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अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण सम्मेलन

  • 03 Jun 2025
  • 3 min read

स्रोत: द हिंदू

ताजिकिस्तान ने UNESCO और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के सहयोग से दुशांबे (ताजिकिस्तान) में पहले संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण सम्मेलन की मेज़बानी की, जिसके परिणामस्वरूप दुशांबे ग्लेशियर घोषणा को अंगीकृत किया गया।

  • परिचय: हिमनद (ग्लेशियर) बर्फ के धीमी गति से बहने वाले विशाल पिंड होते हैं, जो सदियों से जमी हुई बर्फ के संपीडन (दबने) से बनते हैं।
    • ये मुख्यतः ध्रुवीय क्षेत्रों (ग्रीनलैंड, कनाडाई आर्कटिक, अंटार्कटिका) में पाए जाते हैं, जहाँ सौर विकिरण बहुत कम होती है, वहीं उष्णकटिबंधीय ग्लेशियर भूमध्य रेखा के निकट स्थित ऊँचाई वाले क्षेत्रों, जैसे कि एंडीज़ पर्वत में पाए जाते हैं।

ग्लेशियरों का महत्त्व: 

  • स्वच्छ जल: पृथ्वी के कुल जल का केवल 3% भाग ही स्वच्छ जल है और उसमें से लगभग 70% स्वच्छ जल ग्लेशियरों में संग्रहित होता है।
  • नदी प्रणालियाँ: हिंदू कुश हिमालय (HKH) को “एशिया का जल टॉवर” कहा जाता है और ये सिंधु नदी प्रणाली के जल प्रवाह का लगभग 40% योगदान करते हैं।
  • जलवायु अभिलेख: ग्लेशियरों में लगभग 8,00,000 वर्षों तक के जलवायु अभिलेख संरक्षित रहते हैं, जो वैज्ञानिकों को ऐतिहासिक तापमान वृद्धि और गिरावट के पैटर्न का अध्ययन करने में मदद करते हैं।
  • मानसून प्रभाव: हिमालयी ग्लेशियरों और हिंद महासागर के बीच तापमान का अंतर दक्षिण-पश्चिम मानसून के वायु प्रवाह को संचालित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • ग्लेशियर रिट्रीट: नेपाल के लांगटांग क्षेत्र का याला ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल चुका है, वहीं वेनेज़ुएला स्लोवेनिया के बाद ऐसा दूसरा देश बन गया है जहाँ सभी ग्लेशियर पिघल चुके हैं।

उठाए गए कदम:

Earth's_Water

और पढ़ें: 2025 ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष

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