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Mains Marathon

  • 10 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    दिवस 22: “आतंकवाद और वार्ता साथ नहीं चल सकते, लेकिन संवादहीनता से भी स्थायी शांति नहीं आ सकती।” पाकिस्तान के प्रति भारत की विकसित होती विदेश नीति इस विरोधाभास को किस प्रकार सुलझाती है? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत-पाकिस्तान संबंधों के संदर्भ में उद्धरण की व्याख्या के साथ उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
    • पाकिस्तान के प्रति भारत की विदेश नीति के विकास और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय:

     “आतंकवाद और वार्ता साथ नहीं चल सकते यह मुहावरा 2010 के दशक के मध्य में भारत की विदेश नीति का एक औपचारिक हिस्सा बन गया तथा पठानकोट (वर्ष 2016), उरी (वर्ष 2016), पुलवामा (वर्ष 2019) और पहलगाम (वर्ष 2025) जैसे बड़े आतंकी हमलों के बाद इसे लगातार दोहराया गया है। हालाँकि, लंबे समय तक राजनयिक संवाद का अभाव विश्वास निर्माण को क्षीण कर सकता है और यह विशेष रूप से परमाणु-सशस्त्र पड़ोसी देशों के मध्य संघर्ष की तीव्रता बढ़ा सकता है। अतः भारत की नीति सुरक्षा-आवश्यकताओं तथा क्षेत्रीय संवाद के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करती है।

    मुख्य भाग: 

    भारत-पाकिस्तान संबंधों में विकसित नीतिगत रुख:

    • वर्ष 2014 से पूर्व: संयुक्त संवाद प्रक्रिया के माध्यम से सहभागिता स्थापित की गई, जिसमें कश्मीर, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान सहित द्विपक्षीय मुद्दों की एक विस्तृत शृंखला पर विचार-विमर्श किया गया।  
    • वर्ष 2014 के पश्चात: भारत की नीति में अधिक आक्रामक कूटनीति (Assertive Diplomacy) की ओर स्पष्ट बदलाव देखा गया। इसका उदाहरण वर्ष 2016 में किये गये सर्जिकल स्ट्राइक तथा वर्ष 2019 के बालाकोट हवाई हमले हैं, जो आतंकी हमलों की प्रतिक्रिया स्वरूप किये गये।
    • राजनयिक अलगाव की नीति: भारत ने पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर आतंकवाद का समर्थन करने वाले देश के रूप में उजागर करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), आतंकवाद के विरुद्ध वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (FATF) तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) जैसे मंचों पर पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने के प्रयास किये।
    • बैकचैनल/पृष्ठभूमि कूटनीति: संकटों का प्रबंधन करने और रणनीतिक संचार बनाए रखने के लिये निम्न-स्तरीय सहभागिता (बैकचैनल या बहुपक्षीय सेटिंग्स के माध्यम से) बनाए रखना। भारत ने संकट प्रबंधन तथा रणनीतिक संप्रेषण (Strategic Communication) बनाये रखने हेतु पृष्ठभूमि वार्ताओं या बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से निम्न-स्तरीय संवाद जारी रखा।
      • वर्ष 2021 में दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGMO) के मध्य युद्धविराम समझौता तथा मई 2025 में हुए संघर्ष के शीघ्र निष्पादन हेतु हॉटलाइन पर वार्ता इसके हालिया उदाहरण हैं।
    • मुद्दों पर आधारित सहयोग: व्यापक शत्रुता के दौरान भी भारत ने विशिष्ट मुद्दों पर पाकिस्तान से सहयोग बनाये रखा।
      • सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty), जो हालाँकि वर्ष 2025 में स्थगित कर दी गई, लंबे समय तक स्थायी सहयोग का अपवाद बनी रही।
      • इसके अतिरिक्त मछुआरों की रिहाई अथवा मेडिकल वीज़ा जैसे मानवीय आधार पर संकट काल में भी सहयोग जारी रहे।

    चुनौतियाँ और बाधाएँ:

    • निरंतर सीमा पार आतंकवाद: युद्ध विराम समझौतों के बावजूद सीमा-पार आतंकवादी बुनियादी अवसंरचना सक्रिय बनी हुई है।
    • अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले, जिसका श्रेय द रेजिस्टेंस फ्रंट को दिया जाता है, से यह स्पष्ट होता है कि आतंकवाद-रोधी अभियानों के बावजूद ऐसे समूहों से निरंतर चुनौती बनी हुई है, चाहे प्रतिरोधात्मक अभियानों की भूमिका भी रही हो।
      • राजौरी और पुंछ जैसे क्षेत्रों में निरंतर घुसपैठ के प्रयास होते रहते हैं, जिनसे भारतीय सुरक्षा बलों को हानि उठानी पड़ती है।  
    • गैर-राज्यीय तत्त्वों की संलिप्तता: जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन निर्दोष रूप से संचालित होते रहे हैं।
    • मुंबई हमले (वर्ष 2008) और पुलवामा बम विस्फोट (वर्ष 2019) ऐसे प्रकरणों में इनकी सीधी संलिप्तता रही है, जिससे शांति प्रयास बाधित हुए हैं।
    • पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता: नागरिक सरकारों में लगातार परिवर्तन और सैन्य प्रतिष्ठान की प्रमुख भूमिका कूटनीतिक पहलों में निरंतरता को कमज़ोर करती है।
    • जन भावना और राजनीतिक दबाव: दोनों देशों में राष्ट्रवादी उन्माद तथा मीडिया ध्रुवीकरण के कारण संवाद हेतु राजनीतिक स्थान सीमित हो गया है।
    • व्यापार और संस्कृति का निलंबन: नियंत्रण रेखा के पार व्यापार का निलंबन और लोगों के बीच संबंधों पर प्रतिबंध (जैसे: खेल और सांस्कृतिक प्रतिबंध) ने अनौपचारिक कूटनीति को कमज़ोर कर दिया है, जो शांति का एक मूल्यवान साधन है।
    • चीन-पाकिस्तान गठजोड़: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के माध्यम से पाकिस्तान की चीन के साथ बढ़ती निकटता ने भारत की रणनीतिक गणनाओं को विशेष रूप से गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे विवादित क्षेत्रों में जटिल बना दिया है।

    निष्कर्ष:

    पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के शब्दों में, "भारत-पाकिस्तान संबंध एक प्रबंधित शत्रुता हैं। दुनिया नहीं चाहती कि पाकिस्तान अराजकता के कारण पूरी तरह  विफल हो, इसलिये वे पाकिस्तान के साथ काम करना जारी रखेंगे।" यह एक वैश्विक रणनीतिक बाधा को दर्शाता है। 

    ऐसे में भारत को एक संयमित दोहरे दृष्टिकोण को जारी रखना चाहिये— आतंकवाद के विरुद्ध सख़्ती के साथ-साथ पृष्ठभूमि कूटनीति, मुद्दों पर आधारित वार्ता तथा क्षेत्रीय सहयोग के लिये उपयुक्त परिस्थितियों में तत्परता बनाये रखना आवश्यक है।

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