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एकीकृत मेट्रो कानून की आवश्यकता

  • 03 Sep 2022
  • 3 min read

हाल ही में आवास और शहरी मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने देश के सभी मेट्रो रेल नेटवर्कों के लिये एकल और व्यापक कानून की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है और मौजूदा तीन केंद्रीय अधिनियमों का विरोध किया है।

  • सभी मेट्रो रेल परियोजनाएँ मेट्रो रेलवे (निर्माण कार्यों) अधिनियम, 1978, मेट्रो रेलवे (संचालन और रखरखाव) अधिनियम, 2002 और रेलवे अधिनियम, 1989 के कानूनी ढाँचे के अंतर्गत आती हैं।

पैनल द्वारा उजागर प्रुमख मुद्दे:

  • दिल्ली और मुंबई को छोड़कर सभी महानगरों में यात्रियों की संख्या कम है।
  • जिससे परियोजनाओं में लाभ अर्जन की स्थति (Breaking Even Point) प्राप्त करने में देरी हो रही है।
  • छह से सात वर्ष के निरंतर संचालन के बाद भी कुछ चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं, जैसे:
    • दोषपूर्ण विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Faulty Detailed Project Report-DPRs)
    • प्रथम बिंदु से अंतिम बिंदु तक कनेक्टिविटी प्रदान करने हेतु उचित योजना का अभाव,
    • मेट्रो और रेलवे स्टेशनों पर पार्किंग की व्यवस्था,
    • जलग्रहण क्षेत्र बढ़ाने की आवश्यकता आदि।

पैनल की सिफारिशें:

  • पारंपरिक मेट्रो प्रणालियों के बजाय कम सवारियों वाले छोटे शहरों में अल्प पूंजी-गहन मेट्रोनियो (MetroNeo) और मेट्रोलाइट (MetroLite) नेटवर्क के उपयोग की आवश्यकता है।
    • मेट्रोनियो टियर-2 और टियर-3 शहरों के लिये निम्न लागत, ऊर्जा कुशल और पर्यावरण के अनुकूल शहरी परिवहन समाधान प्रदान करने वाली एक विशाल रैपिड ट्रांज़िट प्रणाली है।
    • मेट्रोलाइट प्रणाली के साथ सड़क यातायात को पृथक करने के लिये एक समर्पित पथ का निर्माण होगा,
      • सड़क यातायात के साथ पृथक्करण के लिये, पथ के दोनों ओर बाड़ लगाई जा सकती है।
  • इसके अलावा कोच्चि जल मेट्रो परियोजना को भारी उद्योग मंत्रालय की फेम-II योजनके अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये क्योंकि यह बैटरी से चलने वाली नावों का उपयोग करके परिवहन क्षेत्र को प्रदूषण मुक्त करने का एक उचित माध्यम होगा।

 स्रोत: द हिंदू

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