अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अफ्रीका साझेदारी का विकास
- 16 May 2025
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यह एडिटोरियल 15/05/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Beyond the aid recipient: India's strategic shift in its Africa engagement” पर आधारित है। यह लेख विकासशील भारत-अफ्रीका साझेदारी को दर्शाता है, जो अफ्रीका के विकास लक्ष्यों तथा वर्ष 2030 तक 200 बिलियन डॉलर के व्यापार लक्ष्य के साथ रणनीतिक, निवेश-आधारित सहयोग की ओर इसके बदलाव को उजागर करता है।
प्रिलिम्स के लिये:अफ्रीका, महत्त्वपूर्ण खनिज, अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र, अफ्रीकी संघ, भारत की 2023 जी-20 अध्यक्षता, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, हिंद महासागर क्षेत्र, नेकलेस ऑफ डायमंड, रीवा अल्ट्रा मेगा सौर परियोजना । मेन्स के लिये:भारत-अफ्रीका संबंधों का विकास, भारत की विदेश नीति में अफ्रीका का रणनीतिक महत्त्व, प्रभावी भारत-अफ्रीका सहयोग में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। |
अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी ऐतिहासिक संबंधों से आगे बढ़कर व्यापार, निवेश और विकास सहयोग को शामिल करते हुए एक रणनीतिक, बहुआयामी संबंध में विकसित हुई है। द्विपक्षीय व्यापार प्रत्येक वर्ष 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचने और 80 बिलियन डॉलर के संचयी निवेश के साथ, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 200 बिलियन डॉलर का महत्वाकांक्षी व्यापार लक्ष्य हासिल करना है। गहन सहयोग के लिये प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण, कृषि, स्वास्थ्य सेवा, नवीकरणीय ऊर्जा और सुरक्षा सहायता शामिल हैं। जैसे-जैसे अफ्रीका अपनी पारंपरिक सहायता-प्राप्तकर्त्ता स्थिति से आगे बढ़ता है, भारत को निवेश-आधारित व्यापार की एक दीर्घकालिक रणनीति विकसित करनी चाहिये, जो स्व-निर्देशित विकास के लिये अफ्रीकी आकांक्षाओं के साथ संरेखित हो।
समय के साथ भारत-अफ्रीका संबंध कैसे विकसित हुए हैं?
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार: भारत-अफ्रीका संबंध प्राचीन काल से चले आ रहे हैं, जब भारतीय व्यापारी हिंद महासागर के रास्ते अफ्रीकी राज्यों के साथ मसालों, वस्त्रों और कीमती पत्थरों का व्यापार करते थे।
- केन्या, दक्षिण अफ्रीका और मॉरीशस जैसे देशों में भारतीय प्रवासियों की उपस्थिति ने सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को मज़बूत किया है।
- दोनों क्षेत्रों ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अनुभवों को भी साझा किया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान आपसी सहयोग को बढ़ावा मिला तथा महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने नेल्सन मंडेला जैसे अफ्रीकी स्वतंत्रता सेनानियों को प्रभावित किया।
- स्वतंत्रता के बाद की अवधि (1947-1990): स्वतंत्रता के बाद, भारत ने अफ्रीकी मुक्ति संघर्षों का दृढ़ता से समर्थन किया, रंगभेद और उपनिवेशवाद का विरोध किया, जिसका उदाहरण संयुक्त राष्ट्र में भारत की मुख्य भूमिका है।
- भारत और कई अफ्रीकी देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्य थे, जो शीत युद्ध के दबावों से मुक्त होकर संप्रभुता और विकास को बढ़ावा दे रहे थे।
- भारत ने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के अंतर्गत अफ्रीकी छात्रों को तकनीकी सहायता और छात्रवृत्ति भी प्रदान की, जिससे दीर्घकालिक सहयोग की आधारशिला तैयार हुई।
- शीत युद्ध के बाद से 2000 के दशक तक: शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही भारत-अफ्रीका संबंध वैचारिक एकजुटता से व्यावहारिक सहयोग की ओर स्थानांतरित हो गए।
- अफ्रीका के साथ भारत का विकास सहयोग उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है, विशेष रूप से अवसंरचना परियोजनाओं के लिये रियायती ऋण के माध्यम से।
- इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण पैन-अफ्रीकी ई-नेटवर्क परियोजना है, जिसकी परिकल्पना भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने की थी। इस परियोजना के तहत अफ्रीकी देशों में सैटेलाइट-सक्षम टेलीमेडिसिन, टेली-एजुकेशन और डिजिटल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के लिए एक फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क स्थापित किया गया।
- हालिया घटनाक्रम (2008-वर्तमान): वर्ष 2008 में पहली बार आयोजित इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट (IAFS) ने उच्च स्तरीय राजनीतिक संवाद को संस्थागत रूप प्रदान किया और व्यापार, सुरक्षा एवं विकास में साझेदारी को व्यापक बनाया।
- भारत ने शांतिरक्षा, आतंकवाद-रोधी सहयोग, और क्षमतावर्द्धन क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाया है तथा ITEC व अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रतिवर्ष हज़ारों अफ्रीकी पेशेवरों को प्रशिक्षण देता है।
- भारत ने अपनी वर्ष 2023 की G20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ को G20 में शामिल करने में अग्रणी भूमिका निभाई।
भारत की विदेश नीति में अफ्रीका का सामरिक महत्त्व क्या है?
- सामरिक और समुद्री सुरक्षा अनिवार्य: हिंद महासागर क्षेत्र में अफ्रीका की भू-राजनीतिक स्थिति भारत के समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा और नौसैनिक प्रभाव को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भारत द्वारा वर्ष 2024 में मॉरीशस में अपना पहला विदेशी नौसैनिक अड्डा स्थापित करना, जो कि उसकी "नेकलेस ऑफ डायमंड" रणनीति का हिस्सा है, समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने तथा समुद्री डकैती एवं आतंकवाद जैसे उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिये रणनीतिक पहुँच का उदाहरण है।
- प्रमुख अफ्रीकी राज्यों में भारतीय रक्षा अताशे की तैनाती और वर्ष 2023 में भारत-अफ्रीका सेना प्रमुख सम्मेलन का उद्घाटन सैन्य सहयोग एवं क्षेत्रीय स्थिरता को और मज़बूत करेगा।
- व्यापार और निवेश के माध्यम से आर्थिक विकास उत्प्रेरक: अफ्रीका के विशाल प्राकृतिक संसाधन और विस्तारित बाज़ार भारत को अपनी विकास गति को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण आगत और मांग प्रदान करते हैं।
- भारत-अफ्रीका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023-24 में बढ़कर 83.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2011-12 से 21% की वृद्धि को दर्शाता है, जबकि भारतीय निवेश 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जो वर्ष 2030 तक दोगुना हो जाएगा।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों और ऊर्जा संसाधनों को सुरक्षित करना: कोबाल्ट, मैंगनीज और तांबे जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों में अफ्रीका का प्रभुत्व भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन और विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं के लिये अपरिहार्य है।
- कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य अकेले ही विश्व की 70% से अधिक खनन कोबाल्ट आपूर्ति को नियंत्रित करता है, जो इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी और नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इसके साथ ही, नाइज़ीरिया और अंगोला जैसे अफ्रीकी तेल उत्पादक भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को तेजी से पूरा कर रहे हैं तथा वैश्विक आपूर्ति अस्थिरता के बीच भारत के कच्चे तेल आयात में अफ्रीकी देशों की हिस्सेदारी बढ़ रही है।
- विकास साझेदारी और क्षमता निर्माण: 43 अफ्रीकी देशों में 206 परियोजनाओं के लिये भारत की 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की ऋण सहायता से परे एक विकास साझेदार के रूप में इसकी भूमिका को रेखांकित करती है।
- भारत के ITEC कार्यक्रम, IIT मद्रास के जंजीबार परिसर जैसे शैक्षणिक संस्थानों और व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमता निर्माण अफ्रीका के एजेंडा 2063 लक्ष्यों के अनुरूप है।
- ये पहल अफ्रीका के औद्योगिकीकरण और प्रौद्योगिकीय सशाक्तिकरण के लिये महत्त्वपूर्ण मानव पूंजी विकास को बढ़ावा देती हैं तथा पारस्परिक विकास पर आधारित सुदृढ़ साझेदारी को बढ़ावा देती हैं।
- कूटनीतिक लाभ और वैश्विक शासन: वर्ष 2023 में अफ्रीकी संघ की G-20 की स्थायी सदस्यता के लिये भारत का समर्थन एक कूटनीतिक मील का पत्थर साबित हुआ, जिससे वैश्विक आर्थिक नीतियों को आकार देने में अफ्रीका की भूमिका बढ़ेगी।
- कोविड-19 टीकों और कृषि संबंधी ढाँचे के लिये बौद्धिक संपदा छूट पर विश्व व्यापार संगठन में भारत और अफ्रीका की संयुक्त पहल, न्यायसंगत वैश्विक शासन के लिये उनके समन्वित प्रयास को दर्शाती है।
- यह मज़बूत साझेदारी वैश्विक दक्षिण में भारत के नेतृत्व को आगे बढ़ाएगी, जबकि विश्व मंच पर अफ्रीका की आवाज को मज़बूत करेगी।
- प्रौद्योगिकी सहयोग और नवाचार साझेदारी: अफ्रीका का बढ़ता डिजिटल परिवर्तन और प्रौद्योगिकी अपनाना भारत के लिये नवाचार-संचालित विकास क्षेत्रों में सहयोग करने के महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है।
- भारतीय IT कंपनियाँ और स्टार्टअप स्मार्ट सिटी परियोजनाओं, फिनटेक समाधानों और डिजिटल बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिये अफ्रीकी सरकारों के साथ तेजी से साझेदारी कर रही हैं, जिससे सतत् शहरीकरण और समावेशी आर्थिक विकास में योगदान मिल रहा है।
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में अपने नेतृत्व के माध्यम से अफ्रीका में सौर परियोजनाओं के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है- जिससे उसके ऊर्जा सुरक्षा उद्देश्यों को बढ़ावा, साथ ही पारस्परिक रूप से लाभकारी ढाँचे में अफ्रीका के सतत् विद्युतीकरण एजेंडे में योगदान मिलेगा।
प्रभावी भारत-अफ्रीका सहयोग में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- रणनीतिक और कूटनीतिक सहभागिता में अंतराल: भारत की विलंबित राजनीतिक सहभागिता, जिसका उदाहरण पिछले भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन के बाद से नौ वर्षों का अंतराल है, रणनीतिक सहभागिता को दर्शाता है, जो महाद्वीप में नेतृत्व करने की इसकी क्षमता को कमज़ोर करता है।
- जहाँ चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और रूस जैसे प्रतिस्पर्द्धी शक्तियाँ कई शिखर सम्मेलनों के माध्यम से सक्रिय संवाद बनाए रखती हैं, वहीं भारत की अनुपस्थिति इस क्षेत्र को प्राथमिकता न देने का संकेत देती है तथा इसकी नीति-निर्धारण भूमिका को कमज़ोर करती है।
- यह कूटनीतिक शून्यता, बदलती वैश्विक स्थितियों के बीच अफ्रीका के भविष्य के नीतिगत ढाँचे को आकार देने में भारत के प्रभाव को बाधित करती है।
- जटिल सुरक्षा परिदृश्य और कमजोर शासन व्यवस्था: अफ्रीका के बढ़ते सुरक्षा संकट - जो 2020-2023 तक 9 तख्तापलट और लगातार सशस्त्र संघर्षों द्वारा उजागर हुए हैं - एक अस्थिर वातावरण बनाते हैं जो भारतीय निवेश को रोकता है तथा रक्षा सहयोग को जटिल बनाता है।
- कमजोर शासन ढाँचे और बढ़ती उग्रवाद की प्रवृत्ति शांति स्थापना एवं आतंकवाद-रोधी प्रयासों में भारत की सार्थक भागीदारी को चुनौती देती है।
- जब तक इन नाजुक राज्य स्थितियों का समाधान नहीं किया जाता, भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा साझेदारियाँ कमजोर और अस्थायी बनी रहेंगी।
- संरचनात्मक आर्थिक और अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: खंडित परिवहन और रसद अवसंरचना, जो अंतर-महाद्वीपीय व्यापार के बजाय संसाधन निर्यात के लिये डिज़ाइन किया गया एक औपनिवेशिक प्रभाव है, जो भारत-अफ्रीका व्यापार महत्वाकांक्षाओं को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करता है।
- ये अवसंरचनात्मक कमियाँ लेन-देन की लागत को बढ़ाती हैं, क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं को अवरुद्ध करती हैं तथा भारतीय कंपनियों की बाज़ार पहुँच को बाधित करती हैं।
- एकीकृत गलियारों की कमी से भारतीय विनिर्माण और निवेश विविधीकरण के लिये अफ्रीका का आकर्षण कम हो जाता है।
- वित्तीय बाधाएँ और वैश्विक प्रणालीगत पूर्वाग्रह: उप-सहारा अफ्रीका का बढ़ता ऋण संकट, जिसमें एक दशक से भी कम समय में ऋण-जीडीपी अनुपात 30% से दोगुना होकर 60% हो गया है, वैश्विक वित्तीय संरचना में प्रणालीगत पूर्वाग्रहों को दर्शाता है जो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को असमान रूप से प्रभावित करते हैं।
- भारत की ऋण सहायता (Lines of Credit), यद्यपि महत्वपूर्ण है, इन संरचनात्मक वित्तीय चुनौतियों को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
- यह ऋण संकट और वित्तीय अस्थिरता अफ्रीकी देशों की दीर्घकालिक विकास परियोजनाओं और रणनीतिक साझेदारियों में भागीदारी की क्षमता को सीमित करती है, जिससे भारत-अफ्रीका सहयोग बाधित होता है।
- बहुध्रुवीय प्रतिस्पर्धा से भारत के प्रभाव में कमी: अफ्रीका में चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और रूस के बीच तीव्र होती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा भारत की विशिष्ट और प्रभावशाली भूमिका स्थापित करने की क्षमता को चुनौती देती है।
- चीन की विशाल बेल्ट एंड रोड परियोजनाएं (जैसे जिबूती में पहला विदेशी सैन्य अड्डा) और अफ्रीका-केंद्रित वित्तपोषण भारत की सीमित भागीदारी की तुलना में कहीं अधिक व्यापक हैं, जबकि पश्चिमी शक्तियाँ सहायता एवं सुरक्षा संबंधों का लाभ उठा रही हैं।
- भारत की तुलनात्मक रूप से सतर्क कूटनीति और धीमी आर्थिक उपस्थिति, रणनीतिक क्षेत्रों में हाशिये पर जाने का खतरा उत्पन्न करती है।
- स्वास्थ्य अवसंरचना की कमी और विनियामक चुनौतियाँ: अफ्रीका की स्वास्थ्य प्रणाली अब भी संसाधनों की कमी से जूझ रही है। सीमित स्थानीय विनिर्माण क्षमता और खंडित नियामकीय ढाँचे भारत-अफ्रीका चिकित्सा सहयोग की स्थायित्वशीलता को बाधित करते हैं।
- हालाँकि भारत ने 32 अफ्रीकी देशों में टीके और दवाइयों की आपूर्ति की हैं, 'फिल एंड फिनिश' वैक्सीन उत्पादन और किफायती दवा वितरण को बढ़ाने में जटिल रसद और नीतिगत बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- एक मज़बूत बहु-हितधारक रणनीतिक वार्ता को संस्थागत बनाना: भारत को निरंतर, अनुकूल सहभागिता के लिये सरकारों, निजी क्षेत्रों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज को शामिल करते हुए एक वार्षिक भारत-अफ्रीका रणनीतिक साझेदारी मंच की स्थापना करनी चाहिये।
- इससे संयुक्त रूप से एजेंडा का निर्धारण, वास्तविक समय नीति समन्वय तथा खाद्य सुरक्षा और जलवायु जैसी चुनौतियों पर त्वरित प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी।
- उदाहरण के लिये, व्यापार सुविधा पर समर्पित कार्य समूह बनाने से प्रगति की निगरानी और बेहतर नीति संरेखण सुनिश्चित हो सकता है।
- इससे संयुक्त रूप से एजेंडा का निर्धारण, वास्तविक समय नीति समन्वय तथा खाद्य सुरक्षा और जलवायु जैसी चुनौतियों पर त्वरित प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और नवाचार-संचालित क्षमता निर्माण में अग्रणी भूमिका: भारत प्रमुख अफ्रीकी देशों में क्षेत्रीय नवाचार केंद्र और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित कर सकता है, जो कृषि-तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल शासन और स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- ज़ांज़ीबार (2023) में IIT मद्रास परिसर की सफलता शैक्षिक और तकनीकी इनक्यूबेशन केंद्रों के विस्तार के लिये एक स्केलेबल मॉडल प्रदान करती है।
- ड्रोन-सक्षम परिशुद्धता कृषि या टेलीमेडिसिन पर सहयोग करने से स्थानीय समुदायों को सतत्, घरेलू समाधानों के साथ सशक्त बनाया जा सकता है।
- PPP मॉडल के माध्यम से एकीकृत बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायता करना: भारत को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से क्षेत्रीय परिवहन गलियारों, ऊर्जा ग्रिडों और डिजिटल नेटवर्क का सह-वित्तपोषण करना चाहिये, जिससे अंतर-अफ्रीकी व्यापार और क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं को बढ़ावा मिले।
- दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे जैसी परियोजनाओं में भारत की विशेषज्ञता को अफ्रीका के संदर्भ में अनुकूलित किया जा सकता है, जिससे निर्बाध संपर्क को बढ़ावा मिलेगा और AfCFTA लक्ष्यों के साथ संरेखित आर्थिक अनुपूरकताओं को बढ़ावा मिलेगा।
- सह-वित्तपोषण और मिश्रित वित्त के माध्यम से वित्तीय साधनों का नवप्रवर्तन: भारत अफ्रीकी विकास बैंक के साथ मिलकर मिश्रित वित्तीय वाहन, प्रवासी बॉन्ड और ग्रीन बॉन्ड जैसे उपकरण शुरू कर सकता है, जिससे बुनियादी ढाँचे और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये निजी पूंजी जुटाई जा सके।
- ये वित्तीय नवाचार जोखिम को विविध बनाएंगे और राजकोषीय स्थान को बढ़ाएंगे, ठीक उसी तरह जैसे भारत-अफ्रीका विकास कोष जैसे प्रयासों ने सतत परियोजनाओं का समर्थन किया।
- अफ्रीकी नेतृत्व वाले ढाँचों के भीतर सुरक्षा साझेदारी को गहरा करना: भारत को अफ्रीकी संघ की सुरक्षा संरचनाओं में अपनी भूमिका को सुदृढ़ करना चाहिये, जैसे कि नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र में विशेष प्रशिक्षण प्रदान करना, खुफिया जानकारी साझा करना तथा साइबर सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना।
- क्षेत्रीय सुरक्षा केंद्र और संयुक्त टास्क फोर्स की स्थापना से आतंकवाद से लड़ने और हिंद महासागर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों की रक्षा की क्षमताएँ मज़बूत होंगी।
- युवा सशक्तीकरण और उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र को संस्थागत बनाना: अफ्रीका के आर्थिक क्षेत्रों के साथ संरेखित महाद्वीप-व्यापी छात्रवृत्ति, व्यावसायिक प्रशिक्षण और नवाचार इनक्यूबेटर शुरू करने से युवा जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन होगा।
- भारतीय स्टार्ट-अप और नवाचार केंद्रों के साथ सहयोग से उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार के अवसर सृजित होंगे और कूटनीतिक संपर्क से परे लोगों के बीच आपसी संबंध प्रगाढ़ होंगे।
- अफ्रीका के हरित परिवर्तन और जलवायु अनुकूलन के साथ संयुक्त पहल को जोड़ना: भारत, भारत की रीवा अल्ट्रा मेगा सौर परियोजना की तर्ज पर बड़े पैमाने पर सौर पार्कों का सह-विकास कर सकता है और अनुकूल बनाने के लिये जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा दे सकता है।
- भारत की जल-कुशल सिंचाई तकनीकों और सतत् शहरी परिवहन समाधानों को साझा करके अफ्रीका की हरित वृद्धि को तीव्र किया जा सकता है, जो अफ्रीकी संघ की एजेंडा 2063 के लक्ष्यों के अनुरूप होगा।
- अखिल अफ्रीकी डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना कंसोर्टियम की स्थापना: इंडिया स्टैक की सफलता के आधार पर, भारत अफ्रीकी देशों के लिये अनुकूलित अंतर-संचालनीय डिजिटल पहचान, ई-गवर्नेंस और फिनटेक प्लेटफॉर्म बनाने हेतु एक कंसोर्टियम का नेतृत्व कर सकता है।
- केन्या या रवांडा में डिजिटल भूमि रिकॉर्ड और भुगतान प्रणालियों की पायलट परियोजनाएँ शासन की पारदर्शिता और वित्तीय समावेशन में सुधार करेंगी, जिससे आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- परिणाम-आधारित विकास सहयोग की ओर संक्रमण: भारत को अफ्रीकी साझेदारों के साथ मज़बूत निगरानी और मूल्यांकन रूपरेखाएँ लागू करनी चाहिये, ताकि जवाबदेही और प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये डेटा-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा सके।
- स्थानीय प्राथमिकताओं के अनुरूप सफलता के मापदंडों का सह-विकास करने से पारस्परिक स्वामित्व मज़बूत होगा तथा सहायता को मापने योग्य सामाजिक-आर्थिक विकास में परिवर्तित किया जा सकेगा ।
- प्रवासी नेतृत्व वाले बिजनेस इनक्यूबेटरों और सलाहकार मंचों को समर्थन प्रदान करने से ज़मीनी स्तर पर कूटनीति तथा अफ्रीका भर में भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष:
भारत-अफ्रीका संबंध एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर हैं, जो आपसी सम्मान और साझा आकांक्षाओं पर आधारित रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। नवाचार, समावेशी विकास और मजबूत बहुपक्षीय जुड़ाव को अपनाकर, भारत अफ्रीका में एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ कर सकता है। परिणाम-संचालित पहलों के माध्यम से सहयोग को मज़बूत करने से न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि सतत्, अनुकूल और न्यायसंगत प्रगति को भी बढ़ावा मिलेगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत-अफ्रीका संबंधों के विकास का परीक्षण कीजिये तथा भारत की विदेश नीति में उनके रणनीतिक महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं ? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है’। विस्तार से समझाइये। (2019) |