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संसद की प्रवर समिति

  • 12 Aug 2023
  • 5 min read

हाल ही में दिल्ली सेवा विधेयक के लिये एक प्रवर समिति के गठन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है, जब कई संसद सदस्यों (सांसदों) ने दावा किया कि उनके नाम उनकी सहमति के बिना शामिल किये गए थे।

  • हालाँकि दिल्ली सेवा विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है।

प्रवर समिति:

  • परिचय:
    • प्रवर समितियाँ विशेष विधेयकों की जाँच और निरिक्षण करने के विशिष्ट उद्देश्य से स्थापित तदर्थ या अस्थायी समितियों की एक श्रेणी है।
      • इसकी सदस्यता एक सदन के सांसदों तक सीमित है।
      • ये समितियाँ अपना निर्धारित कार्य पूर्ण होने पर भंग कर दी जाती हैं।
    • हालाँकि अस्थायी, प्रवर समितियों को नियंत्रित करने वाली प्रक्रियाएँ और नियम संसद की प्रक्रिया के नियमों में अच्छी तरह से परिभाषित हैं।

नोट: किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिये गठित समितियाँ, जिनमें दोनों सदनों के सांसद शामिल होते हैं, संयुक्त संसदीय समितियाँ (JPC) कहलाती हैं।

  • प्रवर समिति का गठन:
    • इस समिति का गठन विधेयक के प्रभारी मंत्री या संसद के किसी सदस्य द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव के माध्यम से किया जा सकता है।
    • इस प्रस्ताव को अपनाने के लिये सदन में प्रस्तुत किया जाता है। यदि इसे अपनाया जाता है, तो संदर्भित विधेयक पर विचार करने और रिपोर्ट देने के लिये समिति का गठन किया जाता है।
  • प्रवर समिति के लिये सदस्यों का चयन :
    • प्रवर समिति के सदस्यों को विशेष रूप से उस प्रस्ताव में नामित किया जाता है जो विधेयक को समिति के पास भेजने की मांग करता है।
      • इन सदस्यों को सदन द्वारा नियुक्त किया जाता है, साथ ही उनकी सहमति प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
    • जबकि राज्यसभा के नियम हैं कि किसी भी सदस्य को प्रवर समिति में नियुक्त नहीं किया जा सकता है यदि वे इसमें कार्य करने के इच्छुक नहीं हैं, नियमों में स्पष्ट रूप से प्रस्तावित सदस्यों के लिये हस्ताक्षर एकत्र करने की आवश्यकता भी नहीं होती है।
  •  कोरम:
    • प्रवर समिति की संरचना उसके उद्देश्य के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। यह कुल सदस्यों की संख्या के एक-तिहाई के कोरम के साथ संचालित होता है।
      • यदि मतों में समानता हो तो अध्यक्ष (पीठासीन) के पास निर्णायक मत होता है।
  • कार्य:
    • प्रवर समिति का प्राथमिक कार्य विधेयक की सावधानीपूर्वक समीक्षा करना है, इसके खंडों की जाँच करना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे उपाय इच्छित उद्देश्य के साथ ठीक रूप से प्रतिबिंबित हैं।
    • यह समिति विशेषज्ञों, मौखिक साक्ष्यों और सरकारी अधिकारियों से ज्ञापनों के माध्यम से जानकारी एकत्र कर सकती है।
    • साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के बाद यह समिति अपने निष्कर्ष तैयार करती है, जिसमें विधेयक के उद्देश्य के साथ संरेखित करने के लिये खंडों में संशोधन शामिल हो सकता है।
      • यह विधेयक के विशिष्ट पहलुओं को संबोधित करने के लिये उप-समितियाँ भी बना सकती है।
    • किसी भी असहमतिपूर्ण राय सहित इस समिति की रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की जाती है।
      • इस प्रवर समिति की रिपोर्टें अनुशंसात्मक प्रकृति की होती है। सरकार समिति की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सी संसदीय समिति जाँच करती है और सदन को रिपोर्ट करती है कि संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों, उप-नियमों, उप-विधियों आदि को बनाने की शक्तियों का कार्यपालिका द्वारा प्रतिनिधिमंडल के दायरे में उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है। (2018)

(a) सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति
(b) अधीनस्थ विधान संबंधी समिति
(c) नियम समिति
(d) कार्य मंत्रणा समिति

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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