विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
AI गवर्नेंस के भविष्य का निर्माण
- 11 Nov 2025
- 177 min read
यह एडिटोरियल 11/11/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Beijing’s WAICO could determine new global AI order. India must be vigilant” पर आधारित है। यह लेख शंघाई में वर्ल्ड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (वाइको) की स्थापना के लिये चीन के प्रस्ताव को रेखांकित करता है, जो वैश्विक AI शासन को आकार देने की उसकी मंशा को दर्शाता है। भारत के लिये यह आवश्यक है कि वह पारदर्शिता और समावेशन पर ज़ोर देते हुए, परंतु अपनी सामरिक स्थिति से कोई समझौता किये बिना इस प्रक्रिया में सतर्कता के साथ भागीदारी करे।
प्रिलिम्स के लिये: APEC समिट, एथिक्स ऑफ AI पर UNESCO की अनुशंसा, यूरोपीय संघ का AI अधिनियम, बैलेचली पार्क डिक्लेरेशन (यूके, 2023), AI सियोल समिट (2024), इंडिया-AI प्रभाव शिखर सम्मेलन, G7 हिरोशिमा AI प्रक्रिया, लार्ज लैंग्वेज मॉडल, BHASHINI मंच, IndiaAI मिशन
मेन्स के लिये: कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये मौजूदा वैश्विक शासन तंत्र, AI गवर्नेंस के लिये एकीकृत वैश्विक कार्यढाँचे में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे।
चीन ने वर्ल्ड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (WAICO) की स्थापना का प्रस्ताव रखा है, जिसका मुख्यालय शंघाई में होगा। इस पहल के माध्यम से वह स्वयं को वैश्विक कृत्रिम बुद्धिमत्ता शासन नियमों का निर्माता के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। APEC समिट में घोषित यह प्रस्ताव बीजिंग का नवीनतम प्रयास है जिसके माध्यम से वह बहुपक्षवाद की परिभाषा को अपने पक्ष में पुनर्निर्देशित करना चाहता है, जैसा कि उसने पूर्व में चीन-प्रेरित वैश्विक कार्यढाँचों की एक शृंखला के माध्यम से किया है। हालाँकि यह पहल ग्लोबल साउथ के लिये प्रौद्योगिकी-साझाकरण एवं वित्तीय सहायता का वादा करती है, परंतु इसके अंतर्गत पारदर्शिता, नियंत्रण और यह प्रश्न उठते हैं कि क्या यह संगठन संयुक्त राष्ट्र-नेतृत्व वाले कृत्रिम बुद्धिमत्ता शासन प्रयासों के पूरक के रूप में कार्य करेगा या उनके प्रतिस्पर्द्धी के रूप में। भारत के लिये चुनौती स्पष्ट है: बिना समर्थन के जुड़े, भौगोलिक दृष्टि से पारदर्शिता की मांग करे और यह सुनिश्चित करे कि अभिगम्यता निष्ठा पर निर्भर न हो। जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता भू-राजनीतिक प्रभाव की मुद्रा बनती जा रही है, आज जो नियम बनाए जा रहे हैं, वही भविष्य के नवाचार की दिशा निर्धारित करेंगे, इसलिये भारत को इन्हें लिखने में सहभागी बनना होगा, अन्यथा उसे वे नियम स्वीकार करने पड़ेंगे जिन्हें दूसरे रचेंगे।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये मौजूदा वैश्विक शासन तंत्र क्या हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन-सॉफ्ट लॉ और सिद्धांत: वैश्विक संस्थाएँ राष्ट्रीय ग्लोबल AI गवर्नेंस का मार्गदर्शन करने, मानव-केंद्रित विकास एवं साझा वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिये नैतिक कार्यढाँचे और गैर-बाध्यकारी सिद्धांत विकसित कर रही हैं।
- यह सॉफ्ट लॉ दृष्टिकोण आम सहमति को प्रोत्साहित करता है, लेकिन इसमें प्रवर्तन तंत्र का अभाव है, जिससे ठोस जवाबदेही की दिशा में प्रगति धीमी हो रही है।
- एथिक्स ऑफ AI पर UNESCO की अनुशंसा (2021) पहला वैश्विक मानक था, जिसे 194 सदस्य देशों ने अपनाया था।
- इसी प्रकार, वर्ष 2024 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘सुरक्षित, संरक्षित और विश्वसनीय’ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रणालियों को बढ़ावा देने पर एक प्रस्ताव अपनाया, जिससे सभी के सतत् विकास को भी लाभ होगा।
- क्षेत्रीय हार्ड लॉ- यूरोपीय संघ का कृत्रिम बुद्धिमत्ता अधिनियम मॉडल: यूरोपीय संघ का AI अधिनियम, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये विश्व का पहला व्यापक, जोखिम-आधारित कानूनी कार्यढाँचा है, जो नियामक दायित्वों को निर्धारित करने के लिये प्रणालियों को संभावित नुकसान के आधार पर वर्गीकृत करता है।
- यह कठोर विधिक कार्यढाँचा 'ब्रुसेल्स प्रभाव' उत्पन्न करता है, जो व्यवहारतः एक वैश्विक मानक स्थापित करता है, यद्यपि आलोचकों का तर्क है कि यह कुछ क्षेत्रों में नवाचार को बाधित कर सकता है।
- यह अधिनियम जून वर्ष 2026 तक पूर्णतः लागू हो जायेगा, जबकि 'अस्वीकार्य जोखिम' वाले तंत्रों (जैसे सामाजिक अंकन प्रणाली) पर प्रतिबंध इससे पूर्व ही प्रभावी हो जायेंगे।
- जनरेटिव AI मॉडल (जैसे GPT-4) जो प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न करते हैं, उन्हें मूल्यांकन और रिपोर्टिंग मानदंडों का पालन करना होगा, विशेष रूप से वे जो 10²⁵ से अधिक फ्लोटिंग-पॉइंट ऑपरेशन (FLOP) पर प्रशिक्षित हैं।
- वैश्विक शिखर सम्मेलन और सुरक्षा पहल: उच्च-स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन सरकारों और AI डेवलपर्स के बीच स्वैच्छिक सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि सीमांत जोखिमों का समाधान किया जा सके।
- हालाँकि ये पहल तेज़ी से जोखिम न्यूनीकरण को प्रोत्साहित करती हैं, लेकिन इनमें प्रायः ग्लोबल साउथ की भागीदारी और कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं का अभाव होता है।
- बैलेचले पार्क डिक्लेरेशन (UK, 2023) और AI सियोल समिट (2024) ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता सुरक्षा अनुसंधान पर सहयोग के लिये प्रमुख शक्तियों को एकत्रित किया।
- आगामी इंडिया-AI इम्पैक्ट समिट (2026 ग्लोबल साउथ में पहला बड़े पैमाने का AI शिखर सम्मेलन होगा, जिसका लक्ष्य अधिक समावेशी, संधारणीय और मानव-केंद्रित शासन एजेंडा तैयार करना है।
- बहुपक्षीय समूह-भू-राजनीतिक प्रभाव: G7 और BRICS जैसे मंच भू-राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभाव प्रदर्शित करने के लिये AI शासन का लाभ उठा रहे हैं तथा समानांतर शासन पथ तैयार कर रहे हैं।
- हालाँकि, इस बढ़ते विखंडन से AI नियमों के एक ‘विखंडन (Splinternet)’ का खतरा है, जो वैश्विक अंतर-संचालन और व्यापार को जटिल बनाता है।
- G7 हिरोशिमा AI प्रोसेस (2023) ने AI डेवलपर्स के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता शुरू की, जिसमें लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप विश्वसनीय AI पर ज़ोर दिया गया।
- इस बीच, वर्ष 2025 में ब्राज़ील की अध्यक्षता में, BRICS दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा दे रहा है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के वैश्विक शासन पर BRICS प्रतिनिधियों की घोषणा को प्रमुखता मिली है।
- उद्योग स्व-शासन और मानक: तकनीकी मानकों और नैतिक प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करने में निजी क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण (यद्यपि कभी-कभी स्वार्थ-प्रेरित) भूमिका निभाता है।
- हालाँकि यह उभरते जोखिमों के प्रबंधन में तेज़ी सुनिश्चित करता है, लेकिन यह नियामकीय नियंत्रण एवं सीमित सार्वजनिक जवाबदेही को लेकर चिंताएँ भी उत्पन्न करता है।
- प्रमुख तकनीकी कंपनियों ने फ्रंटियर एआई सेफ्टी कमिटमेंट्स जैसे तंत्र बनाए हैं, जो उत्तरदायी परीक्षण और तैनाती का वादा करते हैं।
- इसके अतिरिक्त, अमेरिकी कार्यकारी आदेश 14110 (2023) के अनुसार, शक्तिशाली AI मॉडल के डेवलपर्स को सरकार को सूचित करना आवश्यक है, जो उच्च जोखिम वाली AI प्रणालियों में अधिक निगरानी और जवाबदेही की ओर एक बदलाव का संकेत देता है।
AI शासन के लिये एकीकृत वैश्विक कार्यढाँचे में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- भू-राजनीतिक और वैचारिक विखंडन: प्रमुख वैश्विक शक्तियों के AI के लिये मौलिक रूप से भिन्न मूल्य और रणनीतिक उद्देश्य हैं, जो मूल नियामक सिद्धांतों पर आम सहमति को रोकता है।
- अमेरिका और चीन के बीच AI वर्चस्व की प्रतिस्पर्द्धा अन्य देशों को भी ऐसा करने के लिये विवश करती है, जिससे डेटा प्राइवेसी व सैन्य अनुप्रयोगों जैसे क्षेत्रों में नियामक विचलन होता है।
- यूरोपीय संघ का ‘AI अधिनियम’ मूल अधिकारों पर विशेष बल देता है और वैश्विक राजस्व के 7% तक के जुर्माने का प्रावधान करता है, जिससे एक सतर्क दृष्टांत स्थापित होता है।
- इसके विपरीत, अमेरिकी कार्यकारी आदेश 14110 राष्ट्रीय सुरक्षा और नवाचार को प्राथमिकता देता है, जिससे सीमा पार डेटा फ्लो और राज्य-स्तरीय अभिगम अधिदेशों जैसे प्रमुख मुद्दों पर एक वैचारिक विभाजन उत्पन्न होता है।
- प्रौद्योगिकीय प्रगति की गति बनाम विधि: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, विशेषतः जनरेटिव मॉडलों के क्षेत्र में नवोन्मेष की तीव्र और गुणोत्तर गति, विधायी प्रक्रिया की धीमी तथा विचारशील प्रकृति से निरंतर आगे बनी रहती है, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी एकीकृत शासन कार्यढाँचा शीघ्र ही अप्रासंगिक हो जाता है।
- जब तक अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ या व्यापक कानून अंतिम रूप लेते हैं, तब तक अंतर्निहित तकनीक नवीन, अप्रत्याशित जोखिम प्रस्तुत करने के लिये उन्नत हो चुकी होती है।
- मॉडल क्षमताएँ, जैसे कि GPT-5 या नई प्रणालियों को शक्ति प्रदान करने वाली क्षमताएँ, उल्लेखनीय रूप से बढ़ने का अनुमान है, जबकि यूरोपीय संघ के AI अधिनियम को पारित होने में तीन वर्ष से अधिक का समय लगा।
- सीमांत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मॉडलों को प्रशिक्षित करने की लागत प्रत्येक नौ माह में दोगुनी होती बताई गयी है, जो नियामक अनुकूलन की गति से कहीं अधिक है और इसलिये फुर्तीली, परिणाम-आधारित नियमावली की आवश्यकता उत्पन्न करती है।
- संसाधन और अवसंरचना असमानताएँ: एक गहरी आर्थिक और अवसंरचनात्मक अंतराल विद्यमान है, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का अधिकांश विकास, संगणन शक्ति तथा प्रतिभा 'ग्लोबल नॉर्थ' में केंद्रित है, जबकि 'ग्लोबल साउथ' को तैनात और अप्रयुक्त रूप से परीक्षित प्रणालियों के जोखिम वहन करने पड़ते हैं।
- यह असमानता ऐसे शासन कार्यढाँचों को जन्म देती है जो निम्न-आय वाले देशों की विकासात्मक प्राथमिकताओं या क्षमता संबंधी बाधाओं का समाधान नहीं करते हैं।
- IMF के विश्लेषणसे पता चलता है कि निम्न-आय वाले देशों की तुलना में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में AI का आर्थिक लाभ दोगुने से भी अधिक हो सकता है, जो बढ़ते अंतर को दर्शाता है।
- AI पूर्वाग्रह के सामाजिक-सांस्कृतिक आयाम: AI में ‘निष्पक्षता’, ‘पूर्वाग्रह’ या ‘व्याख्यात्मकता’ जैसी मूल नैतिक अवधारणाओं को परिभाषित करने पर कोई वैश्विक सहमति नहीं है, क्योंकि ये शब्द विविध सांस्कृतिक एवं कानूनी परंपराओं में गहराई से निहित हैं।
- इसके अलावा, सार्वभौमिक मानदंडों का अभाव सामाजिक चुनौतियों को भी जन्म देता है, जिसमें नियुक्ति में एल्गोरिदम संबंधी भेदभाव, स्वचालित निर्णय लेने में लैंगिक और जातिगत पूर्वाग्रह, उपेक्षित समुदायों को डिजिटल लाभों से वंचित करना तथा पक्षपाती डेटासेट के माध्यम से रूढ़िवादिता को दृढ़ करना शामिल है।
- उदाहरण के लिये, मुख्य रूप से अमेरिकी या यूरोपीय डेटा पर प्रशिक्षित एक AI प्रायः प्रतिनिधि डेटा की कमी के कारण अफ्रीकी या एशियाई संदर्भों में तैनात होने पर प्रदर्शन में गिरावट एवं पूर्वाग्रह प्रदर्शित करता है।
- डेटा सॉवरेनिटी और सीमा-पार प्रवाह संघर्ष: डेटा सॉवरेनिटी और निजता अधिकारों का दावा करने वाले राष्ट्रीय कानून सीमा-पार डेटा प्रवाह पर परस्पर विरोधी नियम लागू करते हैं, जो बड़े पैमाने पर AI मॉडल प्रशिक्षण की जीवनरेखा हैं।
- यह नियामक विखंडन AI कंपनियों को क्षेत्रीय अलगाव उत्पन्न करने के लिये विवश करता है, जिससे वैश्विक AI पारिस्थितिकी तंत्र एकीकृत होने के बजाय खंडित हो जाता है।
- यूरोपीय संघ का GDPR और ‘चिंताजनक देशों’ (जैसे चीन) को डेटा अंतरण को लक्षित करने वाले नए अमेरिकी नियम इस प्रवृत्ति के उदाहरण हैं।
- दक्षिण कोरिया के व्यक्तिगत सूचना संरक्षण आयोग ने पहले एक अंतर्राष्ट्रीय फिनटेक कंपनी को अनुचित तरीके से प्राप्त व्यक्तिगत डेटा से प्रशिक्षित AI मॉडल को नष्ट करने का आदेश दिया था, जो सीमा पार डेटा उपयोग के विधिक जोखिमों को दर्शाता है।
- तकनीकी अस्पष्टता और जवाबदेही की बाधाएँ: जटिल आधारभूत मॉडलों की ‘ब्लैक बॉक्स’ प्रकृति, स्वायत्त AI निर्णयों का प्रभावी ढंग से ऑडिट करने, व्याख्या करने या उत्तरदायित्व सौंपने की नियामकों की क्षमता में बाधा डालती है, जिससे पारंपरिक कानूनी तंत्र कमज़ोर होते हैं।
- पारदर्शिता और पता लगाने की क्षमता के लिये मानकीकृत तकनीकी आवश्यकताओं के बिना, किसी भी वैश्विक नियम का प्रवर्तन कठिन बना रहता है।
- नवीनतम लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) में खरबों पैरामीटर हो सकते हैं, जिससे उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया मानव निरीक्षकों के लिये लगभग अपारदर्शी हो जाती है।
- यह अस्पष्टता यूरोपीय संघ AI अधिनियम जैसे नियमों में पाए जाने वाले ‘व्याख्यात्मकता’ और ‘मानव निरीक्षण’ सिद्धांतों के अनुपालन को जटिल बनाती है, जिससे प्रमाण का भार डेवलपर से हट जाता है।
भारत अपनी कूटनीतिक क्षमताओं और वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग किस प्रकार कर सकता है?
- बहुपक्षीय शासन नेतृत्व: भारत को अपने घरेलू 'सभी के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता' दर्शन का उपयोग एक समावेशी, नैतिक और जनहितैषी ग्लोबल AI गवर्नेंस फ्रेमवर्क को बढ़ावा देने के लिये करना चाहिये, जिससे ग्लोबल साउथ से समर्थन प्राप्त हो सके।
- फ्राँस के साथ AI एक्शन समिट (2025) की भारत की सह-अध्यक्षता और इंडिया-AI प्रभाव शिखर सम्मेलन (2026) की मेज़बानी इसकी वैश्विक संयोजक भूमिका को उजागर करती है।
- ₹10,371.92 करोड़ (लगभग 1.25 बिलियन डॉलर) के परिव्यय वाला इंडिया-AI मिशन, स्पष्ट रूप से वैश्विक नेतृत्व और तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये है।
- इस दृष्टिकोण को और सुदृढ़ करते हुए, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (2023) एक अधिकार-आधारित डेटा शासन कार्यढाँचा स्थापित करता है, जबकि आगामी डिजिटल इंडिया अधिनियम का उद्देश्य तकनीकी विनियमन का आधुनिकीकरण करना तथा जवाबदेह, नवाचार-अनुकूल कृत्रिम बुद्धिमत्ता परिनियोजन सुनिश्चित करना है।
- फ्राँस के साथ AI एक्शन समिट (2025) की भारत की सह-अध्यक्षता और इंडिया-AI प्रभाव शिखर सम्मेलन (2026) की मेज़बानी इसकी वैश्विक संयोजक भूमिका को उजागर करती है।
- एक वैश्विक टेम्पलेट के रूप में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI): आधार, UPI और डिजिलॉकर जैसे विश्व-अग्रणी DPI के अंतर्गत AI का लाभ उठाकर, भारत विकासशील देशों के लिये एक कम लागत वाला, उच्च प्रभाव वाला मॉडल तैयार कर सकता है, जिससे उसकी विकासात्मक नेतृत्वकारी भूमिका और मज़बूत होगी।
- यह AI-एकीकृत DPI, स्वामित्व वाले पश्चिमी मॉडलों के विपरीत, प्रौद्योगिकी के प्रति एक मापनीय, समावेशी और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है।
- AI-संचालित, बहुभाषी BHASHINI प्लेटफॉर्म इसका एक उदाहरण है, जो डिजिटल सेवाओं और कूटनीति में भाषा संबंधी बाधाओं को तोड़ रहा है।
- हनुमान का एवरेस्ट 1.0, SML द्वारा विकसित एक बहुभाषी AI सिस्टम, एवरेस्ट 1.0 35 भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करता है, जिसे 90 तक विस्तारित करने की योजना है।
- विश्व की पहली सरकारी-वित्त पोषित मल्टीमॉडल LLM पहल, BharatGen, वर्ष 2024 में शुरू की गई थी।
- इसका उद्देश्य भाषा, वाक् और कंप्यूटर विज़न में आधारभूत मॉडलों के माध्यम से सार्वजनिक सेवा वितरण एवं नागरिक जुड़ाव को बढ़ाना है।
- उन्नत राजनयिक वार्ता और कांसुलर सेवाएँ: AI श्रम-गहन कार्यों को स्वचालित करके और डेटा-समर्थित वार्ता रणनीतियाँ प्रदान करके भारत की राजनयिक भागीदारी की दक्षता एवं प्रभावशीलता में सुधार कर सकता है।
- यह मानव राजनयिकों को उच्च-दाँव वाले, सूक्ष्म राजनीतिक संबंध-निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने और सीमित कर्मियों के प्रभाव को अधिकतम करने के लिये स्वतंत्र करता है।
- AI-संचालित प्रणालियाँ ऐतिहासिक राजनयिक अभिलेखों में पैटर्न का विश्लेषण कर सकती हैं और संभावित संकटों या सफल सहयोग बिंदुओं का पूर्वानुमान लगा सकती हैं।
- इसके अलावा, पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम (PSP) में AI का उपयोग नागरिक सेवाओं को सुव्यवस्थित करता है, जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की कांसुलर एक्सेस की धारणा और प्रभावकारिता में सुधार होता है।
- आर्थिक कूटनीति और आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता: जटिल वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं, व्यापार समझौतों और निवेश रुझानों का विश्लेषण करने के लिये AI का उपयोग करने से भारतीय आर्थिक कूटनीति अत्यधिक लक्षित एवं समुत्थानशील बन सकेगी।
- यह सुनिश्चित करता है कि नीतिगत निर्णय आर्थिक लाभ को अधिकतम करें और भारत को वैश्विक आर्थिक संरचना में एक विश्वसनीय एवं सूचित भागीदार के रूप में स्थापित करें।
- सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम और AI उत्कृष्टता केंद्रों (CoE) पर भारत का ध्यान महत्त्वपूर्ण AI आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक का MuleHunter.AI टूल, जो धोखाधड़ी वाले खातों का पता लगाने के लिये डिज़ाइन किया गया है, वित्तीय सुरक्षा को बढ़ाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग और निवेश में एक प्रमुख विश्वास कारक है।
- साइबर समुत्थानशीलता और तकनीकी-सुरक्षा साझेदारी: साइबर सुरक्षा और रक्षा के लिये अत्याधुनिक AI विकसित करके, भारत अपनी घरेलू सुरक्षा को मज़बूत करता है, साथ ही सहयोगी देशों, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, के लिये प्रौद्योगिकी सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार बनता है।
- यह भारतीय AI विशेषज्ञता पर रणनीतिक निर्भरता बनाता है, जिससे एक ज़िम्मेदार सुरक्षा प्रदाता के रूप में इसकी छवि मज़बूत होती है।
- राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर भौतिक प्रणालियों (NM-ICPS) मिशन के माध्यम से साइबर-भौतिक प्रणालियों पर भारत का ध्यान दोहरे उपयोग वाली तकनीकों पर केंद्रित है।
- रणनीतिक खुफिया और नीतिगत दूरदर्शिता: AI भू-राजनीतिक बदलावों को रोकने और महत्त्वपूर्ण अवसरों की पहचान करने के लिये विशाल, विविध डेटा का तेज़ी से प्रसंस्करण करके विदेश मंत्रालय (MEA) की रणनीतिक खुफिया जानकारी को बदल सकता है।
- यह जटिल, बहुध्रुवीय कूटनीति में एक महत्त्वपूर्ण दूरदर्शिता प्रदान करता है, जिससे भारत घटनाओं पर केवल प्रतिक्रिया देने के बजाय सक्रिय रूप से कथानक को आकार दे सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारतीय सेना ने एकीकृत निगरानी चित्र बनाने के लिये AI-संचालित त्रिनेत्र प्रणाली को युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली (संजय) के साथ एकीकृत किया है।
- ज़मीनी और हवाई सेंसर डेटा का यह संलयन कमांडरों की स्थितिजन्य जागरूकता को बढ़ाता है तथा पाकिस्तान के साथ संचालन के दौरान तेज़ी से निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
- स्टैनफोर्ड AI इंडेक्स 2024 के अनुसार, भारत 2.8 के स्कोर के साथ AI कौशल प्रवेश में विश्व स्तर पर पहले स्थान पर है, जो अमेरिका (2.2) व जर्मनी (1.9) से आगे है, जिसका उपयोग रणनीतिक खुफिया जानकारी को और बढ़ाने के लिये किया जा सकता है।
एक ज़िम्मेदार और समावेशी ग्लोबल AI गवर्नेंस फ्रेमवर्क की दिशा में प्रगति के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- एक बहुकेंद्रित 'गवर्नेंस कॉमन्स' की स्थापना: मुख्य तर्क यह है कि भू-राजनीतिक प्रतिरोध के कारण एकल, अखंड वैश्विक नियामक का प्रयास अव्यवहारिक है; इसलिये, इसका समाधान एक बहुकेंद्रित गवर्नेंस कॉमन्स के निर्माण में निहित है।
- इसमें अंतर-संचालनीय, विशिष्ट संस्थानों का निर्माण शामिल है जो सुरक्षा या मानकों जैसे संकीर्ण, उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता का त्याग किये बिना वैश्विक सहयोग संभव हो सके।
- यह विकेंद्रीकृत, 'नेटवर्क' मॉडल मौजूदा निकायों (UN, G7, OECD आदि) के बीच विविध नियामक दृष्टिकोणों का सम्मान करते हुए प्रणालीगत जोखिमों का समाधान करने के लिये त्वरित समन्वय की सुविधा प्रदान करता है।
- जोखिम-अनुकूली नियामक सैंडबॉक्स (ARRS): एक महत्त्वपूर्ण उपाय जोखिम-अनुकूली नियामक सैंडबॉक्स (ARRS) की स्थापना है, जो साधारण नवाचार सैंडबॉक्स से अलग है।
- शासन एक जीवंत, पुनरावृत्तीय प्रक्रिया होनी चाहिये जो वास्तविक विश्व के सिस्टम प्रदर्शन और संभावित नुकसान वृद्धि के आधार पर नियमों को लगातार पुनर्गणित करती रहे।
- ये सैंडबॉक्स उच्च-जोखिम वाले मॉडलों को नियंत्रित, सिम्युलेटेड वातावरण में परीक्षण करने की अनुमति देते हैं, जहाँ नियम प्रत्यक्ष सुरक्षा मानकों और अनुपालन अनुपालन के आधार पर स्वचालित रूप से सख्त या शिथिल होते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि विनियमन तकनीकी गति के साथ तालमेल बनाए रखे।
- ग्लोबल साउथ-नेतृत्व वाले AI क्षमता केंद्र: समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये, ग्लोबल साउथ-नेतृत्व वाले AI क्षमता केंद्र उपाय को अपनाया जाना चाहिये।
- केवल चर्चाओं में शामिल करना पर्याप्त नहीं है; वास्तविक समावेशन के लिये संप्रभु तकनीकी और नियामक क्षमता की आवश्यकता होती है।
- विकसित देशों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा वित्तीय रूप से समर्थित ये केंद्र, ओपन-सोर्स, उपनिवेश-मुक्त फाउंडेशन मॉडल विकसित करने तथा विकासशील देशों के नियामकों को डेटा शासन, मॉडल ऑडिटिंग एवं स्थानीयकृत जोखिम मूल्यांकन पर प्रशिक्षण देने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
- अनिवार्य डिजिटल प्रोवेंस और लेबलिंग: एक प्रमुख व्यावहारिक उपाय सभी AI-जनित सामग्री और उच्च-जोखिम वाले मॉडलों के लिये डिजिटल प्रोवेंस एवं लेबलिंग मानकों को अनिवार्य करना है।
- विश्वास का संचालन ट्रेसेबिलिटी के माध्यम से होता है; उपयोगकर्त्ताओं और नियामकों को AI आउटपुट की उत्पत्ति एवं विकास इतिहास को सत्यापित करने में सक्षम होना चाहिये।
- इसमें एक वैश्विक, मानकीकृत ‘AI पासपोर्ट’ या मेटाडेटा प्रणाली बनाना शामिल है ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि सामग्री कृत्रिम (डीपफेक) है या नहीं तथा मॉडल के प्रशिक्षण डेटा और पूर्वाग्रह ऑडिट का दस्तावेज़ीकरण किया जा सके, जिससे जवाबदेही एक तकनीकी आवश्यकता बन जाए।
- 'तकनीकी-कानूनी' अनुपालन एकीकरण: देशों को 'तकनीकी-कानूनी' अनुपालन एकीकरण लागू करना चाहिये, जो शासन को सीधे AI विकास जीवनचक्र (MLOps) में समाहित करता है।
- इसमें मानकीकृत पॉलिसी-एज़-कोड लाइब्रेरी और स्वचालित अनुपालन उपकरण बनाना तथा साझा करना शामिल है जो नैतिक मानदंडों, पूर्वाग्रह एवं कानूनी आवश्यकताओं (जैसे डेटा प्राइवेसी) की जाँच करते हैं, मॉडल विकास के दौरान गैर-अनुपालन को स्वचालित रूप से चिह्नित करते हैं, जिससे ज़िम्मेदार AI डिफॉल्ट सेटिंग बन जाता है।
- मानकीकृत मॉडल कार्ड और ऑडिट API (ऐप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस): एक महत्त्वपूर्ण तकनीकी उपाय सभी आधारभूत मॉडलों के लिये मानकीकृत मॉडल कार्ड एवं ऑडिट API को वैश्विक रूप से अनिवार्य करना है।
- तकनीकी अनुपालन को मशीन द्वारा पढ़े जाने योग्य तथा सार्वभौमिक रूप से तुलनीय बनाया जाना चाहिये, ताकि यह अस्पष्ट, दस्तावेज़-आधारित प्रकटीकरणों से आगे बढ़ सके।
- ये मानकीकृत API स्वतंत्र तृतीय-पक्ष लेखा परीक्षकों एवं विश्वभर के नियामक संस्थानों को प्रोग्रामेटिक रूप से प्रमुख प्रशासनिक मानकों— जैसे: पूर्वाग्रह मापन, सुरक्षा नियंत्रण तंत्र और्व प्रोवेनांस डेटा तक पहुँचने, उनका परीक्षण करने तथा सत्यापन करने में सक्षम बनाएँगे, जिससे सत्यापनीय पारदर्शिता की संस्कृति को प्रोत्साहन मिलेगा।
निष्कर्ष:
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) शासन तीव्रता से वैश्विक शक्ति और नैतिक सिद्धांतों के नये क्षेत्र के रूप में उभर रहा है। जब राष्ट्र इसकी नीतियों को निर्धारित करने की होड़ में हैं, भारत को एक समावेशी, मानव-केंद्रित और न्यायसंगत ढाँचे का नेतृत्व करना चाहिये जो 'ग्लोबल नॉर्थ–साउथ' के अंतर को समाप्त कर सके। नवाचार को नैतिकता से तथा सार्वभौमिकता को सहयोग से जोड़कर भारत एक साझा कृत्रिम बुद्धिमत्ता भविष्य की रूपरेखा तय करने में योगदान दे सकता है। कार्यवाही का क्षण यही है, इससे पहले कि आनेवाले कल की विश्व की संहिता कुछ गिने-चुने देशों द्वारा लिखी जाये।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता वैश्विक शक्ति का एक नया क्षेत्र बनती जा रही है, इसके शासन कार्यढाँचे को आकार देना उतना ही नैतिकता से संबंधित है जितना कि भू-राजनीति से।” एक समावेशी एवं न्यायसंगत वैश्विक AI व्यवस्था सुनिश्चित करने में भारत की भूमिका और रणनीति पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
- औद्योगिक इकाइयों में विद्युत् की खपत कम करना
- सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना
- रोगों का निदान
- टेक्स्ट से स्पीच (Text- to- Speech) में परिवर्तन
- विद्युत् ऊर्जा का बेतार संचरण
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-
(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: (b)
प्रश्न 2. ‘वान्नाक्राई, पेट्या और इंटर्नलब्लू’ पद जो हाल ही में समाचारों में उल्लिखित थे, निम्नलिखित में से किसके साथ संबंधित हैं? (2018)
(a) एक्सोप्लैनेट्स
(b) प्रच्छन्न मुद्रा (क्रिप्टोकरेंसी)
(c) साइबर आक्रमण
(d) लघु उपग्रह
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न 1. भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं ? (2021)
प्रश्न 2. “चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है।” विवेचन कीजिये।
(2020)