इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 24 दिसंबर, 2020

  • 24 Dec 2020
  • 6 min read

विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 दिसंबर पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया। वर्ष 1921 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय देश के सबसे पुराने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है। मई 1951 में संसद के एक अधिनियम द्वारा विश्व-भारती को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय तथा राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित किया गया था। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर पारंपरिक तौर पर कक्षाओं में दी जाने वाली शिक्षा के पूर्णतः विरुद्ध थे, उनका मत था कि सीखने के लिये प्रकृति के साथ सहभागिता आवश्यक है। उन्होंने शिक्षा को एक समग्र विकास की प्रक्रिया के रूप में अभिकल्पित किया, जहाँ शिक्षक भावनात्मक, बौद्धिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिये छात्रों का मार्गदर्शन करने वाले गुरु की तरह कार्य करेंगे। वर्ष 1921 में स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय में भी इसी शिक्षण पद्धति का प्रयोग किया गया, हालाँकि समय के साथ विश्वभारती विश्वविद्यालय ने भी अपनी शिक्षण व्यवस्था में परिवर्तन किया है और उसे आधुनिक शिक्षा पद्धति के अनुरूप बनाया गया है।

यूनेस्को की विरासत सूची में सिंगापुर का स्ट्रीट फूड 

हाल ही में यूनेस्को ने सिंगापुर के सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक वहाँ की स्ट्रीट फूड संस्कृति को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में नामित किया है। सिंगापुर के स्ट्रीट हॉकर्स देश के स्थानीय जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। सिंगापुर की स्ट्रीट फूड संस्कृति पर्यटकों के लिये भी एक बड़ा आकर्षण केंद्र है और प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में लोग यहाँ पहुँचते हैं। इस जीवंत स्ट्रीट फूड संस्कृति का विकास 1800 के दशक के आस-पास हुआ था, जब सिंगापुर ब्रिटिश साम्राज्य का एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बना। वर्ष 1965 में सिंगापुर को स्वतंत्रता मिली, किंतु सिंगापुर की यह विशिष्ट संस्कृति उसके साथ ही रही। सिंगापुर की स्ट्रीट फूड संस्कृति अब उस सूची का हिस्सा बन गई है, जिसमें भारत से योग, जमैका से रेग संगीत और फिनलैंड की सौना संस्कृति आदि शामिल हैं।

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस

देश में उपभोक्ताओं के महत्त्व, उनके अधिकारों और दायित्त्वों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। भारत की एक बड़ी आबादी अशिक्षित है, जो अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के प्रति अनभिज्ञ है, लेकिन उपभोक्ता अधिकारों के मामले में शिक्षित लोग भी अपने अधिकारों के प्रति उदासीन नज़र आते हैं। इसी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये प्रतिवर्ष इस दिवस का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1986 में इसी दिन राष्ट्रपति ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को मंज़ूरी दी थी। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के शोषण जैसे दोषयुक्त सामान, असंतोषजनक सेवाओं और अनुचित व्यापार प्रथाओं के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना है। वर्ष 2020 के लिये इस दिवस का थीम ‘सतत् उपभोक्ता’ है। यह थीम वैश्विक स्वास्थ्य संकट, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान आदि से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है। ज्ञात हो कि वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस का आयोजन किया जाता है।

यूरोपीय संघ में प्लास्टिक अपशिष्ट संबंधी नए नियम

यूरोपीय संघ ने 01 जनवरी, 2021 से विकासशील और अल्पविकसित देशों में अवर्गीकृत प्लास्टिक अपशिष्ट को निर्यात करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व चीन ने प्लास्टिक अपशिष्ट के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। कई पर्यावरणविदों ने चिंता ज़ाहिर की थी कि विकसित देशों द्वारा जो अपशिष्ट मलेशिया जैसे एशियाई देशों में निर्यात किया जाता है, उसका सही ढंग से उपचार नहीं किया जाता है और समुद्र में ही फेंक दिया जाता है, जिससे समुद्री प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। नए नियमों के तहत, केवल 'स्वच्छ प्लास्टिक अपशिष्ट’ जिसे पुनर्नवीनीकृत किया जा सकता है, को ही गैर-OECD (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) देशों को निर्यात करने की अनुमति दी गई है। प्रत्येक वर्ष यूरोपीय देशों में 25 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करते हैं, किंतु इसका एक तिहाई (30 प्रतिशत) से भी कम पुनर्नवीनीकृत हो पाता है। आँकड़ों की माने तो दुनिया भर के समुद्र तटों पर मौजूद कचरे का 85 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow