रैपिड फायर
भारत की हरित वित्त योजना
- 15 Sep 2025
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भारत वर्ष 2030 तक अपने 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य के लिये लगभग 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की हरित वित्त जुटाने हेतु कॉन्ट्रैक्ट्स फॉर डिफरेंस (CfD) को एक केंद्रीय तंत्र के रूप में अपना रहा है।
- CfD, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों और सरकार के बीच राजस्व स्थिरीकरण हेतु एक वित्तीय समझौता है। यदि बाज़ार मूल्य सहमत स्ट्राइक मूल्य से नीचे गिर जाते हैं, तो सरकार उत्पादक को अंतर का भुगतान करती है और यदि मूल्य इससे ऊपर बढ़ जाते हैं, तो उत्पादक अधिशेष राशि वापस कर देता है।
- CfD जोखिम को कम करते हैं और यूरोप में नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये व्यापक रूप से उपयोग किये जाते हैं।
- हरित वित्त में पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किये गए वित्तीय उत्पाद और सेवाएँ शामिल हैं। पेरिस समझौते के अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिये, भारत को वर्ष 2030 तक 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।
- भारत को विकास के लिये आवश्यक हरित वित्त पर ध्यान केंद्रित करते हुए, अपने नेट ज़ीरो लक्ष्य के लिये वर्ष 2070 तक 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।
- भारत में हरित वित्त पहलें: भारत कोयला उपकर द्वारा वित्तपोषित राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा एवं पर्यावरण कोष (NCEEF) के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा का वित्तपोषण करता है।
- भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) द्वारा रियायती ऋण।
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनिवार्य प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL)।
- ग्रीन, सोशल और सस्टेनेबिलिटी (GSS) बॉण्ड।
- ग्रामीण परियोजनाओं के लिये कार्बन बाज़ार और क्रेडिट तथा बेटरवेस्ट जैसे क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म।
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