ध्यान दें:



Mains Marathon

  • 24 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    दिवस 34: “आप किसी विचारधारा को गोली चलाकर समाप्त नहीं कर सकते।” इस संदर्भ में, भारत में वामपंथी अतिवाद से निपटने हेतु सैन्यकृत रणनीति की उपलब्धियों तथा सीमाओं का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने की दृष्टिकोण:

    • वामपंथी उग्रवाद को एक सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक चुनौती के रूप में संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये।
    • इसके भौगोलिक विस्तार, उत्पत्ति और वैचारिक आधार का उल्लेख कीजिये।
    • सैन्यीकृत प्रतिक्रिया की उपलब्धियों और सीमाओं का विश्लेषण कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वामपंथी उग्रवाद (LWE), जिसे प्रायः ‘आंतरिक सुरक्षा का सबसे बड़ा खतरा’ कहा जाता है, गहरी सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, जनजातीय अलगाव और शासन संबंधी कमियों को दर्शाता है। हालाँकि सुरक्षा अभियानों ने हिंसा पर अंकुश लगाया है, लेकिन केवल सैन्य साधनों के माध्यम से वामपंथी उग्रवाद का समाधान इसके पीछे की विचारधारा का उन्मूलन नहीं कर सकता।

    मुख्य भाग:

    भारत में वामपंथी उग्रवाद की उत्पत्ति और प्रसार:

    • वर्ष 1967 के नक्सलबाड़ी विद्रोह से उभरे वामपंथी उग्रवाद को माओवादी विचारधारा ने गति दी है, जो सीमांत समुदायों के कथित शोषण के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष को प्रोत्साहित करती है।
    • छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में विस्तृत ‘रेड कॉरिडोर’ में सुरक्षा-केंद्रित उपायों एवं विकासात्मक हस्तक्षेपों, दोनों को देखा गया है।

    सैन्यीकृत प्रतिक्रिया की उपलब्धियाँ

    • सुरक्षा स्थिति में सुधार: वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित ज़िलों की संख्या वर्ष 2010 में 223 से घटकर वर्ष 2023 में 70 हो गई है और घटनाओं में 70% से अधिक की कमी आई है (गृह मंत्रालय के आँकड़े)
    • सफल अभियान: ग्रेहाउंड्स (आंध्र प्रदेश/तेलंगाना) और COBRA बटालियनों ने प्रमुख माओवादी नेताओं और संगठनात्मक नेटवर्क को निष्क्रिय कर दिया है।
    • संवर्द्धित बुनियादी अवसंरचना: सुरक्षा वर्चस्व स्थापित होने के फलस्वरूप वामपंथी उग्रवाद (LWE) प्रभावित क्षेत्रों में सड़क संपर्क परियोजनाएँ, 4G मोबाइल टावरों की स्थापना तथा दूरदराज़ के इलाकों में बैंकिंग सुविधाएँ जैसी विकासात्मक  परियोजनाएँ सक्षम हुई हैं।
    • नेतृत्व का विनाश: लक्षित अभियानों के कारण उग्रवादी कार्यकर्त्ताओं ने बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण किया है और माओवादी नेतृत्व कमज़ोर हुआ है।

    सैन्यीकृत दृष्टिकोण की सीमाएँ

    • वैचारिक दृढ़ता: मुख्य मुद्दों में भूमि वंचन, गरीबी और जनजातीय समुदायों का शोषण, अनसुलझे रह गए हैं।
    • मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: सलवा जुडूम (जिसे वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने भंग कर दिया था) जैसे मामले सुरक्षा संबंधी अतिरेक को उजागर करते हैं जिससे जनता का विश्वास कम होता है।
    • भौगोलिक अनुकूलनशीलता: माओवादी नए, जंगली क्षेत्रों में इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) और गुरिल्ला युद्ध का उपयोग करके पुनः संगठित होते हैं।
    • जनजातीय समुदायों का अलगाव: अति-सैन्यीकरण प्रायः उन्हीं समुदायों को अलग-थलग कर देता है जिनकी रक्षा राज्य करना चाहता है।

    निष्कर्ष:

    सैन्य प्रतिक्रिया ने निस्संदेह वामपंथी उग्रवाद के कार्यक्षेत्र को कम कर दिया है; हालाँकि, सामाजिक-आर्थिक शिकायतों में निहित विचारधाराओं को केवल बल से समाप्त नहीं किया जा सकता। भारत की दीर्घकालिक सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि SAMADHAN के ‘D’ (Development अर्थात् विकास) को ‘S’ (Smart Leadership अर्थात् स्मार्ट नेतृत्व) और ‘A’ (Aggressive Strategy अर्थात् प्रभावशाली कार्यनीति) के समान उत्साह के साथ अपनाया जाए।

close
Share Page
images-2
images-2