भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के ऊर्जा भविष्य में इथेनॉल की भूमिका
- 17 May 2025
- 23 min read
यह एडिटोरियल 07/05/2025 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “Taking ethanol blending beyond E20” लेख पर आधारित है । यह लेख वर्ष 2025 तक E20 लक्ष्य की ओर भारत के इथेनॉल सम्मिश्रण पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम की प्रगति को दर्शाता है, साथ ही दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल और फीडस्टॉक विविधीकरण की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
प्रिलिम्स के लिये: भारत का इथेनॉल-मिश्रण कार्यक्रम, विदेशी मुद्रा, PM-JI-VAN योजना, राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम, राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा मिशन, भारतीय खाद्य निगम, राष्ट्रीय हरित गतिशीलता रणनीति, FCI, न्यूनतम समर्थन मूल्य, PM कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, उद्योग विकास और विनियमन अधिनियम। मेन्स के लिये: भारत के ऊर्जा परिवर्तन में इथेनॉल मिश्रण की भूमिका, भारत में इथेनॉल मिश्रण से संबंधित प्रमुख मुद्दे। |
भारत का इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम देश की हरित ऊर्जा संक्रमण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिसमें मिश्रण दरें 20% के करीब पहुँच गई हैं और भारत को वर्ष 2025 तक अपने E20 लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर कर रही हैं। यह उपलब्धि महत्त्वपूर्ण है, लेकिन E20 से आगे स्थायी प्रगति के लिये कृषि अवशेषों का उपयोग करने वाली द्वितीय पीढ़ी की इथेनॉल तकनीकों का विकास आवश्यक है, ताकि खाद्य फसलों पर निर्भरता कम हो। भारत की इथेनॉल अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग अभी भी प्रमुख भूमिका निभा रहा है, लेकिन फीडस्टॉक में विविधता लाना और फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों का विकास अगला महत्त्वपूर्ण कदम है। GST में सुधार, भिन्नात्मक मूल्य निर्धारण और फॉर्मूला-आधारित मूल्य निर्धारण मॉडल जैसी नीतिगत सुधारों की आवश्यकता होगी ताकि इस क्षेत्र में निरंतर वृद्धि बनी रह सके।
भारत के ऊर्जा परिवर्तन में इथेनॉल सम्मिश्रण की क्या भूमिका है?
- तेल आयात को कम करके ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करना: इथेनॉल मिश्रण से आयातित कच्चे तेल पर भारत की भारी निर्भरता कम हो जाती है, जिससे ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ती है और अर्थव्यवस्था अस्थिर वैश्विक तेल कीमतों से सुरक्षित रहती है।
- इस प्रतिस्थापन से विदेशी कच्चे तेल की मांग कम हो जाती है, जिससे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार की बचत होती है।
- वर्ष 2014 से अगस्त 2024 के बीच, भारत में 181 लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल के स्थान पर इथेनॉल मिश्रण का उपयोग करके लगभग 1 लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की बचत की गई, जो ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- निम्न कार्बन उत्सर्जन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करना: इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल का उपयोग करने से परिवहन क्षेत्र से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम होता है, जो पेरिस समझौते और इसके राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
- इथेनॉल जीवाश्म ईंधन की तुलना में अधिक स्वच्छ तरीके से जलता है, जिससे वायु की गुणवत्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- इथेनॉल सम्मिश्रण पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम ने वर्ष 2014 से अब तक CO2 उत्सर्जन में 544 लाख मीट्रिक टन की कटौती की है, जिससे भारत के जलवायु लक्ष्यों को समर्थन प्राप्त हुआ साथ ही शहरी प्रदूषण में कमी आई है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना और किसानों की आजीविका को समर्थन देना: इथेनॉल उत्पादन से पर्याप्त ग्रामीण आय उत्पन्न होती है, जो किसानों के लिये विशेष रूप से गन्ना और मक्का उत्पादक क्षेत्रों में, एक वैकल्पिक राजस्व स्रोत प्रदान करती है।
- यह जैव ईंधन अर्थव्यवस्था फसल विविधीकरण और कृषि-औद्योगिक संबंधों को बढ़ावा देकर कृषि स्थिरता को बढ़ाती है।
- वर्ष 2014 से अब तक तेल विपणन कंपनियों ने किसानों को प्रत्यक्ष रूप से 87,558 करोड़ रुपए का भुगतान किया है, जिससे ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा तथा किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के लक्ष्य में योगदान मिला है।
- तकनीकी नवाचार और फ्लेक्स-फ्यूल व्हीकल्स को अपनाना: इथेनॉल मिश्रण रणनीति ऑटोमोटिव नवाचार को प्रोत्साहित करती है, जिससे फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स (FFV) के विकास और अपनाने को बढ़ावा मिलता है, जो उच्च इथेनॉल मिश्रणों पर भी चल सकते हैं।
- ये वाहन प्रदर्शन और ईंधन दक्षता को बनाए रखते हुए स्वच्छ गतिशीलता की ओर संक्रमण को सुगम बनाते हैं।
- उदाहरण के लिये सरकार ने वर्ष 2024 में 100-105 की ऑक्टेन रेटिंग के साथ E100 ईंधन लॉन्च किया, जो उच्च प्रदर्शन वाले इंजनों के लिये आदर्श है, जिससे अधिक अनुकूल और सतत् परिवहन क्षेत्र के लिये आधार तैयार होगा।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था और ग्रामीण जैव-हब विकास को आगे बढ़ाना: इथेनॉल-एकीकृत जैव-हब जैव-विद्युत, बायोगैस और जैव-उर्वरकों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा धाराओं को समेकित करते हैं, संसाधन उपयोग को अधिकतम कर ग्रामीण चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देते हैं।
- यह बहु-उत्पाद मॉडल ऊर्जा पहुँच और ग्रामीण रोज़गार को बढ़ाता है तथा सतत विकास लक्ष्यों को समर्थन प्रदान करता है।
- गन्ना-समृद्ध राज्यों में पहले से ही ऐसे जैव-हबों में निवेश किया जा रहा है, जो इथेनॉल उत्पादन को व्यापक जैव-आधारित आर्थिक गतिविधियों के साथ एकीकृत कर रहे हैं।
- नीति और मूल्य निर्धारण सुधारों के माध्यम से बाज़ार स्थिरता को बढ़ाना: इथेनॉल पर GST को घटाकर 5% करने, ब्याज अनुदान योजनाओं को शुरू करने तथा अंतर्राज्यीय आवागमन को नियंत्रण मुक्त करने जैसे सरकारी हस्तक्षेपों द्वारा इथेनॉल बाज़ार को स्थिर और पूर्वानुमेय बनाया गया है।
- ये सुधार इथेनॉल उत्पादन में निवेश और क्षमता विस्तार को प्रोत्साहित करते हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों (OMC) ने वर्ष 2014 से 1.45 ट्रिलियन रुपए से अधिक मूल्य के इथेनॉल की खरीद की है, जो निरंतर सरकारी प्रतिबद्धता और बाज़ार के विकास का संकेत है।
भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण से संबंधी प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- खाद्य बनाम ईंधन सुरक्षा संघर्ष: गन्ना, मक्का और अधिशेष चावल जैसी खाद्य फसलों को इथेनॉल उत्पादन की ओर मोड़ने से खाद्य सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे मुद्रास्फीति और आपूर्ति की कमी का खतरा उत्पन्न होता है।
- यह ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने और किफायती खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करने के बीच संतुलन को और कठिन बना देता है।
- उदाहरण के लिये दशकों के निर्यात के बाद, भारत वर्ष 2024 में मक्के का शुद्ध आयातक बन गया, जो इथेनॉल के लिये मक्के की बढ़ती मांग से प्रेरित था।
- फीडस्टॉक की खेती से पर्यावरण और जल संबंधी तनाव: गन्ना आधारित इथेनॉल उत्पादन में अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है, जिससे महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे पहले से ही असुरक्षित राज्यों में भूजल की कमी और भी अधिक हो जाती है ।
- यह पारिस्थितिक लागत दीर्घकालिक स्थिरता और जल उपलब्धता पर निर्भर ग्रामीण आजीविका के लिये खतरा उत्पन्न करती है।
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, गन्ने से उत्पादित एक लीटर इथेनॉल में कम-से-कम 2,860 लीटर पानी की खपत होती है, जो अनियमित मानसून और सूखे के वर्षों में जल संकट को और गंभीर बना देता है।
- आपूर्ति शृंखला और फीडस्टॉक उपलब्धता की चुनौतियाँ: गन्ना और भारतीय खाद्य निगम (FCI) चावल जैसे पारंपरिक फीडस्टॉक की अनियमित उपलब्धता आपूर्ति में बाधा डालती है, जिससे इथेनॉल उत्पादन लक्ष्यों और मिश्रण दरों पर असर पड़ता है।
- हाल ही में कीट प्रकोप और देर से हुई वर्षा के कारण वर्ष 2024 में गन्ना उत्पादन में गिरावट आई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य फीडस्टॉक की अनिश्चित आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कितने संवेदनशील हैं।
- वाहनों की ईंधन दक्षता और उपभोक्ता लागत पर प्रभाव: E20 जैसे उच्च इथेनॉल मिश्रण उन वाहनों में 6–7% तक ईंधन दक्षता में गिरावट ला सकते हैं जो विशेष रूप से इसके लिये डिज़ाइन नहीं किए गए हैं, जिससे उपभोक्ताओं के लिये संचालन लागत बढ़ जाती है।
- इसके अतिरिक्त, इथेनॉल की उच्च मात्रा के कारण ईंधन भरने की बार-बार आवश्यकता पड़ सकती है, जिससे वाहन चालकों पर कुल लागत का बोझ और बढ़ सकता है।
- यह दक्षता हानि ईंधन मूल्य लाभ को प्रभावित कर सकती है, जब तक कि इसे फ्लेक्स ईंधन वाहन रोलआउट के साथ मिलान न किया जाए।
- उच्च इथेनॉल सांद्रता को कुशलतापूर्वक संभालने में सक्षम वाहनों को व्यापक रूप से अपनाए बिना, उपभोक्ताओं को ईंधन की खपत में वृद्धि का अनुभव हो सकता है।
- अवसंरचना और रसद संबंधी बाधाएँ: अपर्याप्त इथेनॉल भंडारण, मिश्रण सुविधाएं और आपूर्ति शृंखला अवसंरचना, राज्यों में इथेनॉल के कुशल वितरण और मिश्रण को सीमित करती हैं।
- इथेनॉल की आवाजाही पर राज्य स्तरीय विनियामक नियंत्रण अंतर्राज्यीय आपूर्ति में बाधा डालते हैं, जिससे मिश्रण कार्यक्रम का विस्तार जटिल हो जाता है, क्योंकि अधिकांश राज्य अपनी सीमाओं से बाहर और अंदर आने वाले इथेनॉल पर 'निर्यात/आयात' शुल्क लगा रहे हैं।
- राज्यों के बीच इथेनॉल की मुक्त आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिये उद्योग विकास एवं विनियमन अधिनियम में संशोधन हाल ही में उठाए गए कदम हैं, लेकिन कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- पेट्रोल की कीमतों में कटौती के मार्ग में बाधाएँ: सैद्धांतिक रूप से, इथेनॉल मिश्रण से पेट्रोल की कीमतें कम होनी चाहिये, क्योंकि कम कर और उत्पादन लागत के कारण इथेनॉल की लागत पेट्रोल से कम होती है।
- इसके बावजूद, खुदरा पेट्रोल की कीमतें अभी तक इन बचतों को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं कर पाई हैं, जिसका आंशिक कारण बाज़ार और कराधान संरचनाएँ हैं।
- अध्ययनों का अनुमान है कि 15-20% मिश्रण से पेट्रोल की कीमतें 3.5 रुपए से 8 रुपए प्रति लीटर तक कम हो सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर वित्तीय बोझ कम हो सकता है तथा साथ ही स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
भारत अपने इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम की स्थिरता और दक्षता बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- गैर-खाद्य बायोमास पर ज़ोर देते हुए फीडस्टॉक पोर्टफोलियो में विविधता लाना: खाद्य फसलों पर निर्भरता कम करने और खाद्य बनाम ईंधन संघर्ष को कम करने के लिये कृषि अवशेषों, वानिकी अपशिष्ट और औद्योगिक उप-उत्पादों का उपयोग करके दूसरी पीढ़ी (2G) इथेनॉल प्रौद्योगिकियों को बड़े पैमाने पर अपनाने को बढ़ावा देना।
- इसे प्रधानमंत्री जी-वन योजना के विस्तारित दायरे के साथ एकीकृत करने से सतत् फीडस्टॉक सोर्सिंग में निवेश और नवाचार में तेजी आ सकती है।
- इनपुट लागत से संबंधित पारदर्शी, गतिशील मूल्य निर्धारण प्रणाली को लागू करना: एक फार्मूला-आधारित इथेनॉल मूल्य निर्धारण प्रणाली स्थापित करना, जो वास्तविक समय में फीडस्टॉक कॉस्ट (लागत) और उत्पादन क्षमता को प्रतिबिंबित करती है, जिससे लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनाए रखते हुए उत्पादकों के लिये उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित होता है।
- यह स्थिर प्रशासकीय मूल्य निर्धारण की जगह लेगा, जिससे उत्पादक संचालन में अनुकूलन और सतत् ढंग से उत्पादन का विस्तार कर सकेंगे।
- नीतिगत प्रोत्साहनों के माध्यम से फ्लेक्स-फ्यूल व्हीकल (FFV) के प्रवेश में तेजी लाना: वाहन निर्माताओं के लिये लक्षित सब्सिडी, कर छूट और अनिवार्य FFV उत्पादन कोटा पेश करना ताकि उच्च इथेनॉल मिश्रण पर चलने वाले वाहनों की आपूर्ति और उपभोक्ता अपनाने को बढ़ावा मिल सके।
- पीएम ई-ड्राइव (जो इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा दे रहा है) को पूरक बनाने से भारत में एक सहक्रियात्मक स्वच्छ मोबिलिटी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो सकता है।
- इथेनॉल भंडारण और वितरण बुनियादी ढाँचे का विस्तार और आधुनिकीकरण: निर्बाध अंतर्राज्यीय आवागमन और निरंतर उपलब्धता को सक्षम करने के लिये विकेंदीकृत इथेनॉल भंडारण टैंक, मिश्रण टर्मिनल और मज़बूत आपूर्ति शृंखला रसद के निर्माण में निवेश करना।
- उद्योग विकास एवं विनियमन अधिनियम के माध्यम से विनियामक बाधाओं को संशोधित करने के साथ-साथ कुशल इन्वेंट्री प्रबंधन के लिये डिजिटल निगरानी प्रणालियों को भी जोड़ा जाना चाहिये।
- जल-कुशल फीडस्टॉक खेती को बढ़ावा देना: जल पदचिह्न और पर्यावरणीय तनाव को कम करने के लिये गन्ना और मक्का की खेती के लिये सतत् कृषि, ड्रिप सिंचाई और सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों को अपनाने को प्रोत्साहित करना।
- इन प्रयासों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसी योजनाओं से जोड़कर संसाधनों की दक्षता और कृषि स्तर पर सतत् को बढ़ाया जा सकता है।
- इथेनॉल-से-हाइड्रोजन और सतत् विमानन ईंधन में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: हरित हाइड्रोजन और सतत् विमानन ईंधन का उत्पादन करने के लिये इथेनॉल रूपांतरण प्रौद्योगिकियों में नवाचार का समर्थन करना तथा उन्नत ऊर्जा क्षेत्रों में मिश्रण से परे इथेनॉल की उपयोगिता का विस्तार करना।
- राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम के अंतर्गत सार्वजनिक-निजी भागीदारी सफलता और वाणिज्यिक व्यवहार्यता को उत्प्रेरित कर सकती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था मॉडल को एकीकृत करना: इथेनॉल-केंद्रित बायो-हब विकसित करें, जो जैविक बिजली, बायोगैस और जैव-उर्वरक उत्पादन को अपशिष्ट से जोड़कर संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित कर समुदायों के लिये विविध आय सृजन करें।
- यह दृष्टिकोण सरकार के ग्रामीण आजीविका कार्यक्रमों और ऊर्जा पहुँच पहलों के अनुरूप है।
- उपभोक्ता जागरूकता और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये अभियान शुरू करना: इथेनॉल ईंधन के पर्यावरणीय तथा आर्थिक लाभों पर प्रकाश डालने वाले राष्ट्रव्यापी जागरूकता कार्यक्रमों को लागू करना, शहरी एवं ग्रामीण बाज़ारों में इथेनॉल ईंधन भरने वाले स्टेशनों का विस्तार करना।
- सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों और राज्य सरकारों के साथ सहयोग से बढ़ी हुई खपत को समर्थन देने हेतु बुनियादी ढाँचे की तैयारी सुनिश्चित की जा सकती है।
- फसल विविधीकरण प्रोत्साहन के माध्यम से सतत् भूमि उपयोग को प्रोत्साहित करना: किसानों को अधिक पानी की आवश्यकता वाले गन्ने की जगह कसावा जैसे कम पानी की आवश्यकता वाले और अधिक उपज देने वाले फीडस्टॉक्स की खेती करने के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना, जिससे भूमि उपयोग को अनुकूलित किया जा सके और पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके।
- ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा लक्ष्यों में संतुलन स्थापित करने के लिये इसे राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन के साथ एकीकृत किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
भारत का इथेनॉल सम्मिश्रण पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु लक्ष्यों और ग्रामीण आर्थिक विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। E20 से परे सतत् प्रगति सुनिश्चित करने के लिये, दूसरी पीढ़ी की इथेनॉल प्रौद्योगिकियों में निवेश करना और फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों के विकास को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री जी-वन योजना सतत् बायोमास-आधारित इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देकर इन प्रयासों को गति प्रदान कर सकती है, जो SDG 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा), 13 (जलवायु कार्रवाई) तथा 8 (सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) में सीधे योगदान देती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में इथेनॉल सम्मिश्रण पेट्रोल (EBP) की भूमिका का विश्लेषण तथा भारत में इथेनॉल मिश्रण को बढ़ाने में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षो के प्रश्न (PYQs):
प्रीलिम्स:
प्रश्न. चार ऊर्जा फसलों के नाम नीचे दिये गए हैं। उनमें से किसकी खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (वर्ष 2010)
(A) जटरोफा
(B) मक्का
(C) पोंगामिया
(D) सूरजमुखी
उत्तर: (B)
प्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार जैव ईंधन के उत्पादन के लिए निम्न में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (वर्ष 2020)
- कसावा
- गेहूँ के टूटे दाने
- मूंगफली के बीज
- चने की दाल
- सड़े हुए आलू
- मीठे चुक़ंदर
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(A) केवल 1, 2, 5 और 6
(B) केवल 1, 3, 4 और 6
(C) केवल 2, 3, 4 और 5
(D) 1, 2, 3, 4, 5 और 6
उत्तर: (A)