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मध्य प्रदेश

नरसापुरम क्रोशिया लेस

  • 29 Dec 2025
  • 14 min read

स्रोत: द हिंदू

आंध्र प्रदेश के नरसापुरम की पारंपरिक क्रोशिया लेस शिल्प के निर्यात ने वर्तमान वित्तीय वर्ष में ₹150 करोड़ का आँकड़ा पार कर लिया है, जो कोविड-19 के आघातों के बाद इस शिल्प के मज़बूत पुनरुत्थान को दर्शाता है।

नरसापुरम क्रोशिया लेस

  • उत्पत्ति: वर्ष 1844 में आरंभ हुई नरसापुरम की क्रोशेक्रोशिया लेस कला ने वर्ष 1899 के भारतीय अकाल और वर्ष 1929 की महामंदी जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना किया, जो इसकी दीर्घकालिक विरासत को दर्शाता है।
    • बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक गोदावरी क्षेत्र में 2,000 से अधिक महिलाएँ लेस निर्माण में संलग्न थीं, जो इसके सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • तकनीक: इस शिल्प में महीन सूती धागों को विभिन्न आकार की नाजुक क्रोशिया सुइयों की सहायता से जटिल लेस संरचनाओं में बदला जाता है।
  • कार्यविधि: कारीगर एकल क्रोशिया हुक का उपयोग कर फंदे (लूप) और आपस में जुड़े टाँके बनाते हैं, जिनसे अत्यंत सूक्ष्म और जटिल लेस डिज़ाइन तैयार होते हैं।
  • उत्पाद: हस्तनिर्मित क्रोशिया उद्योग में वस्त्र, गृह-सज्जा तथा सहायक वस्तुएँ तैयार की जाती हैं, जैसे—डोइली, तकिया कवर, बेडस्प्रेड, टेबल लिनन, पर्स, स्टोल, लैम्पशेड और वॉल हैंगिंग।
  • बाज़ार: नरसापुरम क्रोशिया लेस के उत्पादों का निर्यात पूरे विश्व में किया जाता है, जिनमें यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्राँस शामिल हैं।
  • मान्यता: इस शिल्प को वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP) पुरस्कार तथा भौगोलिक उपदर्शन प्रमाणन (GI) प्राप्त हुआ है। इसे इंटरनेशनल लेस ट्रेड सेंटर और हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (EPCH) का भी समर्थन प्राप्त है।
    • EPCH, वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय हस्तशिल्प के संवर्धन का कार्य करता है।

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