रैपिड फायर
रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल
- 05 May 2025
- 4 min read
स्रोत: पी.आई.बी.
30 वर्षों के बाद गंगा नदी में पुनः रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल (बटागुर कचुगा) छोड़े गए हैं, जो नमामि गंगे मिशन और टर्टल सर्वाइवल अलायंस इंडिया (TSAFI) परियोजना के तहत एक बड़ी सफलता है।
- कछुओं को उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य के भीतर बिजनौर गंगा बैराज के समीप स्थित रामसर साइट हैदरपुर वेटलैंड में छोड़ा गया।
रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल:
- परिचय: यह अलवणीय जल का कछुआ है जो जियोमाइडीडे कुल से संबंधित है। इसे बंगाल रूफ टर्टल के नाम से भी जाना जाता , यह भारत में पाई जाने वाली 24 स्थानिक प्रजातियों में से है।
- मुख्य विशेषताएँ: मादा कछुओं की वृद्धि 56 सेमी. और 25 किलोग्राम तक होती है, जबकि नर कछुए आकार में छोटे होते हैं और इनके मुख और गर्दन पर चमकीले लाल, पीले, सफेद और नीले रंग के निशान होते हैं।
- विशेष रूप से किशोर कछुओं में, कवच (ऊपरी कवच) दृढ़ता से घुमावदार होता है और युवा कछुओं में प्लास्ट्रॉन (निचला कवच) पार्श्व कोणीय होता है, जिससे उन्हें एक तेज़ धार वाला रूप मिलता है ।
- यह शाकाहारी प्रजाति जलीय पौधों पर निर्भर रहती है और मार्च-अप्रैल के दौरान 11-30 अंडे देती है ।
- आवास स्थल और वितरण: यह ऐतिहासिक रूप से भारत , नेपाल और बांग्लादेश की नदी प्रणालियों में पाया जाता था , विशेष रूप से गंगा , चंबल एवं ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी, गहरी नदियों में ।
- आवास क्षरण , रेत खनन और प्रदूषण के कारण यह गंगा की मुख्य धारा से लुप्त हो गई।
- अब इसे भारत के उत्तर प्रदेश में हैदरपुर वेटलैंड में पुनः शामिल किया गया है , जो गंगा से जुड़ता है और इसके पुनरुद्धार के लिये उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है।
- प्रमुख खतरे: प्रदूषण, बाँध निर्माण और जल निकासी के कारण आवास का नुकसान। रेत खनन और मौसमी कृषि इसके घोंसले के लिये रेत के टीलों को नष्ट कर देती है, अवैध मत्स्यन के जाल डूबने व अवैध शिकार तथा अवैध पालतू व्यापार का कारण बनते हैं।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972: अनुसूची I
- CITES: परिशिष्ट II
टर्टल सर्वाइवल एलायंस इंडिया (TSAFI)।
- TSAFI वैश्विक टर्टल सर्वाइवल एलायंस (TSA) का भारतीय इकाई का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे IUCN के तहत वर्ष 2001 में स्वच्छ जल के कछुओं और कछुओं को निवास स्थान के नुकसान, अवैध व्यापार और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों से बचाने के लिये बनाया गया था, जिसका मिशन "21वीं सदी में शून्य कछुआ विलुप्ति" है।
और पढ़ें: भारत में रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल, ओलिव रिडले कछुए