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  • 08 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 20: "भारत में जहाँ संस्थागत कमियाँ हैं, वहाँ गैर-सरकारी संगठन (NGO) मानव विकास के प्रवर्तक के रूप में दिन-प्रतिदिन अधिक महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं।" भारत में NGO-प्रेरित विकासात्मक हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता और सीमाओं का मूल्यांकन कीजिये।(250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत में गैर सरकारी संगठनों और उनकी बढ़ती प्रासंगिकता को परिभाषित कीजिये।
    • भारत में NGO के नेतृत्व वाले विकास हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता और सीमाओं का मूल्यांकन कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय: 

    भारत में गैर-सरकारी संगठन (NGO) ज़मीनी स्तर पर परिवर्तन लाने वाले प्रमुख माध्यम के रूप में उभरे हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ संस्थागत विफलता या प्रशासनिक रिक्तता विद्यमान है। उनके सहभागी, अनुकूलनशील और समुदाय-आधारित दृष्टिकोणों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, पर्यावरणीय स्थिरता तथा आजीविका सृजन जैसे क्षेत्रों में मानव विकास को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    मुख्य भाग:

    NGO के नेतृत्व वाले हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता

    • दूरस्थ एवं सीमांत क्षेत्रों में सेवा वितरण: गैर सरकारी संगठन प्रायः वहां कार्य करते हैं जहाँ बुनियादी ढाँचे, पहुँच या प्रशासनिक बाधाओं के कारण सरकारी सेवाएँ अप्रभावी होती हैं।
      • महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में SEARCH जनजातीय जनसंख्या को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है।
      • Pratham वंचित बच्चों के बीच आधारभूत शिक्षा में सुधार करता है।
      • SEWA गुजरात में कौशल प्रशिक्षण और सहकारी मॉडल के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाती है।
    •  नवप्रवर्तन और अनुकूलनशीलता: गैर सरकारी संगठन कम लागत वाले, समुदाय-केंद्रित समाधानों को डिज़ाइन और कार्यान्वित करते हैं जिन्हें अक्सर सरकारों द्वारा अपनाया जाता है।
      • अरविंद आई केयर ने निम्न लागत वाली, उच्च मात्रा वाली नेत्र शल्य चिकित्सा का मॉडल प्रस्तुत किया, जिसमें दक्षता और करुणा का संयोजन किया गया।
      • ऑफ-ग्रिड ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने वाले गैर-सरकारी संगठनों ने स्वच्छ ऊर्जा के प्रभावी और मापनीय कार्यान्वयन के लिये एक सफल मॉडल प्रस्तुत किया है।
    • वकालत और अधिकार जागरूकता: गैर सरकारी संगठन समुदायों को संगठित करने और कानूनी अधिकारों, हकों/पात्रता और सामाजिक अन्याय के संबंध में जागरूकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • मज़दूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने सूचना का अधिकार (RTI) आंदोलन का नेतृत्व किया।
      • मानवाधिकार कानून नेटवर्क (HRLN) हाशिये पर रह रहे समुदायों को कानूनी सहायता प्रदान करता है।
    • आपदा राहत और मानवीय सहायता: गूंज और ऑक्सफैम इंडिया जैसे गैर सरकारी संगठनों ने कोविड-19 के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ राज्य प्रणालियों पर अत्यधिक दबाव था, वहाँ खाद्य किट, स्वच्छता आपूर्ति और रसद सहायता प्रदान की।
    • क्षमता निर्माण और विकेंद्रीकृत शासन: गैर सरकारी संगठन अक्सर स्थानीय सरकारी अधिकारियों, स्वयं सहायता समूहों और पंचायतों को योजना बनाने, बजट बनाने और निगरानी में प्रशिक्षित करते हैं, जिससे सहभागी शासन को बढ़ावा मिलता है।

    गैर सरकारी संगठनों की सीमाएँ

    • जवाबदेही और पारदर्शिता के मुद्दे: 
      • कई गैर-सरकारी संगठनों (NGO) में नियमित ऑडिट या सार्वजनिक रिपोर्टिंग का अभाव है, जिससे धन के उपयोग पर प्रश्न उठते हैं। विदेशी धन के दुरुपयोग के आरोपों के कारण कई गैर-सरकारी संगठनों पर FCRA प्रतिबंध लगाए गए हैं।
    • विखंडन और दोहराव:
      • गैर सरकारी संगठनों के बीच तथा गैर सरकारी संगठनों और सरकारी विभागों के बीच समन्वय की कमी से संसाधनों का दोहराव या अप्रभावी लक्ष्यीकरण हो सकता है।
    • शहरी और दाता पूर्वाग्रह:
      • कुछ गैर सरकारी संगठन ज़मीनी हकीकत की तुलना में दानदाताओं की प्राथमिकताओं के साथ अधिक तालमेल स्थापित करते हैं तथा अक्सर शहरी या अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में "दृश्यमान (visible)" मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • वित्तीय भेद्यता: 
      • कई गैर सरकारी संगठन दानदाताओं के वित्तपोषण पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं, जिससे वे नीतिगत परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं, विशेष रूप से विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन नियम, 2024 के पश्चात।
    • सीमित मापनीयता और नीतिगत प्रभाव:
      • स्थानीय स्तर पर सफल होने के बावजूद, कई NGO मॉडल संसाधन और क्षमता की कमी के कारण राष्ट्रीय स्तर की नीति-निर्माण को प्रभावित करने या उसे बढ़ाने में संघर्ष करते हैं।

    आगे की राह

    • पोषण अभियान और जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं के तहत औपचारिक राज्य-NGO साझेदारी के माध्यम से सहयोगी ढाँचे को संस्थागत बनाना।
    • नियमित ऑडिट, सामाजिक ऑडिट और FCRA जैसे कानूनों के तहत सरलीकृत अनुपालन के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कीजिये।
    • प्रशिक्षण, डिजिटल उपकरणों और संसाधन-साझाकरण प्लेटफार्मों के माध्यम से, विशेष रूप से ज़मीनी स्तर के गैर सरकारी संगठनों के लिये क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना।
    • सीएसआर, परोपकारी नेटवर्क और स्थानीय भागीदारी के माध्यम से वित्तपोषण स्रोतों में विविधता लाना।
    • प्रभाव का मूल्यांकन करने, संसाधनों पर नज़र रखने और नागरिक फीडबैक लूप को सक्षम करने के लिये प्रौद्योगिकी-सक्षम निगरानी का उपयोग कीजिये।
    • सफल मॉडल्स को दोहराएँ (Replicate successful models)और स्थानीय स्तर पर नवाचार को प्रोत्साहित करें, ताकि उन्हें व्यापक पैमाने पर लागू किया जा सके और नीतियों में शामिल किया जा सके।

    निष्कर्ष:

    जैसा कि अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्त्ता जाँ द्रेज़ ने उपयुक्त रूप से कहा है: “भागीदारी का अर्थ केवल उपस्थित होना नहीं है, बल्कि प्रक्रिया में वास्तविक भूमिका निभाना है।” संरचित समर्थन, समावेशी सहभागिता और नियामक सुधार के माध्यम से, गैर-सरकारी संगठन विकल्प नहीं, बल्कि एक समानता-आधारित और सहभागी विकास मॉडल के सच्चे सहयोगी बन सकते हैं।

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