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Mains Marathon

  • 07 Jul 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 19:  “केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS) राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और राज्य-स्तरीय कार्यान्वयन के बीच सेतु का कार्य करती हैं।” CSS की संरचना और निगरानी में सुधार से भारत में सहकारी संघवाद को किस प्रकार सुदृढ़ किया जा सकता है तथा परिणाम-आधारित शासन को किस प्रकार बढ़ावा दिया जा सकता है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • राष्ट्रीय विकास और संघीय सहयोग में केंद्र प्रायोजित समितियों (CSS) की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए एक संक्षिप्त परिचय से आरंभ कीजिये।
    • मुख्य भाग में, कार्यान्वयन चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और तथ्यों, उदाहरणों तथा सुझावों के साथ संरचनात्मक एवं निगरानी सुधारों का सुझाव दीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS), जिनका केंद्रीय बजट का 10% से अधिक हिस्सा है, राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं को राज्य स्तर पर कार्यान्वयन के माध्यम से संबोधित करने का एक प्रमुख साधन हैं। हालाँकि, सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करने और परिणामोन्मुखी शासन सुनिश्चित करने में इन योजनाओं की प्रभावशीलता उनके संरचना, वित्तपोषण एवं निगरानी तंत्र में प्रणालीगत सुधारों पर निर्भर करती है।

    मुख्य भाग:

    वर्तमान CSS की रूपरेखा में चुनौतियाँ:

    • संसाधनों का विखंडन: वित्त वर्ष 2021-22 में, 15 प्रमुख केंद्र प्रायोजित योजनाओं ने कुल CSS व्यय का 91% से अधिक व्यय कर लिया, जिससे छोटी योजनाएँ वित्तीय रूप से उपेक्षित रह गईं।
      • पूर्व अंतरणों से ₹1.6 लाख करोड़ (दिसंबर 2024 तक) की अपव्ययित शेष राशि आवंटित धनराशि के अपर्याप्त उपयोग की अक्षमता को दर्शाती है।
    • अतिकेंद्रीकरण: केंद्र प्रायोजित योजनाएँ ‘one-size-fits-all’ अर्थात 'एक ही मॉडल, सभी के लिये उपयुक्त' दृष्टिकोण का अनुसरण करती हैं, जो राज्यों की विविध सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से नहीं दर्शाता। इससे स्थानीय प्राथमिकताओं को संबोधित करने में अनुकूलनशीलता नहीं रह जाती।
    • निम्न-GSDP राज्यों में वित्तीय वहन क्षमता की कमी: सीमित सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) वाले राज्यों को समन्वित अंशदान की व्यवस्था निभाने में कठिनाई होती है, जिससे योजनाओं का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता।
      • उदाहरण के लिये, जल जीवन मिशन और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) को ₹13,783 करोड़ और ₹14,715 करोड़ की अपव्ययित राशि के कारण बजट में कटौती का सामना करना पड़ा।
    • परिणाम आधारित निगरानी की कमी: अनेक केंद्र प्रायोजित योजनाएँ मापनीय परिणामों के बजाय इनपुट आधारित संकेतकों पर अधिक केंद्रित रहती हैं।
      • इससे लक्षित जनसंख्या पर इन योजनाओं के वास्तविक प्रभाव का आकलन करना कठिन हो जाता है।
    • दोहराव और अक्षमता: स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे क्षेत्रों में समान प्रकार की योजनाओं की अधिकता संसाधनों की बर्बादी और कार्यों की पुनरावृत्ति का कारण बनती है।

    सहकारी संघवाद और परिणाम आधारित शासन को बढ़ावा देने हेतु सुधारात्मक उपाय:

    • तृतीय-पक्ष मूल्यांकन: नीति आयोग के विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (DMEO) द्वारा समन्वित स्वतंत्र मूल्यांकन, CSS का कार्यकाल मार्च 2026 से आगे बढ़ाने से पहले उनकी जवाबदेही और परिणाम-आधारित मूल्यांकन सुनिश्चित कर सकते हैं।
    • परिणाम-आधारित वित्त पोषण समझौते: केंद्र और राज्यों के बीच द्विपक्षीय समझौते कठोर इनपुट आवंटन के बजाय मापनीय लक्ष्यों पर केंद्रित होने चाहिये।
    • इससे राज्यों को प्राप्त परिणामों के आधार पर प्रदर्शन करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
    • योजना को तर्कसंगत बनना: अरविंद वर्मा समिति की सिफारिशों के अनुसार, अनावश्यक घटकों का विलय और नई योजनाओं के लिये न्यूनतम मानकों का पालन करने से CSS की बहुलता कम होगी और संसाधनों का विखंडन रोका जा सकेगा।
    • संदर्भ-विशिष्ट अनुकूलनशीलता: राज्यों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप उप-घटक तैयार कर CSS को अनुकूलित करने की अनुमति दी जाए, ताकि अधीनस्थता के सिद्धांत के अनुरूप योजनाएँ स्थानीय चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपट सकें।
    • मुद्रास्फीति-आधारित बजट: मध्यान्ह भोजन जैसी योजनाओं के लिये वित्त पोषण मानदंडों को थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के आधार पर समायोजित किया जाए।
      • यह सुनिश्चित करेगा कि आवंटन नियमित रूप से मुद्रास्फीति के अनुरूप अद्यतन हों और संसाधनों की कमी न उत्पन्न हो।

    निष्कर्ष:

    केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) में विखंडन, अतिकेंद्रीकरण और अक्षमताओं को दूर कर सुधार करने से सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिलेगा। तृतीय-पक्ष मूल्यांकन, अनुकूलित योजना संरचना और डिजिटल प्रणालियों के माध्यम से परिणाम आधारित शासन लागू करने से न केवल कल्याणकारी योजनाओं की प्रभावशीलता में वृद्धि होगी, बल्कि दीर्घकाल में संसाधनों का बेहतर आवंटन और जवाबदेही भी सुनिश्चित की जा सकेगी।

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