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क्लस्टर युद्ध सामग्री

  • 11 Jul 2023
  • 4 min read

संयुक्त राज्य अमेरिका (US) ने यूक्रेन को 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक के नए सैन्य सहायता पैकेज के हिस्से के रूप में क्लस्टर हथियार प्रदान करने का निर्णय लिया है।

  • इस कदम ने नागरिक हताहतों के विषय में चिंता बढ़ा दी है, संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे हथियारों के इस्तेमाल से बचने का आह्वान किया है।

क्लस्टर युद्ध सामग्री:

  • परिचय:  
    • क्लस्टर युद्ध सामग्री विमान से गिराए जाने वाले या ज़मीन से छोड़े जाने वाले विस्फोटक हथियार का एक रूप है जो एक विस्तृत क्षेत्र में छोटे सबमिशन, जिन्हें आमतौर पर बम के रूप में जाना जाता है, के अनुप्रयोग से है।
    • वे मनुष्यों को घायल करने या मारने और रनवे, रेलवे या पावर ट्रांसमिशन लाइनों तथा अन्य लक्ष्यों को नष्ट करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।
  • चुनौतियाँ:  
    • क्लस्टर युद्ध सामग्री अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन करते हुए नागरिकों और वस्तुओं को अत्यधिक हानि पहुँचा सकती है।
      • उनकी विफलता दर उच्च है, वे अपने पीछे बिना विस्फोट वाले आयुध छोड़ जाते हैं जो लगातार खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त वे लंबे समय तक विशाल क्षेत्रों को प्रदूषित करते हैं, जिससे वे मानव उपयोग के लिये अनुपयुक्त हो जाते हैं, साथ ही ये प्रभावित देशों में स्वास्थ्य देखभाल और अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ाते है।
  • पहले के प्रयोग: 
    • वर्ष 2001 में अफगानिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका ने क्लस्टर बमों को महत्त्वपूर्ण माना था।
    • अमेरिका ने अंतिम बार वर्ष 2003 में इराक के साथ युद्ध के दौरान क्लस्टर बमों का प्रयोग किया था
    • सीरियाई गृहयुद्ध में रूस द्वारा भेजी गई सरकारी सेना प्राय: क्लस्टर युद्ध सामग्री प्रयोग करती थी।
    • इज़रायल ने दक्षिण लेबनान के नागरिक क्षेत्रों में क्लस्टर बमों का उपयोग किया, विशेष रूप से वर्ष 2006 में हिज़्बुल्लाह के साथ युद्ध के दौरान।
    • यमन में सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन को हौथी विद्रोहियों के साथ अपने संघर्ष में क्लस्टर बमों का उपयोग करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा।
  • क्लस्टर युद्ध सामग्री पर अभिसमय:  
    • क्लस्टर युद्ध सामग्री पर अभिसमय नागरिक आबादी पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों के कारण इन हथियारों के उपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण और भंडारण को गैर-कानूनी घोषित करता है।
    • इसे 30 मई, 2008 को डबलिन में 107 देशों द्वारा अपनाया गया और 3 दिसंबर, 2008 को ओस्लो में इस पर हस्ताक्षर किये गए।
    • 1 अगस्त, 2010 से लागू होने के कारण यह अभिसमय एक बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय कानून बन गया।
    • अभी तक कुल 123 देश इस अभिसमय में शामिल हो चुके हैं जिसमें 111 सदस्य देश और 12 हस्ताक्षरकर्त्ता हैं। 
    • इस अभिसमय पर भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूक्रेन, पाकिस्तान और इज़रायल सहित कई देशों ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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