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कृषि

पोषक अनाजों का घटता कृषि क्षेत्र

  • 24 Jun 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 19/06/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Millets need a procurement’’ लेख पर आधारित है। इसमें पोषक अनाज फसलों के कृषि क्षेत्र में गिरावट की चिंताजनक प्रवृत्ति के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), कदन्न/मिलेट्स, हरित क्रांति, संयुक्त राष्ट्र महासभा, अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष, किसान उत्पादक संगठन (FPO), सार्वजनिक वितरण प्रणाली

मेन्स के लिये:

पोषक अनाजों की खेती बढ़ाने के लाभ, सरकारी पहलें

मोटे अनाज/कदन्न या मिलेट्स (Millets), जिन्हें पोषक अनाज फसलों के रूप में भी जाना जाता है, कैल्शियम, फाइबर, प्रोटीन, आयरन और ऐसे कई अन्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्व प्रदान करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत की वृहत आबादी के बीच सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी के उच्च प्रसार को देखते हुए, इन पोषक अनाज फसलों के शस्य या खेती क्षेत्र (cultivation area) में आ रही कमी पोषण सुरक्षा के लिये एक उल्लेखनीय खतरा उत्पन्न करती है।

इन फसलों के महत्त्व को स्वीकार करते हुए और उपभोक्ताओं के बीच उनके उपभोग को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में मोटे अनाजों का नाम बदलकर पोषक अनाज करने की अधिसूचना जारी करने के रूप में एक सक्रिय कदम उठाया था।

किसानों को मोटे अनाज उगाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये केंद्र ने नियमित रूप से इन फसलों के लिये आकर्षक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा की है। हालाँकि, इन प्रयासों के बावजूद पोषक अनाज फसलों के खेती क्षेत्र में गिरावट की प्रवृत्ति जारी है।

पोषक अनाजों के खेती क्षेत्र में गिरावट क्यों जारी है?

  • हरित क्रांति का प्रभाव:
    • हरित क्रांति (Green Revolution) ने खाद्य सुरक्षा की वृद्धि करने के साथ ही फसल पैटर्न में कुछ अवांछनीय परिवर्तनों को भी प्रेरित किया है। इसके कारण जल-गहन फसलों (धान, गन्ना, केला, गेहूँ आदि ) के कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जबकि जल की कम खपत करने वाले पोषक अनाज फसलों का कृषि क्षेत्र वर्ष 1965-66 में 44.34 मिलियन हेक्टेयर (mha) से तेज़ी से घटकर वर्ष 2021-22 में 22.65 मिलियन हेक्टेयर रह गया (49% गिरावट)।
  • निम्न उत्पादकता और कमज़ोर अवसंरचना:
    • निम्न उत्पादकता, बीजों की कम उपलब्धता, अपर्याप्त प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन सुविधाएँ और पोषक अनाजों के लिये कमज़ोर बाज़ार लिंकेज।
    • पोषक अनाजों को ऐतिहासिक रूप से ‘निर्धनों का खाद्य’ (poor man's food) माना जाता रहा है और चावल एवं गेहूँ के लिये बढ़ती प्राथमिकता के कारण इनकी मांग में कमी आई है।
    • अपर्याप्त बाज़ार मांग और निम्न मूल्य प्रदान करने वाले प्रोत्साहन उपाय किसानों को इन पोषक अनाजों की खेती में निवेश करने से हतोत्साहित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप निम्न उत्पादकता की स्थिति बनती है।
  • आहार संबंधी प्राथमिकताओं का बदलना:
    • लोगों की खान-पान की आदतें और प्राथमिकताएँ समय के साथ बदलती रहती हैं। यदि अन्य प्रकार के ब्रेकफास्ट खाद्य पदार्थों के प्रति उपभोक्ता की प्राथमिकताओं में उल्लेखनीय बदलाव आये या सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के लिये प्राथमिकता की वृद्धि हो तो यह पोषक अनाजों की मांग को प्रभावित कर सकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा की वृद्धि:
    • अनाज बाज़ार अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी है जहाँ उपभोक्ताओं के लिये कई विकल्प उपलब्ध हैं।
      • नए ब्रेकफास्ट उत्पादों का प्रसार हो सकता है, जिनमें विभिन्न प्रकार के अनाज, ग्रेनोला (granolas), ब्रेकफास्ट बार या दही-आधारित ब्रेकफास्ट विकल्प शामिल हैं।
      • प्रतिस्पर्द्धा की इस वृद्धि से पोषक अनाजों की बाज़ार हिस्सेदारी में गिरावट आ सकती है।
  • विपणन और नवाचार का अभाव:
    • प्रभावी विपणन रणनीतियों या उत्पाद विकास में नवाचार की कमी हो तो पोषक अनाज को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • उपभोक्ता प्रायः नए और रोमांचक उत्पादों की ओर आकर्षित होते हैं, इसलिये यदि पोषक अनाज विपणन अभियानों के माध्यम से उनका ध्यान आकर्षित करने में विफल रहते हैं या नए संस्करण या स्वाद (flavors) पेश करने में विफल रहते हैं तो इससे बिक्री में गिरावट आ सकती है।
  • धारणा और स्वाद संबंधी प्राथमिकताएँ:
    • स्वाद संबंधी प्राथमिकताएँ (Taste Preferences) खाद्य उत्पादों की सफलता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं। यदि उपभोक्ताओं को पोषक अनाज स्वाद के मामले में फीके या अरुचिकर लगते हैं तो वे ऐसे अन्य ब्रेकफास्ट विकल्पों को चुनते हैं जिन्हें अधिक स्वादिष्ट या बेहतर मानते हैं।

पोषक अनाजों की खेती बढ़ाने के क्या फायदे हैं?

  • पोषण:
    • पोषक अनाज आहार फाइबर, आयरन, फोलेट, कैल्शियम, जिंक, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, कॉपर, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। वे पोषण संबंधी सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं और विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं में पोषण संबंधी कमी के विरुद्ध ढाल के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • जलवायु प्रत्यास्थता:
    • पोषक अनाज सूखा-सहिष्णु एवं कीट-प्रतिरोधी होते हैं और कम लागत के साथ सीमांत भूमि में उगाये जा सकते हैं। वे बदलती जलवायु दशाओं के अनुकूल ढल सकते हैं और फसल विफलता के जोखिम को कम कर सकते हैं।
  • पर्यावरणीय स्थिरता:
    • पोषक अनाज जल एवं ऊर्जा की कम आवश्यकता रखते हैं और मृदा स्वास्थ्य एवं जैव विविधता में सुधार कर सकते हैं। वे चावल एवं गेहूँ की तुलना में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जल प्रदूषण को भी कम कर सकते हैं।
  • आर्थिक सशक्तीकरण:
    • पोषक अनाज छोटे और सीमांत किसानों, विशेषकर महिलाओं और आदिवासी समुदायों के लिये आय के अवसर प्रदान कर सकते हैं, जो इन फसलों के मुख्य उत्पादक हैं।
    • वे ग्रामीण उद्यमियों के लिये मूल्य-वर्द्धन और प्रसंस्करण क्षमता भी उत्पन्न कर सकते हैं।

कुछ उदाहरण:

  • ज्वार (Sorghum): यह एक ग्लूटेन-मुक्त अनाज है जो प्रोटीन, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। यह रक्त शर्करा और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है।
  • बाजरा (Pearl millet): यह एक सूखा-सहिष्णु अनाज है जो प्रोटीन, फाइबर और कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं ज़िंक जैसे खनिजों से समृद्ध होता है। यह एनीमिया को रोकने और पाचन में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • रागी (Finger millet): यह ऐसा अनाज है जिसमें सभी अनाजों की तुलना में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। यह आयरन, फाइबर और अमीनो एसिड का भी अच्छा स्रोत है। यह हड्डियों एवं दाँतों को मज़बूत बनाने और मधुमेह को रोकने में मदद कर सकता है।
  • काकुन (Foxtail millet): यह प्रोटीन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर अनाज है। यह रक्तचाप एवं कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और प्रतिरक्षा में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • कोदों (Kodo millet): एक अनाज जिसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स (glycemic index) निम्न है और इसमें फाइबर एवं फाइटोकेमिकल्स की मात्रा अधिक होती है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने और मोटापे को रोकने में मदद कर सकता है।
  • साँवा (Barnyard millet): एक अनाज जिसमें अन्य सभी मोटे अनाजों से अधिक फाइबर सामग्री होती है। इसमें आयरन और कैल्शियम की भी उच्च मात्रा होती है। यह कब्ज को रोकने और रक्त परिसंचरण में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • कुटकी (Little millet): एक अनाज जो प्रोटीन, फाइबर और आयरन, ज़िंक एवं पोटैशियम जैसे खनिजों से भरपूर होता है। यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और हृदय रोगों को रोकने में मदद कर सकता है।
  • चेना/बैरी (Proso millet): यह प्रोटीन, फॉस्फोरस और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। यह मांसपेशियों एवं तंत्रिका कार्यों को बेहतर बनाने और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को रोकने में मदद कर सकता है।

मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी पहलें

  • अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (International Year of Millets):
    • वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों के महत्त्व को चिह्नित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ (भारत द्वारा प्रायोजित) के रूप में नामित करने का एक प्रस्ताव अपनाया।
    • यह पोषण संबंधी चुनौतियों से निपटने और सतत कृषि को बढ़ावा देने में मोटे अनाजों के महत्त्व को उजागर करता है। भारत में मोटे अनाजों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी खेती एवं उपभोग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2018 को ‘राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ (National Year of Millets) के रूप में मनाया गया।
  • ‘री-ब्रांडिंग’:
    • मोटे अनाजों के उपभोग को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने उनके पोषण मूल्य पर बल देते हुए उन्हें आधिकारिक तौर पर पोषक अनाज या ‘न्यूट्री-सीरियल्स’ (Nutri-Cereals) के रूप में नामित किया है।
  • किसान हितैषी योजनाएँ:
    • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत सरकार ने वर्ष 2011-12 में मोटे अनाजों को पोषक अनाज के रूप में बढ़ावा देने के लिये 300 करोड़ रुपए का आवंटन किया।
      • इस योजना का उद्देश्य एकीकृत उत्पादन और पोस्ट-हार्वेस्ट प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना था, जिसका एक स्पष्ट प्रभाव उत्पन्न हो जो देश भर में मोटे अनाज उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहित करेगा।
    • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय पोषक अनाजों के लिये कृषि क्षेत्र, उत्पादन और उपज को बढ़ावा देने के लिये 600 करोड़ रुपए की एक योजना कार्यान्वित कर रहा है।
      • इसका लक्ष्य स्थानीय स्थलाकृति और प्राकृतिक संसाधनों के साथ पोषक अनाजों की खेती को संगत बनाना है। सरकार किसानों को भारत के विविध 127 कृषि-जलवायु क्षेत्रों के साथ अपने फसल पैटर्न को संरेखित करने के लिये भी प्रोत्साहित कर रही है।
  • सीड किट और उपकरणों का प्रावधान:
    • सरकार पोषक अनाजों की खेती को समर्थन देने के लिये किसानों को सीड किट (seed kits) और आवश्यक उपकरण उपलब्ध करा रही है।
    • इसके अतिरिक्त, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को सहायता के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण करने और पोषक अनाजों की विपणन क्षमता का समर्थन करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि:
    • मोटे अनाजों के महत्त्व को चिह्नित करते हुए सरकार ने इन फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की वृद्धि की है, जहाँ किसानों को उल्लेखनीय मूल्य प्रोत्साहन प्रदान किया गया है। इस वृद्धि से कृषि क्षेत्र को काफी बढ़ावा मिला है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में समावेशन:
    • मोटा अनाज उपज के लिये एक स्थिर बाज़ार सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने मोटे अनाजों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में शामिल किया है। यह कदम उपभोक्ताओं के लिये मोटे अनाजों की पहुँच एवं उपलब्धता को बढ़ाता है, जिससे उनकी खपत को और बढ़ावा मिलता है।

आगे की राह

  • खाद्य उद्योग के साथ सहयोग:
    • बाज़ार में उपलब्ध पोषक अनाज उत्पादों की शृंखला का विस्तार करने के लिये खाद्य निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं के साथ साझेदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • विभिन्न उपभोक्ता खंडों की मांग की पूर्ति के लिये नए स्वादों, सुविधाजनक पैकेजिंग विकल्पों और उत्पाद नवाचारों के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • विद्यालयी और सामुदायिक कार्यक्रमों का संचालन:
    • पोषक अनाज को विद्यालय के भोजन कार्यक्रमों और स्वस्थ आहार आदतों को बढ़ावा देने वाले सामुदायिक पहलों में एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • इसमें विद्यालय मध्याह्न भोजन में पोषक अनाज उपलब्ध कराना, पोषण कार्यशालाएँ आयोजित करना और उनके लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये स्थानीय संगठनों के साथ सहयोग करना शामिल हो सकता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के साथ सहयोग:
    • विभिन्न स्वास्थ्य दशाओं के लिये आहार संबंधी अनुशंसाओं और उपचार योजनाओं में पोषक अनाजों के समावेशन को बढ़ावा देने के लिये स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों, आहार विशेषज्ञों एवं पोषण विशेषज्ञों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।
      • इससे उपभोक्ताओं के बीच साख एवं भरोसे के निर्माण में मदद मिल सकती है।
  • उपभोक्ता संलग्नता को प्रोत्साहित करना:
    • प्रतियोगिताओं, ‘चैलेंज’ और सोशल मीडिया अभियानों के माध्यम से उपभोक्ता भागीदारी को प्रोत्साहित करना जो पोषक अनाजों के उपभोग को बढ़ावा दे।
    • आहार में पोषक अनाज को शामिल करने से संबंधित अनुभवों, नए व्यंजनों और सफलता की कहानियों को साझा करने के लिये एक मंच का निर्माण किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: सतत् कृषि, आहार विविधता और ग्रामीण आजीविका में योगदान कर सकने के मामले में पोषक अनाज की संभावना पर विचार कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. गहन कदन्न संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. इस पहल का उद्देश्य उन्नत उत्पादन और कटाई-उपरांत प्रौद्योगिकियों को निदर्शित करना है, एवं समूह उपागम (क्लस्टर अप्रोच) के साथ एकीकृत रीति से मूल्यवर्द्धन तकनीकों को निदर्शित करना है।
  2. इस योजना में निर्धन, लघु, सीमांत एवं जनजातीय किसानों की बड़ी हितधारिता है।
  3. इस योजना का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य वाणिज्यिक फसलों के किसानों, पोषकों के अत्यावश्यक निवेशों के और लघु सिचाई उपकरणों के निशुल्क किट प्रदान कर, कदन्न की खेती की ओर प्रोत्साहित करना है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (INSIMP)' योजना का उद्देश्य देश में बाजरा के बढ़े हुए उत्पादन को उत्प्रेरित करने हेतु दृश्य प्रभाव के साथ एकीकृत तरीके से बेहतर उत्पादन और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करना है। बाजरा के उत्पादन में वृद्धि के अलावा योजना, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन तकनीकों के माध्यम से बाजरा आधारित खाद्य उत्पादों व उपभोक्ता मांग उत्पन्न करने की उम्मीद है। अत: कथन 1 सही है।
  • मोटे अनाज की चार श्रेणियों - ज्वार, बाजरा, रागी और कुटकी (Small Millets) के लिये चयनित ज़िलों के कॉम्पैक्ट ब्लॉकों में प्रौद्योगिकी प्रदर्शन आयोजित किये जाएंगे। इस योजना में गरीब, छोटे, सीमांत और आदिवासी किसानों की बड़ी हिस्सेदारी है। अत: कथन 2 सही है।
  • वाणिज्यिक फसलों के किसानों को बाजरा की खेती में स्थानांतरित करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अत: कथन 3 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

मेन्स

प्रश्न. गत वर्षों में कुछ विशेष फसलों पर ज़ोर ने सस्यन पैटर्नों में किस प्रकार परिवर्तन ला दिये हैं? मोटे अनाजों (मिलेटों) के उत्पादन और उपभोग पर बल को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिये। (2018)

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