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लसीका फाइलेरिया

  • 14 Aug 2023
  • 7 min read

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने लसीका फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) के लिये वार्षिक राष्ट्रव्यापी मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) पहल के दूसरे चरण का उद्घाटन किया।

  • भारत का लक्ष्य एक मिशन-संचालित रणनीति के माध्यम से वैश्विक लक्ष्य से तीन वर्ष पहले वर्ष 2027 तक लसीका फाइलेरिया का उन्मूलन करना है।

लसीका फाइलेरिया:

  • परिचय:
    • लसीका फाइलेरिया, जिसे आमतौर पर हाथीपाँव रोग (एलिफेंटियासिस) के रूप में जाना जाता है, परजीवी संक्रमण के कारण होने वाला एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Disease- NTD) है जो संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है।
    • यह रोग विश्व के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लाखों व्यक्तियों को प्रभावित करता है।
  • कारण एवं संचरण:
    • लसीका फाइलेरिया, फिलारियोडिडिया परिवार के नेमाटोड (राउंडवॉर्म) के रूप में वर्गीकृत परजीवियों के संक्रमण के कारण होता है।
    • ये धागे जैसे फाइलेरिया कृमि 3 प्रकार के होते हैं:
      • वुचेरेरिया बैन्क्रॉफ्टी (Wuchereria Bancrofti), जो 90% मामलों के लिये उत्तरदायी होता है।
      • ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi), जो शेष अधिकांश मामलों का कारण बनता है।
      • ब्रुगिया टिमोरी (Brugiya Timori), भी इस रोग का कारण है।
  • लक्षण:
    • लसीका फाइलेरिया संक्रमण में स्पर्शोन्मुख, तीव्र तथा गंभीर स्थितियाँ शामिल होती हैं।
      • गंभीर स्थितियों में इसमें लिम्फोएडेमा (ऊतक सूजन) या एलिफेंटियासिस (त्वचा/ऊतक का मोटा होना) एवं हाइड्रोसील (अंडकोश की सूजन) जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
  • उपचार:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) लसीका फाइलेरिया के वैश्विक उन्मूलन में तीव्रता लाने के लिये उपचार कर लिये तीन दवाओं की सिफारिश करता है। उपचार, जिसे IDA के रूप में जाना जाता है, में आइवरमेक्टिन, डायथाइलकार्बामाज़िन साइट्रेट तथा एल्बेंडाज़ोल का संयोजन शामिल है।
      • इसके तहत लगातार दो वर्षों तक इन दवाओं को देना शामिल है। वयस्क कृमि का जीवन मुश्किल से चार वर्ष का होता है, इसलिये यह व्यक्ति को कोई हानि पहुँचाए बिना स्वाभाविक रूप से समाप्त जाएगा।
  • वैश्विक खतरा और निवारक उपाय:
    • 44 देशों में 882 मिलियन से अधिक लोग हाथीपाँव रोग/लसीका फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) के खतरे का सामना करते हैं और उन्हें निवारक कीमोथेरेपी (Preventive Chemotherapy) की आवश्यकता होती है।
    • जोखिम वाली आबादी के लिये सुरक्षित दवा संयोजनों का उपयोग करके मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Mass Drug Administration- MDA) एक निवारक दृष्टिकोण है।
    • संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये वर्ष 2000 से अब तक 9 अरब से अधिक लोगों का उपचार किया जा चुका है।
  • प्रगति एवं उपलब्धियाँ:

    • MDA के सफल प्रयासों से संचरण और संक्रमण के प्रसार में कमी आई है।
    • 740 मिलियन लोगों को अब निवारक कीमोथेरेपी की आवश्यकता नहीं है।
    • वर्ष 2018 में 51 मिलियन लोग संक्रमित हुए जो वैश्विक उन्मूलन प्रयासों की शुरुआत के बाद से 74% की कमी दर्शाता है।
  • वेक्टर (रोगाणु) नियंत्रण और WHO का दृष्टिकोण:
    • मच्छर नियंत्रण, जैसे- कीटनाशक-उपचारित जाल (Insecticide-Treated Nets) और इनडोर अवशिष्ट छिड़काव (Indoor Residual Spraying), निवारक कीमोथेरेपी के पूरक हैं।
    • हाथीपाँव रोग के उन्मूलन हेतु WHO का वैश्विक कार्यक्रम (WHO's Global Programme to Eliminate Lymphatic Filariasis- GPELF) इस बीमारी को खत्म करने के लक्ष्य के साथ वर्ष 2000 में शुरू किया गया था।
      • GPELF का लक्ष्य निरंतर कम संक्रमण दर हासिल करना और देखभाल प्रदान करके 80% स्थानिक देशों में लसीका फाइलेरिया के उन्मूलन के सत्यापन के मानदंडों को पूरा करना है।
      • यह कार्यक्रम सभी स्थानिक देशों में पोस्ट-MDA निगरानी के लिये प्रयास करता है और अंततः MDA की आवश्यकता वाली आबादी को शून्य तक कम कर देता है।
    • यह रणनीति संक्रमण को फैलने से रोकने और प्रभावित व्यक्तियों को आवश्यक देखभाल प्रदान करने पर केंद्रित है।

लसीका फाइलेरिया के उन्मूलन हेतु भारत की पहल:

  • राष्ट्रव्यापी मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन अभियान स्थानिक क्षेत्रों में निवारक दवाओं की आपूर्ति करता है।
  • विभिन्न हितधारकों, क्षेत्रों और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से पहल के प्रभाव को बढ़ाना।
  • "जनभागीदारी (Jan Bhagidaari) और 'संपूर्ण सरकार (Whole of Government)' तथा 'संपूर्ण समाज (Whole of Society)' दृष्टिकोण के माध्यम से भारत इस बीमारी को देश से खत्म करने में सक्षम होगा।"
  • MDA पहल के दूसरे चरण में लक्षित हस्तक्षेप के लिये 9 स्थानिक राज्यों के 81 ज़िलों पर ध्यान केंद्रित किया गया है (ये राज्य हैं असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश)।   
  • राज्य-केंद्र के सहयोग से स्वास्थ्य देखभाल, निगरानी, रोकथाम और उपचार को बढ़ावा देना।
  • स्वास्थ्य कर्मियों की उपस्थिति में दवा सेवन हेतु प्रोत्साहित कर अनुपालन को बढ़ावा देना।

स्रोत: पी.आई.बी.

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