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Mains Marathon

  • 11 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    दिवस 23: बढ़ते संरक्षणवाद और मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के बढ़ते प्रभुत्व के बीच विश्व व्यापार संगठन वैधता के संकट का सामना कर रहा है। भारत के व्यापारिक हितों और बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं के संदर्भ में इस प्रवृत्ति का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • विश्व व्यापार संगठन की भूमिका और वर्तमान चुनौतियों का संक्षेप में परिचय दीजिये। 
    • मुख्य भाग में, विश्व व्यापार संगठन की वैधता के संकट, FTA के उदय तथा यह भारत के व्यापार हितों और बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं पर किस प्रकार प्रभाव डालता है, का मूल्यांकन कीजिये।
    • भारत के सामरिक हितों को संतुलित करने के लिये आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    विश्व व्यापार संगठन (WTO), जो कभी बहुपक्षीय व्यापार प्रशासन की आधारशिला था, अब बढ़ते संरक्षणवाद, एकतरफा कार्रवाइयों और मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) की ओर बढ़ते रुझान के कारण वैधता के संकट का सामना कर रहा है। भारत जैसे देश के लिये, जो एक ओर बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था का पक्षधर है और दूसरी ओर क्षेत्रीय व्यापार समझौतों की जटिलताओं से जूझ रहा है, यह बदलाव नये प्रकार की चुनौतियाँ एवं रणनीतिक विकल्प प्रस्तुत करता है।

    मुख्य भाग:

    विश्व व्यापार संगठन का घटता प्रभाव और बढ़ता संरक्षणवाद:

    • अमेरिका और चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ तेज़ी से एकतरफा टैरिफ का सहारा ले रही हैं, जिससे वैश्विक नियम-आधारित व्यवस्था बाधित हो रही है।
      • उदाहरण: वर्ष 2018 में, संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि (USTR) ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाया।
    • WTO का विवाद निपटान तंत्र (DSM), जो कभी प्रभावी था, अब लगभग निष्क्रिय हो चुका है, विशेषकर अपीलीय निकाय के अमेरिकी आपत्तियों के चलते कार्यशील न रहने के कारण।
    • विश्व व्यापार संगठन के अधिकारियों ने व्यापार विखंडन की चेतावनी दी है, जिससे संभवतः वैश्विक आय में कमी आएगी।
    • जैसे-जैसे विश्व व्यापार संगठन की प्रभावशीलता कम होती जा रही है, देश व्यापार लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये तेज़ी से FTA और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (RTA) की ओर रुख कर रहे हैं।
    • वर्ष 2024 तक, 350 से अधिक FTA लागू थे, जिनमें क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) तथा ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिये व्यापक और प्रगतिशील समझौता (CPTPP) जैसे प्रमुख शामिल थे।
    • गैर-टैरिफ बाधाओं, औद्योगिक सब्सिडी और डिजिटल व्यापार को प्रभावी ढंग से विनियमित करने में विश्व व्यापार संगठन की अक्षमता आधुनिक व्यापार नीति चर्चा में इसकी प्रासंगिकता को कम करती है।

    भारत के व्यापारिक हितों पर प्रभाव:

    • भारत ने ऐतिहासिक रूप से विकसित देशों की संरक्षणवादी नीतियों को चुनौती देने तथा विकासशील देशों के लिये उचित व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये विश्व व्यापार संगठन की नियम-आधारित प्रणाली पर भरोसा किया है।
      • हाल ही में भारत ने अमेरिका द्वारा इस्पात और एलुमिनियम पर बढ़ाए गये टैरिफ के प्रत्युत्तर में विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के तहत जवाबी शुल्क लगाने के अपने प्रस्ताव को अद्यतन किया है।
    • हालाँकि, विश्व व्यापार संगठन की कमज़ोर प्रवर्तन प्रणाली भारत की एकतरफा व्यापार कार्रवाइयों से निपटने की क्षमता को सीमित करती है, जैसा कि अमेरिका-भारत टैरिफ विवादों के दौरान देखा गया था।
    • FTA का बढ़ता प्रभुत्व जोखिम उत्पन्न करता है, क्योंकि भारत RCEP जैसे प्रमुख क्षेत्रीय समूहों का हिस्सा नहीं है और प्रायः तीसरे देश के बाज़ारों में टैरिफ संबंधी नुकसान का सामना करता है।
    • भारत का RCEP से हटना चीन के साथ व्यापार असंतुलन की चिंताओं के कारण हुआ था, लेकिन उसके बाद से वह संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय FTA में शामिल हो गया है (जिस पर वार्ता चल रही है)।
    • यद्यपि FTA बाज़ार तक पहुँच प्रदान करते हैं, लेकिन वे प्रायः डिजिटल व्यापार, IP और निवेश संरक्षण पर उच्च मानकों की मांग करते हैं, जो भारत की घरेलू प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं हो सकते हैं।
    • व्यापार सुविधा समझौते (TFA) जैसे विश्व व्यापार संगठन सुधारों से सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को आसान बनाने और निर्यातकों के लिये लेनदेन लागत को कम करने में भारत को लाभ हुआ है।
    • भारत WTO कार्यढाँचे के तहत विकासशील देशों को दी गयी विशेष और विभेदक (S&DT) रियायतों को बनाए रखने की पैरवी करता रहा है और उन्हें कमज़ोर करने के प्रयासों का विरोध करता रहा है।

    निष्कर्ष: 

    भारत को WTO-आधारित बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को यथार्थवादी रूप से FTA में रणनीतिक भागीदारी के साथ संतुलित करना चाहिये, ताकि घरेलू उद्योग की सुरक्षा, निर्यात में वृद्धि और वैश्विक प्रभाव सुनिश्चित हो सके। साथ ही, उसे WTO में विश्वास पुनर्स्थापन, विवाद समाधान की सुदृढ़ता और उभरती व्यापारिक चुनौतियों से निपटने हेतु सुधारों को सक्रियता से समर्थन देना चाहिये।

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