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सामाजिक न्याय

रोग निगरानी प्रणाली

  • 27 Sep 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 24/09/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A disease surveillance system, for the future” लेख पर आधारित है। इसमें रोग निगरानी कार्यक्रमों के महत्त्व और इस प्रणाली को सशक्त बनाने के उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

निगरानी (Surveillance) का आशय परिणाम विशिष्ट डेटा के व्यवस्थित संग्रहण, विश्लेषण और व्याख्या से होता है, जिसका उपयोग प्रायः सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों एवं अभ्यासों के नियोजन, क्रियान्वयन और मूल्यांकन के लिये किया जाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर ‘रोग निगरानी प्रणाली’ मुख्यतः दो कार्य करती है- पहला सार्वजनिक स्वास्थ्य को संभावित खतरों की पूर्व-चेतावनी देना और दूसरा कार्यक्रम निगरानी कार्य, जो कि रोग विशिष्ट या बहु-रोग आधारित हो सकता है।

बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चेचक उन्मूलन के वैश्विक प्रयासों के एक हिस्से के रूप में और फिर कई उभरते तथा पुनः उभरते रोगों से निपटने के लिये विभिन्न देशों ने रोग निगरानी प्रणाली के महत्त्व को समझा है और इसमें निवेश करने तथा इसे सशक्त बनाने का प्रयास किया है। वर्ष 1997 में ’एवियन फ्लू’ के प्रकोप और वर्ष 2002-04 में ’सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम’ (SARS) के प्रकोप के साथ इन प्रयासों को और बढ़ावा दिया गया है।     

भारत में रोग निगरानी प्रणाली

  • वर्ष 1988 में दिल्ली में व्यापक स्तर पर ‘हैज़ा’ (Cholera) के प्रकोप और वर्ष 1994 में सूरत में प्लेग के प्रकोप ने भारत सरकार को वर्ष 1997 में ‘राष्ट्रीय संचारी रोग निगरानी कार्यक्रम’ (National Surveillance Programme for Communicable Diseases) की शुरुआत के लिये प्रेरित किया था। 
  • हालाँकि, सरकार की यह पहल बेहद बुनियादी या साधारण ही बनी रही और असल प्रयास तब शुरू हुआ जब वर्ष 2004 में SARS के प्रकोप को देखते हुए भारत ने ’एकीकृत रोग निगरानी परियोजना’ (IDSP) की शुरुआत की। 
  • ’एकीकृत रोग निगरानी परियोजना’ के तहत रोग निगरानी के लिये सरकारी वित्तपोषण की वृद्धि, प्रयोगशाला क्षमता का सशक्तीकरण, स्वास्थ्य कार्यबल के प्रशिक्षण और भारत के प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम एक प्रशिक्षित महामारी विशेषज्ञ (Epidemiologist) की नियुक्ति पर ध्यान केंद्रित किया गया है।  
  • इस परियोजना के हिस्से के रूप में वर्ष 2004 से वर्ष 2019 के बीच विभिन्न प्रकोपों ​​​​का पता लगाया गया और उनकी जाँच की गई।

महामारी विज्ञान

  • महामारी विज्ञान का अभिप्राय आबादी विशेष में स्वास्थ्य एवं रोग स्थितियों के वितरण, प्रारूप एवं निर्धारकों के अध्ययन और विश्लेषण से है।
  • यह सार्वजनिक स्वास्थ्य की आधारशिला है और रोग के जोखिम कारकों एवं निवारक स्वास्थ्य देखभाल के लक्ष्यों की पहचान कर नीतिगत निर्णयों एवं साक्ष्य-आधारित अभ्यास को आकार देता है।
  • इसका प्राथमिक कार्य रोगों या उनके प्रसार के रोकथाम हेतु कार्रवाई शुरू करना है, जिसे ‘रोग निगरानी’ प्रक्रिया कहा जाता है।

निगरानी प्रणाली की आवश्यकता

  • स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का बेहतर प्रबंधन: जब राष्ट्रीय स्तर पर रोग के प्रसार का पता लगाने की क्षमता होती है, तो वह नीति निर्माताओं को रोग प्रबंधन के लिये स्वास्थ्य प्रणालियों को बेहतर ढंग से डिज़ाइन करने में मदद करती है।  
    • उदाहरण के लिये यदि अस्पताल इन्फ्लूएंज़ा, निमोनिया या डायरिया के सीज़न के विषय में जानते हैं, तो वे रोगियों की भर्ती में वृद्धि के लिये पूर्व-योजना बना सकते हैं और सुनिश्चित कर सकते हैं कि आवश्यकतानुसार बिस्तर और कर्मचारी उपलब्ध होंगे।
  • भारत की विविध प्रकृति से बढ़ते खतरे: स्वास्थ्य देखभाल में उल्लेखनीय असमानता, घनी शहरी आबादी, घरेलू एवं जंगली पशुओं के साथ विविध संपर्क, लगातार आंतरिक प्रवास, व्यापक प्रवासी आबादी, अंतर्राष्ट्रीय हवाई संपर्क और गर्म जलवायु जैसी विशेषताओं के साथ 1.3 बिलियन आबादी वाले देश के रूप में भारत स्वदेशी और आयातित संक्रामक रोगों के प्रति काफी अधिक संवेदनशील है। 
  • रोगों की शीघ्रातिशीघ्र पहचान: एक सुव्यवस्थित और क्रियान्वित रोग निगरानी प्रणाली में किसी भी रोग के मामलों में वृद्धि की पहचान शीघ्रातिशीघ्र कर सकना संभव हो पाता है।  
    • उदाहरण के रूप में हम केरल को देख सकते हैं, जो भारत के सर्वोत्कृष्ट रोग निगरानीकर्त्ता राज्यों में से एक है और कोविड-19 मामलों की सर्वाधिक पहचान में सबसे अधिक सफल रहा है। केरल सितंबर 2021 के आरंभ में ‘निपाह वायरस’ के पहले मामले की पहचान करने वाला राज्य भी है।
    • इसके विपरीत डेंगू, मलेरिया, लेप्टोस्पायरोसिस और स्क्रब टाइफस के मामलों ने तब ध्यान आकर्षित किया था, जब उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में इनके कारण तीन दर्जन से अधिक मौतें हुई थीं।

आगे की राह

  • वित्तपोषण की वृद्धि करना: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा निवारक एवं प्रोत्साहक स्वास्थ्य सेवाओं तथा रोग निगरानी के लिये आवंटित सरकारी संसाधनों को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। 
  • कार्यबल का प्रशिक्षण: ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में संलग्न कार्यबल को रोग निगरानी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्रवाइयों के विषय में प्रशिक्षित किये जाने की आवश्यकता है।    
    • सभी स्तरों पर निगरानी कर्मचारियों के रिक्त पदों को तत्काल भरे जाने की आवश्यकता है।
  • क्षमता निर्माण: कोविड-19 महामरी के मद्देनज़र बीते 18 माह में विकसित हुई प्रयोगशाला क्षमता को योजनाबद्ध और पुनर्व्यवस्थित करने की आवश्यकता है, ताकि अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों एवं संक्रमणों के परीक्षण करने की क्षमता का भी विस्तार किया जा सके।    
    • इसे एक ऐसी प्रणाली के निर्माण के लिये संबद्ध किया जाना चाहिये, जहाँ एकत्र किये गए नमूनों का त्वरित रूप से स्थानांतरण एवं परीक्षण किया जा सके और तुरंत ही रिपोर्ट उपलब्ध हो सके।
  • 'वन हेल्थ' के दृष्टिकोण को अपनाना: ज़ूनोटिक या पशुजन्य रोगों के उभरते प्रकोप- चाहे वह केरल में निपाह वायरस हो या अन्य राज्यों में ‘एवियन फ्लू’ अथवा उत्तर प्रदेश में ‘स्क्रब टाइफस’- हमें मानव एवं पशु स्वास्थ्य के परस्पर संबंध की याद दिलाते हैं।  
    • इस प्रकार, 'वन हेल्थ' के दृष्टिकोण को नीतिगत आख्यानों से आगे ले जाते हुए इसे ज़मीनी स्तर पर कार्यात्मक किया जाना चाहिये।  
  • पंजीकरण प्रणाली को सुदृढ़ बनाना: ’नागरिक पंजीकरण एवं जन्म-मृत्यु आँकड़ा (Civil Registration and Vital Statistics- CRVS) प्रणाली और मृत्यु के कारणों का चिकित्सकीय प्रमाण-पत्र संबंधी व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा।
  • समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता: यह एक उपयुक्त समय है जब संयुक्त कार्ययोजना विकसित करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं रोग निगरानी के लिये उत्तरदायित्व सँभालने हेतु राज्य सरकार एवं नगर निगम के बीच समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।  
    • 15वें वित्त आयोग द्वारा निगमों को स्वास्थ्य के लिये किए गए आवंटन का उपयोग इस प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिये किया जाना चाहिये।  

निष्कर्ष

नए एवं पुराने रोगों का उभार एवं पुनः उभार और स्थानिक रोगों (Endemic Diseases) के मामलों में वृद्धि आंशिक रूप से अपरिहार्य है। हम ऐसे प्रत्येक प्रकोप के उभार को रोक नहीं सकते लेकिन एक सु-संचालित रोग निगरानी प्रणाली के साथ ही महामारी विज्ञान के सिद्धांतों के अनुप्रयोग से हम उनके प्रभाव को अवश्य ही कम कर सकते हैं।

भारतीय राज्यों को रोगों का पता लगा सकने के लिये तत्काल सारे उपाय कर लेने की आवश्यकता है, जो देश को भविष्य के सभी प्रकोपों, स्थानिक बीमारियों और महामारियों के लिये तैयार करेंगे। यह उन प्रथम आवश्यकताओं में से एक है, जिस पर भारतीय स्वास्थ्य नीति-निर्माताओं को अविलंब ध्यान देना चाहिये।

Priority-Disease

अभ्यास प्रश्न: ‘प्रत्येक प्रकोप के उभार को रोका नहीं जा सकता है, किंतु एक सु-संचालित रोग निगरानी प्रणाली के साथ उनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।’ चर्चा कीजिये।

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