उत्तर प्रदेश
रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल
- 02 May 2025
- 7 min read
चर्चा में क्यों
तीन दशकों की अनुपस्थिति के बाद रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल की गंगा नदी में वापसी हुई है।
- यह सफलता नमामि गंगे मिशन और उसके तहत संचालित टर्टल सरवाइवल एलायंस इंडिया (TSAFI) परियोजना के अंतर्गत एक ऐतिहासिक जैवविविधता संरक्षण उपलब्धि है।
मुख्य बिंदु
- रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल के बारे में:
- वैज्ञानिक नाम: बाटागुर कचुगा।
- सामान्य नाम: बंगाल रूफ टर्टल, रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल।
- परिचय:
- रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल भारत के स्थानिक 24 प्रजातियों में से एक है जिसके नर के चेहरे और गर्दन पर लाल, पीले, सफेद एवं नीले जैसे चमकीले रंग उनकी विशेषता है।
- वितरण:
- यह मीठे पानी में पाए जाने वाले कछुए की प्रजाति है जो नेस्टिंग साइट्स वाली गहरी बहने वाली नदियों में पाई जाती है।
- ऐतिहासिक रूप से यह प्रजाति भारत और बांग्लादेश दोनों में गंगा नदी में व्यापक रूप से पाई जाती थी। यह ब्रह्मपुत्र बेसिन में भी पाई जाती है।
- वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय चंबल नदी घड़ियाल अभयारण्य एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ इस प्रजाति की पर्याप्त आबादी है, लेकिन यह संरक्षित क्षेत्र और आवास भी अब खतरे में हैं।
- खतरा:
- बड़ी तटीय और नदी परियोजनाएँ नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करती हैं और इससे जल प्रदूषण में वृद्धि होती है।
- उप-प्रजातियाँ मत्स्य जालों में फँसने और मानव गतिविधियों से उत्पन्न व्यवधानों के कारण संकट में पड़ जाती हैं।
- प्रदूषण, सिंचाई के लिये जल की अत्यधिक निकासी और अनियंत्रित बाँधों का प्रवाह प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- गंगा नदी के किनारे स्थित रेत के टापुओं का क्षेत्र, जो शिकार के लिये उपयुक्त होता है, खनन और मौसमी कृषि के कारण लगातार सिकुड़ता जा रहा है।
- अवैध उपभोग और अवैध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये जानवर को ओवरहार्वेस्ट करना।
- सुरक्षा की स्थिति:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) रेड लिस्ट: गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered)
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972: अनुसूची I (Schedule I)
- CITES : परिशिष्ट II
- पुनर्वास
- कछुओं को उत्तर प्रदेश के हैदरपुर आर्द्रभूमि में छोड़ा गया। यह क्षेत्र गंगा नदी के साथ स्थित है और यहाँ का पारिस्थितिकी तंत्र कछुओं के पुनर्वास के लिये उपयुक्त माना गया।
- कछुओं को दो समूहों में बाँटा गया था – एक को गंगा बैराज के ऊपरी हिस्से में और दूसरे को निचले हिस्से में छोड़ा गया।
- प्रत्येक कछुए में एक ट्रैकिंग डिवाइस लगाया गया है, जिससे उनके आवागमन और पर्यावरण में अनुकूलन को मॉनिटर किया जा सके।
नमामि गंगे कार्यक्रम
- परिचय:
- नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम' के रूप में अनुमोदित किया गया था, ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प के दोहरे उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
- यह जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग तथा जल शक्ति मंत्रालय के तहत संचालित किया जा रहा है।
- नमामि गंगे कार्यक्रम (2021-26) के दूसरे चरण में राज्य परियोजनाओं को तेज़ी से पूरा करने और गंगा के सहायक शहरों में परियोजनाओं के लिये विश्वसनीय विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report- DPR) तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
- छोटी नदियों और आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
टर्टल सर्वाइवल एलायंस इंडिया (TSAFI)
- TSAFI, वैश्विक टर्टल सर्वाइवल एलायंस का भारतीय इकाई का प्रतिनिधित्व करता है, जो दुनिया भर में मीठे पानी की कछुओं की प्रजातियों की सुरक्षा के लिये समर्पित है।
- यह संस्था कछुओं को प्रमुख ख़तरों जैसे कि आवास विनाश, अवैध वन्यजीव व्यापार और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिये कार्य करती है।
- यह विभिन्न पहलें संचालित करती है, जैसे:
- कछुओं की प्रजातियों और उनके आवासों पर वैज्ञानिक अनुसंधान
- मैदान स्तर पर संरक्षण परियोजनाएँ
- जनता में शिक्षा और जागरूकता अभियान
- TSAFI का उद्देश्य है वैज्ञानिक विशेषज्ञता और समुदाय की भागीदारी को एक साथ जोड़कर भारत में कछुओं की प्रजातियों का दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित करना है।
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य
- राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के त्रि-जंक्शन पर स्थित है।
- यह एक दुर्बल सरित्जीवी (Lotic) पारिस्थितिकी तंत्र है, जो घड़ियालों- मछली खाने वाले मगरमच्छों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल है।
- यह अभयारण्य वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है और इसे 'महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- अभयारण्य एक प्रस्तावित रामसर स्थल भी है जिसमें स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की 320 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।