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ओलिव रिडले कछुओं का सामूहिक नीडन

  • 27 Apr 2023
  • 6 min read

भारत के ओडिशा राज्य में रुशिकुल्या समुद्र तट पर हाल ही में पिछले कुछ दशकों में ओलिव रिडले समुद्री कछुओं का सबसे बड़ा समूह देखा गया है।

  • लाखों छोटे कछुओं को अंडों से निकलकर समुद्री मार्गों से होते हुए बंगाल की खाड़ी की ओर जाते देखा गया है।

महत्त्व:

  • रुशिकुल्या समुद्र तट एक वन्यजीव अभयारण्य नहीं है फिर भी कछुए सामूहिक नीडन (नेस्टिंग) हेतु यहाँ सुरक्षित महसूस करते हैं।
    • सामूहिक नीडन और हैचिंग (अंडों से बच्चों का बाहर निकलना) एक स्वस्थ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र तथा अंडे देने हेतु समुद्री कछुओं के लिये अनुकूल वातावरण का संकेतक है।
    • अनेकों ओलिव रिडले कछुओं की सफल हैचिंग उनके संरक्षण की दृष्टि से एक सकारात्मक संकेत है।

ओलिव रिडले कछुए:

  • विषय:
  • ओलिव रिडले कछुए विश्व भर में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और प्रचुर संख्या में मौजूद हैं।
  • ये कछुए मांसाहारी होते हैं और इनका नाम इनके बाह्य आवरण के ओलिव यानी जैतून रंग के होने से प्रेरित है।
  • ये कछुए अपने अद्वितीय सामूहिक नीडन (Mass Nesting) अरीबदा (Arribada) के लिये सबसे ज़्यादा जाने जाते हैं जिसमें हज़ारों मादाएँ अंडे देने के लिये एक ही समुद्र तट पर एक साथ आती हैं।

  • पर्यावास:
    • ये मुख्य रूप से प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों के गर्म जल में पाए जाते हैं।
    • ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य को विश्व में समुद्री कछुओं की सबसे बड़ी रुकरी (प्रजनन करने वाले जीवों की एक कॉलोनी) के रूप में जाना जाता है।

  • संरक्षण की स्थिति:
  • ओलिव रिडले कछुओं के संरक्षण हेतु पहल:
    • ऑपरेशन ओलिविया:
      • प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले भारतीय तटरक्षक बल का "ऑपरेशन ओलिविया" 1980 के दशक के आरंभ में शुरू हुआ था, यह ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा करने में मदद करता है क्योंकि वे नवंबर से दिसंबर तक प्रजनन (Breeding) और नीडन (Nesting) के लिये ओडिशा के तट पर एकत्र होते हैं।
        • यह अवैध ट्रैपिंग गतिविधियों को भी रोकता है।
    • टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेस (TED) का अनिवार्य उपयोग:
      • भारत में इनकी आकस्मिक मौत की घटनाओं को रोकने हेतु ओडिशा सरकार ने ट्रॉल के लिये टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेस (Turtle Excluder Devices- TED) का उपयोग अनिवार्य कर दिया है, जालों को विशेष रूप से निकास कवर के साथ बनाया गया है जो जाल में फँसने के दौरान कछुओं को उससे निकलने में सहायता करता है।
    • टैगिंग:
      • प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा के लिये वैज्ञानिक गैर-संक्षारक धातु टैग के साथ लुप्तप्राय ओलिव रिडले कछुओं को टैग करते हैं। यह उन्हें कछुओं की गतिविधियों को ट्रैक करने एवं उन स्थानों की पहचान करने में मदद करता है जहाँ वे अक्सर जाते हैं।

नोट:

  • वर्ष 2006 में स्थापित बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार स्वच्छ जल के कछुओं और अन्य कछुओं के संरक्षण के क्षेत्र में किये गए उत्कृष्ट कार्यों को सम्मानित करने हेतु दिया जाने वाला प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है। इसे कछुआ संरक्षण का "नोबेल पुरस्कार" माना जाता है।
  • इसे प्रत्येक वर्ष टर्टल सर्वाइवल एलायंस (TSA), IUCN कच्छप और मीठे पानी के कछुआ विशेषज्ञ समूह (Tortoise and Freshwater Turtle Specialist Group- TFTSG), कछुआ संरक्षण तथा कछुआ संरक्षण कोष द्वारा प्रदान किया जाता है।

ओलिव रिडले कछुओं के समक्ष खतरे:

  • मानवीय गतिविधियाँ: तटीय विकास, मत्स्यन और प्रदूषण के साथ-साथ उनके आवास स्थलों का विनाश तथा मत्स्यन के दौरान जाल में फँसना।
  • हिंसक पशु: इन कछुओं के अंडों या छोटे कछुओं को कुत्ते, लकड़बग्घा और शिकारी पक्षियों द्वारा शिकार किये जाने का खतरा बना रहता है।
  • जलवायु परिवर्तन: तापमान और समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण कछुओं के आवास को काफी नुकसान पहुँचता है और हैचिंग में परेशानी होती है।
  • प्रकाश प्रदूषण: आस-पास के कस्बों और औद्योगिक क्षेत्रों से आने वाली कृत्रिम रोशनी अंडे से निकले नवजात कछुओं (Hatchlings) को उनके मार्ग से विचलित कर सकती है जिस कारण कछुओं को समुद्र से दूर जाना पड़ सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव है? (2015)

(a) खारे पानी के मगरमच्छ
(b) ओलिव रिडले कछुए
(c) गंगा डॉल्फिन
(d) घड़ियाल

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू

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