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Mains Marathon

  • 08 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 20: “डिजिटल इंडिया केवल एक तकनीकी मिशन नहीं है; यह एक शासन परिवर्तन एजेंडा है।” डिजिटल इंडिया ने सार्वजनिक सेवा वितरण में पारदर्शिता, दक्षता और समावेशिता को किस हद तक बढ़ाया है। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • डिजिटल इंडिया मिशन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • डिजिटल इंडिया ने निर्धारित शासन मापदंडों को किस सीमा तक सुदृढ़ किया है, इसका परीक्षण कीजिये।
    • मिशन संबंधी कुछ चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय: 

    वर्ष 2015 में शुरू किये गए डिजिटल इंडिया मिशन का उद्देश्य भारत को एक डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदलना है। यह केवल एक तकनीकी पहल नहीं है, बल्कि एक शासन सुधार आंदोलन है, जो सार्वजनिक सेवा वितरण में पारदर्शिता, दक्षता और समावेशिता में सुधार लाने का प्रयास करता है। डिजिटल इंडिया नौकरशाही की अस्पष्टता से नागरिक-केंद्रित शासन की ओर परिवर्तन का उदाहरण है।

    9 Pillars of Digital India

    मुख्य भाग: 

    डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से पारदर्शिता

    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) ने पीएम-किसान, PAHAL और मनरेगा जैसी योजनाओं में मध्यस्थों की भूमिका समाप्त कर दी है, जिससे लाभार्थियों को सीधे तौर पर 34+ लाख करोड़ रुपए हस्तांतरित किये गए हैं (2023 तक)।
    • PFMS, RTI ऑनलाइन और MyGov जैसे प्लेटफॉर्म वास्तविक समय की निगरानी, ​​सार्वजनिक भागीदारी और सूचना तक पहुँच की सुविधा प्रदान करते हैं।
    • डिजिटल भुगतान और GeM जैसे ई-खरीद पोर्टल (e-procurement portals), लेन-देन का पता लगाने योग्य तरीका सुनिश्चित करते हैं और भ्रष्टाचार को कम करते हैं।

    शासन में बेहतर दक्षता

    • UMANG एक ही ऐप के अंतर्गत 1,700 से अधिक सरकारी सेवाओं को एकीकृत करता है।
    • डिजिलॉकर, ई-साइन और आधार-सक्षम सेवाएँ कागज़ी कार्रवाई और लेन-देन के समय को कम करती हैं।
    • ई-कोर्ट, ई-अस्पताल और ई-ऑफिस महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं में परिचालन को सुव्यवस्थित करते हैं।
    • GeM पोर्टल ने खरीद को तीव्र और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना दिया है तथा 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के लेन-देन का प्रसंस्करण किया है।

    सेवा वितरण में समावेशिता

    • सामान्य सेवा केंद्र (CSC) 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों में सेवाओं तक पहुँच प्रदान करते हैं।
    • भारतनेट ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों तक ब्रॉडबैंड का विस्तार करता है।
    • PMGDISHA ने 6 करोड़ नागरिकों को बुनियादी डिजिटल साक्षरता प्रदान की है।
    • SWAYAM, DIKSHA और ई-पंचायत जैसे मंच शिक्षा और ई-गवर्नेंस तक पहुँच के माध्यम से हाशिए पर पड़े समूहों को सशक्त बनाते हैं।

    कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

    • डिजिटल विभाजन: NFHS-5 के आँकड़ों से पता चलता है कि केवल 33% ग्रामीण महिलाएँ और 55% पुरुष इंटरनेट का उपयोग करते हैं, जो लैंगिक और क्षेत्रीय असमानताओं को दर्शाता है।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी: अस्थिर बिजली, जनजातीय और पहाड़ी क्षेत्रों में निम्नस्तरीय कनेक्टिविटी पहुँच में बाधा उत्पन्न करती है।
    • साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता: एक व्यापक डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति दुरुपयोग और उल्लंघनों के जोखिम को बढ़ाती है।
    • डिजिटल निरक्षरता: कई नागरिक, विशेषकर बुज़ुर्ग और गरीब, डिजिटल प्लेटफॉर्म को डराने वाला मानते हैं।
    • भाषा संबंधी बाधाएँ: अधिकांश प्लेटफॉर्म स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं हैं, गैर-अंग्रेज़ी भाषियों को छोड़कर।
    • एल्गोरिदम पूर्वाग्रह और स्वचालन बहिष्करण: यदि तकनीक-आधारित प्लेटफॉर्म को समावेशी रूप से डिज़ाइन नहीं किया गया तो वे सामाजिक बहिष्करण को प्रबल कर सकते हैं।

    आगे की राह

    • डिजिटल विभाजन को पाटना: भारतनेट का विस्तार करना तथा दूरदराज़ के क्षेत्रों में मोबाइल इंटरनेट में सुधार करना।
    • डेटा संरक्षण ढाँचा: विश्वास बनाने के लिये डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के कार्यान्वयन में तेज़ी लाना।
    • डिजिटल साक्षरता अभियान: CSC के माध्यम से PMGDISHA और स्थानीय प्रशिक्षण जैसी योजनाओं को मज़बूत करना।
    • स्थानीयकरण: पहुँच बढ़ाने के लिये बहुभाषीय प्लेटफार्मों और सामग्री को बढ़ावा देना।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: पहुँच बढ़ाने के लिये निजी प्रौद्योगिकी कंपनियों से नवाचार और संसाधनों का लाभ उठाना।
    • समावेशी डिज़ाइन: सुनिश्चित कीजिये  कि डिजिटल प्लेटफॉर्म दिव्यांगों, बुज़ुर्गों और भाषाई रूप से विविध उपयोगकर्त्ताओं के लिये उपयोगकर्त्ता के अनुकूल हों।

    निष्कर्ष: 

    डिजिटल इंडिया का अर्थ सिर्फ नई प्रौद्योगिकियों को पेश करना नहीं है; यह शासन में एक आदर्श परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका लक्ष्य सार्वजनिक सेवाओं को अधिक जवाबदेह, सहभागी और न्यायसंगत बनाना है। जैसा कि नंदन नीलेकणी (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण- UIDAI के संस्थापक अध्यक्ष) ने सही कहा है कि यदि हम नवाचार को समावेशन से और प्रतिरोधकता (resilience) को उत्तरदायित्व से जोड़ सकें, तो भारत न केवल प्रौद्योगिकी में अग्रणी होगा, बल्कि इंटरनेट के सर्वोच्च मूल्यों का संरक्षक भी बनेगा।

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