के क्रियान्वयन तथा जनसहभागिता को विश्लेषित कीजिये। (200 शब्द)

    18 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • वन्यजीवों के संरक्षण तथा बढ़ते अपराधों की चर्चा करते हुए वन्यजीवों के संरक्षण कानूनों की तथा जनसहभागिता को बताना है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका लिखें।
    • वन्यजीवों के संरक्षण से संबधित कानून की चर्चा कीजिये।
    • वन्यजीवों के प्रति बढ़ते अपराधों की चर्चा कीजिये।
    • वन्यजीवों के संरक्षण के लिये जनसहभागिता को स्पष्ट कीजिये।
    • निष्कर्ष दीजिये।

    पृथ्वी पर जीवन के आरंभ के साथ ही जंगल, जीवों व इंसानों का गहरा रिश्ता रहा है लेकिन मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताओं से मानव, प्राकृति व जीवों के मध्य विद्यमान संतुलन बिगड़ने लगा। मनुष्य व प्रकृति के बीच विद्यमान इस असंतुलन को दूर करने हेतु भारत जैसे जैव विविधता से संपन्न राष्ट्र में अनेक कानूनों का निर्माण किया गया लेकिन वन्यजीवों के विरुद्ध अपराध वर्तमान में भी जारी हैं। इन वन्यजीवों के विरूद्ध अपराधाें को कम करने हेतु कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन तथा जनसहभागिता की नितान्त आवश्यकता है तभी प्रकृति व मनुष्य के मध्य संतुलन स्थापित किया जा सकेगा।

    वन्यजीवों के संरक्षण व रक्षण हेतु अवैध शिकार, तस्करी व अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 लागू किया गया जिसे 2003 में संशोधित करने के पश्चात् कानून के अंतर्गत अपराधों के लिये सज़ा व जुर्माने को और भी अधिक कठोर बना दिया गया। यह कानून वन्य जीव अपराधों की रोकथाम, अवैध शिकार पर लगाम और वन्य जीव उत्पादों के व्यापार पर प्रभावी रोक लगाने के उद्देश्य से लाया गया। वन्यजीवों का अवैध शिकार करने पर यह कानून कम-से-कम 3 वर्ष तक की जेल की सज़ा का प्रावधान करता है, जो 7 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। साथ ही, 10000 रुपए का जुर्माना भी है। दूसरी बार इसी प्रकार का अपराध करने पर 3 से 7 वर्ष तक की सज़ा तथा 25000 रुपए जुर्माना देना होगा।

    वन्यजीवों के संरक्षण हेतु केंद्र सरकार द्वारा निर्मित कानूनों के अतिरिक्त राज्य स्तर पर भी अनेक सख्त कानूनों का निर्माण किया गया। फिर भी भारत में वन्यजीवों के खिलाफ अपराध निरंतर बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, वन्य जीव सरंक्षण अधिनियम, 1972 के तहत 2014 में दर्ज अपराध के मामले 770 से बढ़कर 2016 में 859 हो गए हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि वन्यजीवों का शिकार, तस्करी तथा अवैध व्यापार के माध्यम से संगठित अपराध करने वाले लोग ड्रग्स की तस्करी, हथियारों की तस्करी तथा मनी लॉन्ड्रिग जैसे अपराधों में भी संलग्न होते हैं।

    जंगली जंतुओं के संरक्षण हेतु देश में निर्मित सख्त कानूनों के बावजूद इनके शिकार को रोक पाना अभी भी संभव नहीं हुआ है। हालाँकि इन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सरकारी एजेंसियों को अधिक जवाबदेह बनाया जाना चाहिये, साथ ही कानून के प्रति लोगों में जागरूकता को बढ़ाए जाने की भी अवश्यकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A) के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को जीव जंतुओं से सहानुभूति रखने को मूल कर्त्तव्य माना गया है जिसे वास्तविक जीवन में भी अपनाने की नितांत आवश्यकता है।

    स्पष्ट है कि मनुष्य की बढ़ती उपभोक्तावादी सोच ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने का काम किया है। यही कारण है कि देश में सख्त कानूनों के होने के बाद भी वन्यजीवों के खिलाफ होने वाले अपराध निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं। वन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन तथा जनसहभागिता को बढ़ाकर ही वन्यजीवों के संरक्षण के लिये प्रभावी प्रयास किये जा सकते हैं।

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