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भारतीय राजनीति

भारतीय संघवाद की जटिलता

  • 26 Jun 2023
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 23/06/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘India’s Federalism’’ लेख पर आधारित है। यह भारतीय संघीय प्रणाली और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये: संघवाद, राष्ट्रपति शासन, राज्यपाल की भूमिका, सर्वोच्च न्यायालय, संसद, अंतर्राज्यीय परिषद, वित्त आयोग, नीति आयोग

मेन्स के लिये: संघीय ढाँचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ, शक्तियों का हस्तांतरण, विभिन्न अंगों के मध्य शक्तियों का पृथक्करण, राज्य सरकारों के समक्ष मुद्दे, भारत की संघीय भावना को पुनर्जीवित करने के लिये उपाय।

संघवाद (Federalism) सरकार की एक प्रणाली है जिसमें शक्तियों को सरकार के दो या दो से अधिक स्तरों, जैसे केंद्र और राज्यों अथवा प्रांतों के बीच विभाजित किया जाता है। संघवाद एक बड़ी राजनीतिक इकाई के भीतर विविधता और क्षेत्रीय स्वायत्तता के समायोजन की अनुमति देता है।

भारतीय संविधान कुछ एकात्मक विशेषताओं (unitary features) के साथ एक संघीय प्रणाली (federal system) स्थापित करता है। इसे कभी-कभी अर्द्ध-संघीय प्रणाली (quasi-federal system) भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें ‘फ़ेडरेशन’ और ‘यूनियन’ दोनों के तत्व शामिल होते हैं। संविधान केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विधायी, प्रशासनिक और कार्यकारी शक्तियों के वितरण को निर्दिष्ट करता है। विधायी शक्तियों को संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जो संघ सरकार एवं राज्य सरकारों को प्रदत्त शक्तियों और उनके बीच साझा की गई शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। संविधान राजनीतिक शक्ति वितरण के कई तरीकों के साथ एक बहुस्तरीय या बहु-संस्तरीय संघ (multilevel or multilayered federation) की स्थापना का भी प्रावधान करता है।

भारतीय संघवाद अपने संदर्भ में अद्वितीय है, क्योंकि यह ब्रिटिश शासन के तहत प्रचलित एकात्मक प्रणाली से स्वतंत्रता के बाद एक संघीय प्रणाली के रूप में विकसित हुआ है। भारतीय संघवाद को समय के साथ कई चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जैसे कि रियासतों (princely states) का एकीकरण, राज्यों का भाषाई पुनर्गठन, क्षेत्रीय आंदोलन एवं स्वायत्तता की मांग, केंद्र-राज्य संबंध एवं संघर्ष, राजकोषीय संघवाद (fiscal federalism) एवं संसाधन साझाकरण, सहकारी संघवाद (cooperative federalism), अंतर-राज्य समन्वय आदि।

संघीय प्रणालियों के विभिन्न प्रकार 

  • ‘होल्डिंग टूगेदर फ़ेडरेशन’ (Holding Together Federation): इस प्रकार के संघ में संपूर्ण इकाई में विविधता को समायोजित करने के लिये विभिन्न घटक भागों के बीच शक्तियों को साझा किया जाता है। यहाँ शक्तियाँ आम तौर पर केंद्रीय सत्ता की ओर झुकी होती हैं। उदाहरण: भारत, स्पेन, बेल्जियम।
  • ‘कमिंग टूगेदर फ़ेडरेशन’ (Coming Together Federation): इस प्रकार के संघ में स्वतंत्र राज्य एक बड़ी इकाई बनाने के लिये एक साथ आते हैं। यहाँ राज्यों को ‘होल्डिंग टूगेदर फ़ेडरेशन’ के रूप में गठित संघ की तुलना में अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है। उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड।
  • असममित संघ (Asymmetrical Federation): इस प्रकार के संघ में कुछ घटक इकाइयों के पास ऐतिहासिक या सांस्कृतिक कारणों से अन्य की तुलना में अधिक शक्तियाँ या विशेष स्थिति होती है। उदाहरण: कनाडा (क्यूबेक), रूस (चेचन्या), इथियोपिया (टाइग्रे)।

संघ के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ 

  • क्षेत्रवाद (Regionalism):
    • भाषाई, जातीय, धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान पर आधारित क्षेत्रीय दलों और आंदोलनों के उदय ने भारत की राष्ट्रीय अखंडता एवं एकता के लिये चुनौती पेश की है।
    • कुछ क्षेत्रों या समूहों ने अधिक स्वायत्तता, विशेष दर्जा या यहाँ तक कि भारतीय संघ से अलग होने की मांग की है।
      • उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल में गोरखालैंड, असम में बोडोलैंड की मांग आदि।
  • शक्तियों का विभाजन (Division of Powers):
    • केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन स्पष्ट और संतुलित नहीं है।
    • केंद्र के पास राज्यों की तुलना में अधिक शक्तियाँ एवं संसाधन हैं और वह राष्ट्रपति शासन, राज्यपाल की भूमिका, केंद्रीय कानून आदि विभिन्न माध्यमों से उनके मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है। राज्यों के पास अपने स्वयं के विकास और कल्याण नीतियों को आगे बढ़ाने के लिये सीमित स्वायत्तता एवं वित्तीय अवसर मौजूद हैं।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2016 में संवैधानिक उल्लंघन के आधार पर केंद्र द्वारा अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था, लेकिन बाद में इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया।
  • राजकोषीय संघवाद का अभाव (Absence of Fiscal Federalism):
    • केंद्र और राज्यों के बीच राजकोषीय संबंध न्यायसंगत एवं पारदर्शी नहीं हैं। अधिकांश करों का संग्रह केंद्र द्वारा किया जाता है और वह अपने विवेक या कुछ मानदंडों के अनुसार राज्यों को इसका वितरण करता है।
    • राज्य सहायता अनुदान, ऋण और अन्य हस्तांतरण के लिये केंद्र पर निर्भर होते हैं। राज्यों के पास कराधान शक्तियाँ और उधार लेने की क्षमताएँ सीमित होती हैं।
      • उदाहरण के लिये, कई राज्यों ने जीएसटी कार्यान्वयन के कारण हुए राजस्व घाटे के लिये अपर्याप्त मुआवजे के संबंध में शिकायत की है
  • इकाइयों का असमान प्रतिनिधित्व (Unequal Representation of Units):
    • संसद और अन्य संघीय संस्थानों में राज्यों का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या, क्षेत्र या योगदान के अनुपात में नहीं है। कुछ राज्यों के अति प्रतिनिधित्व तो अन्य राज्यों के अल्प प्रतिनिधित्व की समस्या उत्पन्न हुई है।
      • उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीट हैं जबकि सिक्किम में केवल एक लोकसभा सीट है। यह राष्ट्रीय निर्णयन और संसाधन आवंटन में विभिन्न राज्यों की आवाज़ और असर को प्रभावित करता है।
  • केंद्रीकृत संशोधन शक्ति (Centralized Amendment Power):
    • संविधान में संशोधन करने की शक्ति विशेष बहुमत वाली संसद में निहित है। राज्यों को प्रभावित करने वाले कुछ मामलों को छोड़कर संशोधन प्रक्रिया में राज्यों की कोई भूमिका या मत नहीं है।
      • उदाहरण के लिये, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने का केंद्र का निर्णय राज्य सरकार या अन्य हितधारकों से किसी परामर्श के बिना किया गया था।
      • आंध्र प्रदेश राज्य से तेलंगाना राज्य के निर्माण का आंध्र प्रदेश ने विरोध किया था और इसके परिणामस्वरूप प्रदर्शन एवं हिंसा की घटनाएँ हुईं।

संघवाद को सुदृढ़ करने की आवश्यकता क्यों?

  • विविधता और बहुलता का संरक्षण:
    • केंद्र या प्रमुख समूहों की ओर से बढ़ते समरूपीकरण और आत्मसातीकरण दबाव (homogenization and assimilation pressures) के समक्ष भारत के समाज, संस्कृति, भाषा, धर्म आदि की विविधता एवं बहुलता (diversity and pluralism) की रक्षा और संरक्षण के लिये संघवाद आवश्यक है
  • स्वायत्तता और अधिकारों की सुरक्षा:
    • बढ़ते केंद्रीकरण और केंद्र या अन्य बाह्य शक्तियों के हस्तक्षेप की स्थिति में राज्यों और अन्य उप-राष्ट्रीय इकाइयों की स्वायत्तता एवं अधिकारों की सुरक्षा एवं संवृद्धि के लिये संघवाद आवश्यक है।
  • शासन की गुणवत्ता और दक्षता में सुधार:
    • राज्यों एवं अन्य उप-राष्ट्रीय इकाइयों को उनकी आवश्यकताओं एवं क्षमताओं के अनुसार अपनी नीतियाँ एवं कार्यक्रम बनाने तथा उसका प्रवर्तन करने के लिये सशक्त और सक्षम बनाकर विभिन्न स्तरों पर शासन एवं सेवा वितरण की गुणवत्ता और दक्षता में सुधार लाने और उनकी सुनिश्चिता के लिये संघवाद आवश्यक है।
    • संतुलित और समावेशी विकास को बढ़ावा देना:
      • सरकार के विभिन्न स्तरों या इकाइयों के बीच संसाधनों और अवसरों का समान एवं पारदर्शी वितरण सुनिश्चित करके भारत के सभी क्षेत्रों एवं वर्गों के संतुलित और समावेशी विकास एवं कल्याण को बढ़ावा देने तथा इसकी प्राप्त के लिये संघवाद आवश्यक है।
      • सद्भाव और सहयोग को बढ़ावा देना:
        • टकराव और दबाव के बजाय संवाद एवं परामर्श के माध्यम से विवादों और संघर्षों को हल करके सरकार के विभिन्न स्तरों या इकाइयों के बीच सद्भाव एवं सहयोग को बढ़ावा देने तथा इसे बनाए रखने के लिये संघवाद आवश्यक है।

      कौन-सी संस्थाएँ संघवाद को बढ़ावा दे रही हैं?

      • सर्वोच्च न्यायालय (SCI):
        • यह देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है और संविधान के संरक्षक एवं व्याख्याकार के रूप में कार्य करती है।
        • इसके पास केंद्र और राज्यों के बीच या राज्यों के आपसी विवादों पर निर्णय लेने की शक्ति है।
        • अंतर्राज्यीय परिषद (Inter-State Council):
          • यह सामान्य हित एवं चिंता के मामलों पर केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय एवं सहयोग को बढ़ावा देने के लिये संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।
          • इसमें प्रधानमंत्री, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा नामित छह केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
          • वित्त आयोग (FC):
            • यह केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण की अनुशंसा करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।
            • यह राज्यों के संसाधनों को बढ़ाने और ज़रूरतमंद राज्यों को सहायता अनुदान देने के उपाय भी सुझाता है।
          • नीति आयोग (NITI Aayog) :
            • इसकी स्थापना वर्ष 2015 में योजना आयोग (Planning Commission) के स्थान पर की गई थी।
            • यह आर्थिक और सामाजिक विकास के मामलों पर केंद्र और राज्यों के लिये एक थिंक टैंक एवं सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।
            • यह नीति निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों को शामिल करके सहकारी संघवाद को भी बढ़ावा देता है।
              • इसमें एक अध्यक्ष (प्रधानमंत्री), एक उपाध्यक्ष, एक कार्यकारी अधिकारी/सीईओ, पूर्णकालिक सदस्य, अंशकालिक सदस्य, पदेन सदस्य (सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल) और विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल होते हैं।

          भारत में संघवाद को सुदृढ़ करने के लिये आगे की राह

          • शक्तियों और संसाधनों का हस्तांतरण बढ़ाना:
            • संवैधानिक सूचियों को संशोधित करके, केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाकर, राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता एवं लचीलापन प्रदान करने जैसे कदमों के माध्यम से राज्यों और स्थानीय निकायों की ओर शक्तियों एवं संसाधनों के हस्तांतरण को बढ़ाकर संघवाद को सुदृढ़ किया जा सकता है।
            • बेहतर प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करना:
              • राष्ट्रीय निर्णय प्रक्रिया में राज्यों का अधिक प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करके संघवाद को सुदृढ़ किया जा सकता है। इसके लिये उन्हें राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों के निर्माण एवं कार्यान्वयन में संलग्न करके, उन्हें संघीय संस्थानों (जैसे जीएसटी परिषद, अंतर्राज्यीय परिषद, नीति आयोग आदि) में अधिक आवाज़ एवं वोटिंग देकर सबल किया जा सकता है।
              • सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देना:
                • राज्यों के बीच सहकारी एवं प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देकर संघवाद को सुदृढ़ किया जा सकता है। इसके लिये उन्हें साझा मुद्दों एवं चुनौतियों पर साथ मिलकर कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करने, उनके बीच सर्वोत्तम प्रथाओं एवं नवाचारों को बढ़ावा देने, बेहतर प्रदर्शन एवं परिणामों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन एवं पुरस्कार देने जैसे कदम उठाये जा सकते हैं।
                • क्षेत्रीय असंतुलन और असमानताओं को संबोधित करना:
                  • पिछड़े और वंचित क्षेत्रों या समूहों को विशेष सहायता एवं समर्थन प्रदान करने, विभिन्न क्षेत्रों या समूहों के बीच संसाधनों एवं अवसरों का उचित एवं पर्याप्त आवंटन सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय विकास परिषदों या प्राधिकरणों का निर्माण करने के रूप में क्षेत्रीय असंतुलन और असमानताओं को संबोधित कर संघवाद को सुदृढ़ किया जा सकता है।
                  • संघीय सिद्धांतों एवं भावना का सम्मान करना:
                    • संघवाद से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों एवं मानदंडों का पालन करने, केंद्र या राज्यों द्वारा मनमानी या एकतरफा कार्रवाई या हस्तक्षेप से बचने, संवाद या न्यायिक तंत्र के माध्यम से विवादों या संघर्षों को हल करने आदि के रूप में सभी मामलों में संघीय सिद्धांतों एवं भावना का सम्मान करके संघवाद को सुदृढ़ किया जा सकता है।

                  अभ्यास प्रश्न: संघवाद की प्राप्ति में निहित चुनौतियों एवं अवसरों और अंतर-सरकारी संबंधों के लिये इसके निहितार्थ की विवेचना कीजिये।

                   UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

                  प्रिलिम्स

                  प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं  है? (2017)

                  (a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है।
                  (b) केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
                  (c)  संघबद्ध होने वाली इकाइयों को राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
                  (d) यह संघबद्ध होने वाली इकाइयों के बीच एक सहमति का परिणाम है।

                  उत्तर: (d)


                  प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है।(2017)

                  (a) संघवाद का
                  (b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का 
                  (c) प्रशासनिक प्रत्यायोजन का
                  (d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

                  उत्तर: (b)


                  मेन्स

                  प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केन्द्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये।(2014)        

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