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Mains Marathon

  • 22 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस 32: समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये कि ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI) परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और पारिस्थितिक संवेदनशीलताओं के बीच किस प्रकार संतुलन बनाती है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI) परियोजना का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और पारिस्थितिक भेद्यता के बीच इस परियोजना द्वारा संतुलन बनाने के तरीके का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ₹72,000 करोड़ की ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI) परियोजना भारत के सुदूर दक्षिणी द्वीप पर एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह, अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, बिजली संयंत्र और टाउनशिप की परिकल्पना करती है। हालाँकि यह परियोजना सामरिक और आर्थिक लाभों का वादा करती है, यह पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है।

    मुख्य भाग:

    राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी अनिवार्यताएँ:

    • रणनीतिक स्थिति: GNI मलक्का जलडमरूमध्य के समीप स्थित है, जो एक महत्त्वपूर्ण समुद्री अवरोध बिंदु है जहाँ से लगभग 30% वैश्विक व्यापार का मार्ग गुजरता है। यहाँ सैन्य अवसंरचना विकसित करने से प्रमुख समुद्री मार्गों पर भारत का नियंत्रण मज़बूत होता है।
    • रक्षा तैयारी: योजनाओं में एक विस्तारित नौसैनिक अड्डा, निगरानी प्रणाली और हवाई पट्टी शामिल है, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति का मुकाबला करना है।
    • सैन्यीकरण में वृद्धि: यह परियोजना भारत की समुद्री सुरक्षा को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देती है, अंडमान सागर में उपस्थिति बढ़ाती है और एक्ट ईस्ट नीति का समर्थन करती है।
      • हालाँकि, यदि उचित प्रबंधन नहीं किया गया, तो सैन्यीकरण में वृद्धि सामुदायिक तनाव और पारिस्थितिक व्यवधान का जोखिम उत्पन्न कर सकती है।

    आर्थिक विकास की संभावनाएँ:

    • बंदरगाह-आधारित विकास: प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT) भारत को एक लॉजिस्टिक्स केंद्र बना सकता है, जिससे कोलंबो और सिंगापुर के बंदरगाहों पर निर्भरता कम हो सकती है।
    • रोज़गार सृजन: यह परियोजना 1 लाख से अधिक रोज़गार सृजित कर सकती है, निर्माण, पर्यटन और स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा दे सकती है।
    • बुनियादी अवसंरचना का विस्तार: एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे, सड़कों और बिजली संयंत्र के शामिल होने से इस दूरस्थ द्वीप की कनेक्टिविटी एवं सेवाओं में सुधार होने की उम्मीद है।

    पारिस्थितिक सुभेद्यता और पर्यावरणीय चिंताएँ

    • जैवविविधता का ह्रास: यह द्वीप लेदरबैक सी टर्टल, अलवण जल के मगरमच्छ और दुर्लभ पक्षियों जैसी स्थानिक प्रजातियों का निवास स्थल है। प्रस्तावित परियोजना इन प्रजातियों के प्रजनन के लिये समुद्र तटों और वन क्षेत्र के लिये खतरा है। 
      • गैलाथिया बे WLS, जिसे वर्ष 1997 में समुद्री कछुआ संरक्षण के लिये नामित किया गया था, को वर्ष 2021 में बंदरगाह के लिये अधिसूचित नहीं किया गया, जो भारत की राष्ट्रीय समुद्री कछुआ कार्य योजना (वर्ष 2021) के विपरीत है।
    • निर्वनीकरण: लगभग 130 वर्ग किलोमीटर वन भूमि और लगभग 10 लाख पेड़ों के काटे जाने की आशंका है, जिससे कार्बन अवशोषण और स्थानीय जलवायु पर असर पड़ेगा।
      • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त शेखर सिंह आयोग की वर्ष 2002 की रिपोर्ट में जनजातीय अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में पेड़ों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने तथा कटाई से पहले वनरोपण करने की अनुशंसा की गई थी।
    • जनजातीय विस्थापन: अंडमान और निकोबार आदिवासी जनजाति संरक्षण विनियमन (ANPATR) के तहत संरक्षित शोम्पेन एवं निकोबारी जनजातियाँ अपने सांस्कृतिक व भौतिक अस्तित्व के लिये खतरों का सामना कर रही हैं।

    आगे की राह

    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना: पारिस्थितिकीविदों एवं जनजातीय प्रतिनिधियों से प्राप्त सुझावों के साथ स्वतंत्र, पारदर्शी और सहभागी पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
    • जनजातीय अधिकारों की रक्षा: स्थानीय आबादी की स्वायत्तता, भूमि अधिकारों और आजीविका की रक्षा के लिये वन अधिकार अधिनियम (FRA) एवं PESA के प्रावधानों को लागू किया जाना चाहिये।
    • पर्यावरण-संवेदनशील ज़ोनिंग: समुद्री संरक्षित क्षेत्रों को नामित किया जाना चाहिये, विविध प्रजातियों के प्रजनन तटों का संरक्षण किया जाना चाहिये और संवेदनशील क्षेत्रों में उच्च-घनत्व वाले निर्माण कार्य को प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
    • हरित अवसंरचना: पारिस्थितिक प्रभाव को कम करने के लिये संधारणीय निर्माण प्रथाओं, वनीकरण अभियानों और नवीकरणीय ऊर्जा का अंगीकरण किया जाना चाहिये।
    • संस्थागत निगरानी: अनुपालन की निगरानी और जोखिमों को कम करने में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) तथा स्थानीय ग्राम सभाओं की भूमिका को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक महत्त्वाकांक्षा की दिशा में एक साहसिक कदम है। हालाँकि, इसकी सफलता रणनीतिक प्राथमिकताओं, पारिस्थितिक संरक्षण और सामाजिक न्याय के बीच एक संवेदनशील संतुलन बनाने पर निर्भर करती है। समावेशी शासन और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के बिना, अल्पकालिक लाभ अपरिवर्तनीय दीर्घकालिक नुकसान का कारण बन सकते हैं।

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