प्रारंभिक परीक्षा
इलायची थ्रिप्स हेतु जैव पीड़कनाशक
- 30 Jun 2025
- 5 min read
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
ICAR-भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (ICAR-IISR), कोझिकोड ने इलायची के बगानों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीट, इलायची थ्रिप्स, पर प्रभावी नियंत्रण के लिये एंटोमोपैथोजेनिक कवक (entomopathogenic fungus) लेकैनिसिलियम साइलियोटे (Lecanicillium psalliotae) का उपयोग करते हुए एक पर्यावरण अनुकूल जैव पीड़कनाशक विकसित किया है।
लेकैनिसिलियम साइलियोटे-आधारित जैव पीड़कनाशक क्या है?
- परिचय: लेकैनिसिलियम साइलियोटे का उपयोग करके एक दानेदार जैव पीड़कनाशक विकसित किया गया है, जो इलायची थ्रिप्स (साइकोथ्रिप्स कार्डामोमी) से पृथक किया गया एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एंटोमोपैथोजेनिक कवक है।
- यह कीटों की बाहरी परत को भेदकर उनके शरीर के भीतर पोषण ग्रहण करता है, जिससे यह लार्वा, प्यूपा और वयस्क कीटों पर प्रभावी नियंत्रण प्रदान करता है। यह संपर्क में आने पर कार्य करता है तथा ब्यूवेरिया बेसियाना एवं मेटारिज़ियम एनीसोप्लिया जैसे व्यापक रूप से प्रयुक्त जैव कीट नियंत्रण समूह का हिस्सा है।
- प्रयोग और लाभ: इस जैव पीड़कनाशक को खेत की खाद (FYM) के साथ मिलाकर पौधों की जड़ों के आस-पास 3 या 4 बार डाला जाता है।
- यह लागत प्रभावी है, रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करता है तथा जड़ों की वृद्धि और मृदा में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता को बढ़ावा देता है।
- महत्त्व: यह पर्यावरण के अनुकूल और विष-रहित है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव और स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं। यह एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) रणनीतियों का समर्थन करता है, संधारणीय कृषि को बढ़ावा देता है और इलायची जैसे निर्यातोन्मुख फसलों में अंतर्राष्ट्रीय अवशेष मानकों का पालन सुनिश्चित करता है।
नोट:
- दानेदार जैव पीड़कनाशक ऐसे प्रारूप होते हैं जिनमें सक्रिय घटक, जो सामान्यतः सूक्ष्मजीवों या पौधों जैसे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं, को ठोस कणों (ग्रैन्यूल्स) में समाहित या उन पर लेपित किया जाता है ताकि उनका प्रयोग सरल हो और वे नियंत्रित रूप से प्रभाव छोड़ें।
इलायची से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: इलायची (Elettaria cardamomum), जिसे लोकप्रिय रूप से "मसालों की रानी" कहा जाता है, एक अत्यधिक सुगंधित मसाला है जो ज़िंजिबरेसी (अदरक) से संबंधित है।
- यह पश्चिमी घाटों के सदाबहार वर्षावनों की मूल प्रजाति है।
- जलवायु संबंधी परिस्थितियाँ: इलायची को 1500–4000 मिमी वर्षा, 10°C से 35°C तापमान तथा 600–1500 मीटर की ऊँचाई की आवश्यकता होती है।
- यह अम्लीय, दोमट और ह्यूमस-समृद्ध मृदा में अच्छी तरह उगती है, जिसकी pH सीमा 5.0 से 6.5 होनी चाहिये।
- उत्पादन: वर्ष 2025 तक, शीर्ष इलायची उत्पादक देश ग्वाटेमाला (प्रथम), भारत (द्वितीय) और श्रीलंका (तृतीय) हैं।
- भारत में केरल इलायची उत्पादन में लगभग 58% का योगदान करता है, जबकि कर्नाटक और तमिलनाडु अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
- नव-चिह्नित प्रजातियाँ: एलेटेरिया फेसिफेरा (पेरियार टाइगर रिज़र्व, इडुक्की) और एलेटेरिया ट्यूलिपिफेरा (अगस्त्यमलाई पहाड़ियाँ, तिरुवनंतपुरम और मुन्नार, इडुक्की)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. लाइकेन, जो एक नम्न चट्टान पर भी पारिस्थितिक अनुक्रम को प्रारम्भ करने में सक्षम हैं, वास्तव में किनके सहजीवी साहचर्य हैं? (2014) (a) शैवाल और जीवाणु उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित जीवों पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से जैव उर्वरक के रूप में प्रयुक्त होता है/होते हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) |